राष्ट्रपति की अनुपस्थिति और महिला आरक्षण विधेयक के मायने 

मोदी शासन : महिला उत्पीड़न की पराकाष्ठा, महिला साम्प्रदायिकीकरण, महिला शिक्षा, अनुबंधकर्मी के बजट में भारी कटौती, महिला बेरोजगारी दर में बढोतरी के बीच महिला आरक्षण बिल के मायने.

रांची : “बेटी रक्षक” का ढोल पीटने वाली आरएसएस और बीजेपी से जुड़े लोग राजस्थान और मध्य प्रदेश में बेटियों से शर्मसार हरकते करते पकड़े गये. जोधपुर में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में 17 वर्षीय दलित लड़की के साथ आरएसएस और बीजेपी के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं या अंधभक्तों ने सामूहिक बलात्कार किए. मध्यप्रदेश में दो बहनों के साथ हुए अत्याचार में गिरफ़्तार 4 अपराधियों में एक स्थानीय बीजेपी नेता का बेटा भी शामिल है.

राष्ट्रपति की अनुपस्थिति और महिला आरक्षण विधेयक के मायने 

महिला उत्पीडन में बीजेपी और आरएसएस की संलिप्तता कोई नया नहीं. कठुआ, उन्नाव से लेकर से मणिपुर तक की लंबी फेहरिस्त सामने है. आसाराम बापू, राम रहीम और चिन्मयानन्द जैसे राक्षसों के संबंध बीजेपी और आरएसएस के साथ उजागर हुए हैं. कइयों को मोदी सरकार में नियम-कानून ताक पर रख रिहा या पैरोल पर बाहर किया जा रहा है. गुजरात, बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में भी सजा काट रहे बलात्कारियों को न केवल रिहा किया गया उनका स्वागत भी हुआ.

यह फेहरिस्त की पहली सूची भर है. मोदी शासन में जानलेवा महंगाई का असर भी गरीब, कामगार एवं मध्यमवर्गीय महिलाओं पर पड़ा है. पहले ही परिवार पोषने के अक्स में वह आधी पेट भोजन पर जीवन बसर करती थी. अब उनकी परिस्थिति क्या होगी यह सोचने भर से ही रूह काँप सकता है. विकट परिस्थितयों के बीच मोदी शासन के पीले पड़ चुके पत्ते हर तरफ बिखरे थे. उसे अपना अन्त समीप दिख रहा था. मसलन, तेज़ हवाओं के बीच महिला आरक्षण बिल का भोपू बजाया गया. 

आरएसएस-मोदी शासन में महिलाओं का साम्प्रदायिकीकरण 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के थिंकटैंक के अक्स में मोदी शासन में महिला वोट ध्रुवीकरण की आस में देश में महिलाओं का साम्प्रदायिकीकरण हुआ. समाज को अपनी ममता से पोषने वाली महिलाओं की भागीदारी धर्म के अक्स में साम्प्रदायिक हिंसक गतिविधियों में बढ़ी है. जहाँ धर्म या समुदाय के आधार पर महिलाओं का विभाजन व्यवहार में दिखा है. जिसका स्पष्ट असर महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता पड़ा है. उन्हें व्यक्तिगत पहचान से वंचित होना पड़ा है. 

दूसरी तरफ, भारत में महिलाओं के शिक्षा बजट में कटौती हुई है. उनका शैक्षिणिक बजट 2014 से लगातार कमे और मौजूदा वित्त वर्ष में नहीं रुका बल्कि और 10% कम हुए. जो महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण की राह में एक बड़ा झटका है. जिससे लड़कियों की स्कूली शिक्षा प्रभावित हुए. उनकी साक्षरता दर में कमी आई. बेटियां उच्च शिक्षा तक की पहुंच से दूर हुई. जो न केवल स्पष्ट रूप से करियर के कम होते अवसर को दर्शाता है और उनकी आर्थिक स्वतंत्रता का हनन भी.

महिला बेरोजगारी दर – 2014 के 5.3% से 2023 में 9.2% तक पहुंची  

भारत में महिला बेरोजगारी दर 2014 में 5.3% थी जो 2013 में 5.1% से थोड़ी अधिक थी. शहरी क्षेत्रों में, यह दर 2014 में 6.2% थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 4.5% थी. आर्थिक मंदी, शिक्षा, कौशल कमी, पारिवारिक जिम्मेदारियां प्रमुख कारक थे. जबकि, मोदी शासन में हुए नौकरी कटौती और निजीकरण के अक्स में 2023 की पहली तिमाही में, शहरी महिलाओं की बेरोजगारी दर 9.2% थी. ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह बढ़ कर 10.9% पहुंची. इसका स्पष्ट अर्थ है कि देश की महिलाओं को मोदी शासन में फिर चूल्हा फूंकने पर मजबूर कर दिया गया है.

