चुनावी बांड से उठे परदे से खुल रहे घोटाले के कई काले राज 

इलेक्टोरल बांड डेटा का विश्लेषण विस्तृत होने से भ्रष्टाचार के कई मामले स्पष्ट हो सकेंगे. एसबीआई ने कुल 22,217 इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे. हर बॉन्ड के पीछे एक घोटाला होने के कयास…

रांची : मोदी शासन में भारतीय चुनाव खर्चीला हो चुका है. सवाल हमेशा उठते रहे हैं कि यह धन आता कहाँ से है. राजनितिक दलों द्वारा 20000 रुपये से ऊपर का चंदा वर्ष 2017 तक चेक से लिए जाते थे और रिकॉर्ड भी रहता था. मसलन, राजनितिक दल का अधिकांश चन्दा 20000 रुपये से कम का होता था जिसमें रसीद की आवशयकता नहीं थी. लेकिन, चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के आड़ में मोदी सरकार में चुनावी बॉण्ड को फ़ाइनेंस एक्ट 2017 के द्वारा लागू किया. 

चुनावी बांड से उठे परदे से खुल रहे घोटाले के कई काले राज 

चुनावी बॉण्ड भारतीय स्टेट बैंक की चुनिन्दा शाखाओं से मिल सकते थे. जिसकी न्यूनतम क़ीमत 1000 रुपये और अधिकतम एक करोड़ रुपये रखी गयी. इस चुनावी बॉण्ड के कार्यान्वयन के लिए पाँच और एक्ट में बदलाव पहले ही कर लिये गये थे. लोक प्रतिनिधित्व एक्ट 1951 में संशोधन. उस वक़्त चुनाव आयोग के द्वारा आपत्ति भी जतायी गयी थी कि पार्टियाँ, विदेशी कम्पनियों से भी चन्दे ले सकेगी जो कि ग़ैर-क़ानूनी है, पर इस चेतावनी को दरकिनार कर दिया गया.

कम्पनी एक्ट 2013 में भी संशोधन कर कम्पनियों द्वारा चन्दा देने की प्रतिबन्धित सीमा में बदलाव किया गया. पहले कम्पनियाँ औसत मुनाफ़े का 7.5% ही चंदा दे सकती थी, जो उसके बैलेंस शीट में पार्टी के नाम के साथ दर्ज होता था. इस संशोधन से यह प्रतिबन्धित सीमा हट गयी. अब कम्पनियाँ राजनीतिक दलों को बेलगाम चन्दा दे सकती थी और उसे अपने रिकॉर्ड में केवल बॉण्ड ख़रीद की राशि को दर्शाना होता था. जिसका सर्वाधिक फायदा सतारूढ़ दल को प्राप्त हो सकता था.  

महज तीन महीने में ही 4444 करोड़ रूपये का चन्दा

तब चुनाव आयोग के द्वारा कहा गया था कि इससे “फेक कम्पनियाँ स्थापित होंगी जिनके माध्यम से विदेशी चन्दा चुनावी बॉण्ड द्वारा प्राप्त किया जा सकेगा. इसकी तस्दीक फ़ॉरेन कण्ट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट में हुए संशोधनों से स्पष्ट होता है. साथ ही इन्कम टैक्स ऐक्ट में संशोधन से इन चन्दों को टैक्स प्रणाली के बाहर रखा जाना. रिज़र्व बैंक ऑफ़ इण्डिया ऐक्ट में संशोधन कर चुनावी बॉण्ड को धारक बॉण्ड बना दिया गया. जिससे पैसे के स्त्रोत और रास्ते छुपा छिपा दिए गए.

इन संशोधनों से केन्द्रीय सत्ता ने न केवल कॉर्पोरेट चंदा पर सभी रोकथाम हटाया, विदेशी चंदों के सभी रास्ते भी खोल दिए. केवल तीन महीने में ही 4444 करोड़ रूपये का चन्दा और जनवरी 2018 से मई 2019 तक में ही 6000 करोड़ से भी ज़्यादा रुपये चुनावी बॉण्ड के रूप में राजनितिक दलों के खाते में पहुँचना, तथ्य को स्पष्ट कर सकती है. जिसमें आम जनता को ना तो पार्टियों को मिलने वाले चन्दे, दानदाता और ना ही चन्दा प्राप्त करने वाली पार्टी का पता चल सकता था.

