उलगुलान न्याय रैली: तानाशाह के खिलाफ होती झारखंडी सियासी हवा

“उलगुलान न्याय महारैली”- देश भर के आदिवासी-मूलवासी एट्रोसिटी, उसके जल-जंगल-जमीन की लूट व झूठे आरोपों के अक्स में एजेंसियों के आसरे गरीबों के नेताओं को जेल में ठुसे जाने का सच करेगा उजागर. 

रांची : इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि मोदी सत्ता में एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक, महिला, युवा, किसान व सभी वर्गों के गरीब जनता नारकीय जीवन जीने को विवश है. भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार का स्पष्ट कथन है कि केंद्र की मोदी सरकार देश की आर्थिक-सामाजिक समस्याएं दूर नहीं कर सकती है. यह बयान सच प्रतीत होता है क्योंकि बेरोज़गारी, बेघरी, असमानता, जैसी सभी समस्याएं मोदी सरकार की पूँजीपरस्त और सामंती भ्रष्ट नीतियों का ही स्पष्ट अक्स है.

उलगुलान न्याय रैली

भारत सरकार के संस्थान एनएसएसओ द्वारा जारी पीएलएफ़एस के आँकड़ों के अनुसार 2018 में बेरोज़गारी दर 2012 की तुलना में तीन गुणा बढ़ चुकी थी. आज लगभग 32 करोड़ भारतीय बेरोज़गार हैं. ‘आईएलओ’ और ‘आइएचडी’ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार पढ़े-लिखे बेरोज़गार युवाओं की संख्या साल 2000 के मुक़ाबले 2022 तक दोगुनी हो चुकी है. दो करोड़ नये रोज़गार देने का वादा करने वाली मोदी सरकार 10 सालों में कुल 7 लाख 20 हज़ार नौकरियां ही दे पाई है.

उपरोक्त आंकड़ों से मोदी सरकार की नीतियों और मंशा की असलियत बहली-भांति समझी जा सकती है. और  रोज़गार लेने योग्य बनने के टोटके जैसे युवाओं को सुझाते के प्रयास की भी. यही नहीं हेमन्त सोरेन जैसे गैर बीजेपी शासित राज्यों के जिस भी सीएम के द्वारा बेरोजगारी दूर करने प्रयास हुआ, केन्द्रीय सत्ता के द्वारा जांच एजेंसियों व राजभवन के आसरे उस सीएम को रोकने का प्रयास हुआ. हेमन्त सोरेन का जेल प्रसंग, नियोजन निति रद्द प्रकरण इस सच के स्पष्ट उदाहरण भर हो सकते हैं 

झारखण्ड व इंडिया गठबंधन ने केन्द्रीय षड्यंत्रों के विरुद्ध डेटे  

ज्ञात हो मोदी सरकार की तानाशाही नीतियों के खिलाफ देश के तमाम विपक्षीय दलों का एक मंच पर जुटान हुआ. लेकिन केन्द्रीय सत्ता के द्वारा जांच एसियों के आसरे इन्हें तितर-बितर करने का भरसक प्रयास हुआ, कुछ दल और नेता टूटे भी. लेकिन हेमन्त सोरेन और केजरीवाल ने टूटने के बजाय डेटने का निर्णय लिया, नतीजतन आज उन दोनों को मुख्यमंत्रियों को जेल में ठूस दिया गया है. जो नेता शेष बचे हैं वह लगभग निहत्थे संघर्ष करते दिख रहे हैं. उनके इस जन लड़ाए में केवल राजनितिक कौशल ही उनका एक मात्र मुख्य हथियार है. 

कल्पना सोरेन के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन के द्वारा झारखण्ड, रांची में “उलगुलान न्याय महारैली” बुलाई गई है. ज्ञात हो, विपरीत परिस्थितियों में कल्पना सोरेन का राजनितिक व्यक्तित्व उभर कर सामने आया है. झारखण्ड की जनता व देश भर के आदिवासियों का समर्थन इन्हें मिल रहा है. ऐसे में आदिवासी-मूलवासी अत्याचार, जल-जंगल-जमीन लूट, विपक्षी दलों के खिलाफ एजेंसियों का इस्तेमाल जैसे मुद्दों के अक्स में रैली के साथ जनता का मजबूत जुड़ाव देखा जा रहा है. मसलन, यह रैली लोकसभा चुनाव के परिणाम में निर्णायक भूमिका अदा करती दिख चली है.

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