आंगनबाड़ी, पोषणसखी, कुपोषण के बजट में हुआ कटौती 

  • आंगनबाड़ी – 2022-23 में आंगनबाड़ी के बजट में 2.9% की कटौती की गई. यह कटौती ₹1,300 करोड़ थी.
  • पोषणसखी – 2022-23 में पोषणसखी के बजट में 10% की कटौती की गई. यह कटौती ₹200 करोड़ थी.
  • कुपोषण – 2022-23 में कुपोषण के लिए आवंटित बजट में 15% की कटौती की गई. यह कटौती ₹500 करोड़ थी.

ज्ञात हो, मोदी समेत बीजेपी के तमाम शासनों में अनुबंध नियुक्ति का परिचलन बढ़ा है. वोट उगाही के अक्स में महिलाओं का अनुबंध पर नियुक्ति आंगनबाड़ी, पोषणसखी जैसे कई रूपों में हुआ. लेकिन मोदी सत्ता में इनके बजट में भी कटौती हुई. ज्ञात हो, आंगनबाड़ी केंद्र भारत में बच्चों व गर्भवती महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करते हैं. इन केंद्रों में बच्चों को पोषण संबंधी भोजन के साथ शिक्षा व स्वास्थ्य प्रदान की जाती है. पोषणसखी महिला-बच्चों और गर्भवती महिलाओं को इन सेवाओं तक पहुँचती है.

लेकिन, झारखण्ड जैसे गरीब राज्य में केंद्र ने फौंद देना बंद कर दिया. ज्ञात हो, कुपोषण भारत की गंभीर समस्या है जो लाखों बच्चों और महिलाओं को प्रभावित करती है. बजट कटौतियों के माध्यम से इन सेवाओं को प्रभावित करने प्रयास देश के भविष्य के साथ सीधा खिलवाड़ है. यही नहीं झारखण्ड प्रदेश के सीएम हेमन्त सोरेन देश हित में मोदी सरकार से सर्वजन पेंशन की मांग की थी. जिसका सीधा फायदा देश के बेबस महिलाओं को भी मिलता. लेकिन, उनके इस मांग को मोदी सरकार में सिरे से अनसुना कर दिया गया. हालांकि झारखण्ड में यह राज्य मद से लागू हुआ.

मोदी सत्ता के कटती पतंग के बीच राष्ट्रपति के अनुपस्थिति में महिला आरक्षण बिल पारित  

इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि मोदी सरकार की नाव बीच मझधार में हिचकोले खा रही है. तमाम सर्वे एवं गुजरात लॉबी और बीजेपी के बीच उत्पन्न अंतर्कलह में सरकार 27 वर्षों से लंबित, जिसमे मोदी सरकार के भी 9 वर्ष भी हैं, महिला आरक्षण विधेयक को तीन तलाक विधेयक की भांति सदन पटल लाने को विवश हुए. और आननफानन में महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के अनुपस्थिति में 128वां संविधान संशोधन कर महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया.

लेकिन, यह विधेयक भी पूरी तरह पारित नहीं हुआ. बीजेपी मंशा के द्वारा इसमें भी पेच फसा दिया गया. ज्ञात हो महिला आरक्षण बिल को लागू होने की राह में कई रोड़े हैं, जिसके चलते भारतीय महिलाओं को अभी और लंबा इंतजार करना पडेगा. क्योंकि, बिल में कहा गया है कि जनगणना के आंकड़ों और परिसीमन की प्रक्रिया के बाद ही यह प्रावधान लागू हो सकेंगे. परिसीमन में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर सीमाएं तय होगी.

महिला आरक्षण बिल में ओबीसी का कोटा नहीं है. जिससे भारत की बड़ी आबादी आरक्षण से वंचित होंगी. इसके अलावा इसे लागू करने के लिए जनगणना और परिसीमन की जरूरत है. ऐसे में जब जाति जनगणना के नाम से ही आरएसएस-बीजेपी के हाथ पाँव फूल जाते हैं तो भविष्य के अक्स में इनके वादे की हकीकत को समझना कोई राकेट साइंस नहीं है. मसलन, बीजेपी के अन्य मुद्दों के भांति यह मुद्दों भी जनता के ध्यान भटकाने से जुदा नहीं माना जा सकता है.

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