झारखण्ड : देश के अहम लोकसभा चुनाव से पहले राज्य के सीएम को तानाशाह जेल में डाले तो झारखंडियत की रक्षा कौन करेगा? क्या कल्पना सोरेन का यह सवाल राज्य के लिए अतिगंभीर नहीं?
रांची : इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि अरसे बाद हेमन्त सोरेन ही वह पहले सीएम रहे जिनकी कार्य नीतियां झारखंडी मानसिकता ओत-प्रोत प्रतीत हुई. 14 वर्षों के सामंती व्यवस्था के अक्स में उत्पन्न समस्याओं से राज्य के मूलवासियों को कई मायने में मुक्ति मिली. राज्य के सुदूर क्षेत्रों में बेजुबान गरीबों आवाज मिली. बूढा पहाड़ जैसे दुर्गम इलाके में सरकारी तंत्रों की धमक, सरकार आपके द्वार, सर्वजन पेंशन, अबुआ आवास, TAC गठन जैसे सच इसके स्पष्ट उदाहरण हो सकते हैं.
इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि 20 वर्षों के अलग झारखण्ड के इतिहास में राज्य के दलित, आदिवासी, पिछड़ा, अल्पसंख्यक, बुद्धिजीवी समेत सभी वर्गों में पहली बार यह उम्मीद जगी थी कि हेमन्त सोरेन ही बतौर सीएम और जननेता राज्य का भविष्य है. यह बीजेपी के पूर्व मंत्री सह वर्तमान निर्दलीय विधायक तक का बयान है. यूट्यूब पर अब भी सम्बंधित वीडियो देखा-सुना जा सकता है. वहीँ दूसरी तरफ केन्द्रीय शासन के अक्स में देश संवैधानिक अधिकारियों के संरक्षण के संकट से जूझ रहा हो.
जिसके अक्स में पांचवी अनुसूची क्षेत्र में आने वाला राज्य, झारखण्ड और देश के एकमात्र आदिवासी सीएम को तानशाह जबरन महत्वपूर्ण लोकसभा चुनाव के पहले जेल में डाल दे. औए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के अनुसार सुप्रीम कोर्ट उसे हाई कोर्ट जाने का सुझाव दे. तो ऐसे में झारखंड राज्य से बतौर, आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली, कल्पना सोरेन का सवाल – “चुनाव से पहले एक सीएम को ही तानशाह जेल में डाले तो झारखंडियत कि रक्षा कौन करेगा? और भी गंभीर रूप ले लेता है, जो देश-राज्य की वर्तमान त्रासदीय परिस्थिति की स्पष्ट तस्वीर पेश करता प्रतीत होता है.