कल्पना सोरेन – पूर्व सीएम पत्नी और राज्यसभा सासंद की बहु. उन्हें भी आदिवासी होने का कर्ज चुकाना पड रहा है. उनका ट्विट से न केवल उनके पारिवारिक दयनीय स्थिति, देश की मौजूदा परिस्थिति भी समझी जा सकती है.
रांची : देश में सामन्ती शासन के अक्स में न केवल देश भर में गरीबों की आर्थिक स्थिति हासिये पर है न्यायिक प्रक्रिया के साथ खुला खिलवाड़ का सच भी अपने चरम पर है. आदिवासी, दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के साथ तो यह सामती खेल और भी भयावह रूप ले चुका है. जहाँ मणिपुर, लद्दाक की मौजूदा तस्वीरें इस सच को स्पष्ट करती है, तो वहीँ झारखण्ड के आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन की तानाशाही गिरफ्तारी इसकी पराकाष्ठ को बयान करती है. और एलेक्ट्रोल बांड घोटाला प्रकरण में ईडी की सक्रियता इसकी स्पष्ट तस्दीक है.
ज्ञात हो, झारखण्ड पूर्व आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन का अन्यायपूर्ण कारावास का वक़्त 45 दिन से अधिक हो चुका हैं. और इस मुद्दे पर केन्द्रीय सरकारका एक भी प्रतिक्रिया अबतक न आना उसके चुनावी एजेंडे की लालसा को देश के समक्ष दर्शाता दिखता है. कल्पना सोरेन – हैं तो एक पूर्व सीएम पत्नी और राज्यसभा सासंद की बहु. लेकिन, उन्हें भी आदिवासी होने का कर्ज चुकाना पड रहा है. ट्विटर x पर उनकी आज की ट्विट न केवल उनके पारिवारिक दयनीय स्थिति को बल्कि देश की मौजूदा परिस्थिति भी समझी जा सकती है.
पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का झकझोरता ट्विट
सप्ताह में एक दिन मात्र कुछ समय के लिए उनसे मिलना हो पाता है. बाबा और माँ के स्वास्थ्य को लेकर वो चिंतित रहते हैं. वो राज्य की जानकारी लेने के साथ-साथ बच्चों के बारे में भी पूछते हैं. राज्यवासियों के प्रति हेमन्त जी का प्रेम और समर्पण ही मुझे शक्ति देता रहता है. इस अन्यायपूर्ण कारावास में भी वह मुस्कुरा कर कहते हैं कि तुम एक माँ हो, सब संभाल लोगी.
हर सप्ताह मिलने के क्रम में वो जेल में बंद गरीब और असहाय कैदियों की समस्याओं के बारे में बताते रहते हैं. उन्हें कैसे न्याय मिले, सोचते हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही हेमन्त जी ने महिला सिपाहियों की सहूलियत को लेकर सरकार तक अनुरोध भी पहुंचाया है.
झारखण्ड समेत देश के जेलों में बंद कैदियों की संख्या में सबसे ज्यादा आदिवासी, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग हैं. अधिकांश मामलों में वंचित समाज के लोग मामूली अपराधों में, तो कई बार सिर्फ जमानत की छोटी से छोटी राशि ना भर पाने की असमर्थता के कारण जेल में रहने को मजबूर रहते हैं. मुझे याद है खुद मुख्यमंत्री रहते हुए हेमन्त जी ने कुछ ऐसे कैदियों को रिहा करने हेतु निर्देश भी दिया था.
आज हाथी उड़ाने वाले लोग सिर्फ पूंजीपतियों द्वारा दिए इलेक्टोरल बॉन्ड और अन्य चंदों की मदद से लोकतंत्र की हत्या की साजिश रचने में व्यस्त हैं. इन्हें आदिवासी, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग से कोई मतलब नहीं.