ज़ाहिर है कि यह बेसुमार चन्दा केवल पूँजीपतियों की कम्पनियों ने ही दिया था. मेट्रोपोलिटन शहरों से ज़्यादातर चन्दा मिला और कुल चन्दे का अधिकाँश हिस्सा केवल दिल्ली में ही भुनाया जाना स्थिति को और स्पष्ट कर सकती है. जिसके अक्स में न केवल देश ने चुनाव में केंद्री सत्ता पर काबिज बीजेपी का बर्चस्व देखा. विधायक, एमपी खरीद-फरोख्त से लेकर लोकतांत्रिक तौर पर चुनी सरकारों को गिरा बीजेपी समर्थित सरकारें बनती देखी.

चुनावी बांड के लगभग सभी रहस्यों से उठा गया है पर्दा 

सुप्रीम कोर्ट के एतिहासिक फैसले के अक्स में चुनावी बांड के लगभग सभी रहस्यों से पर्दा उठ गया है. जिसे सपष्ट हो गया है की केन्द्रीय सत्ताधारी दल बीजेपी ने न केवल इलेक्टोरल बॉन्ड का 60% हिस्सा अकेले ही प्राप्त किया है. सरकारी जांच संस्थानों का दुरुपयोग कर भी चंदा लिया गया है. साथ ही यह भी स्पष्ट हो चला है की जिसने चंदा दिया है, उसे कॉन्ट्रैक्ट मिले हैं. 1,300 से अधिक कंपनियों और व्यक्तियों ने इलेक्टोरल बांड के रूप में दान दिया है.

मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रा ने 800 करोड़ रुपए से अधिक इलेक्टोरल बॉन्ड में दिए. उसे 14,400 करोड़ रुपए की ठाणे-बोरीवली ट्विन टनल प्रोजेक्ट मिला. जिंदल स्टील एंड पावर ने 7 अक्टूबर 2022 को इलेक्टोरल बॉन्ड में 25 करोड़ रुपए दिए और महज 3 दिन बाद वह 10 अक्टूबर 2022 को गारे पाल्मा 4/6 कोयला खदान हासिल करने में उसे कामयाबी मिली. यही नहीं शीर्ष 30 चंदादाताओं में से कम से कम 14 पर ईडी, सीबीआई, आईटी के माध्यम से छापे मारे गए हैं.

हेटेरो फार्मा और यशोदा अस्पताल जैसी कई कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से चंदा दिया है. इनकम टैक्स विभाग ने दिसंबर 2023 में शिरडी साईं इलेक्ट्रिकल्स पर छापा मारा और जनवरी 2024 में उन्होंने इलेक्टोरल बांड के माध्यम से 40 करोड़ रुपए का दान दिया. फ्यूचर गेमिंग एंड होटल्स ने 1200 करोड़ रुपए से अधिक का दान दिया है जो अब तक के आंकड़ों में सबसे बड़ा दान देने वाला बनता है.

चुनावी बांड की उभरती क्रोनोलॉजी 

ऐसे कई संदिग्ध मामले हैं, जैसे 410 करोड़ रुपए का दान क्विक सप्लाई चेन लिमिटेड द्वारा दिया गया है, यह एक ऐसी कंपनी है जिसकी पूरी शेयर पूंजी MoCA फाइलिंग के अनुसार सिर्फ 130 करोड़ रुपए है. एसबीआई द्वारा प्रदान किया गया डेटा अप्रैल 2019 से शुरू होता है, लेकिन एसबीआई ने मार्च 2018 में बांड की पहली किश्त का बॉन्ड डेटा गायब है. बांड की पहली किश्त में, भाजपा को 95% धनराशि मिली प्राप्त हुआ. स्पष्ट है की किसी ख़ास को बचाने का प्रयास हो रहा है?

इलेक्टोरल बांड डेटा का विश्लेषण विस्तृत होने से भ्रष्टाचार के ऐसे कई मामले स्पष्ट हो सकेंगे. ज्ञात हो एसबीआई की ओर से कुल 22,217 इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए हैं. हर बॉन्ड के पीछे एक घोटाला होने के कयास लगाए जा रहे हैं. क्योंकि ज्यादातर कंपनियों पर ईडी का छापा पड़ने के बाद चंदा दिया गया है. यदि  कंपनी भ्रष्ट थी तो चंदा क्यों लिया गया? ईडी ने उस कंपनी पर कार्रवाई क्यों रोक दिया? उन भ्रष्ट कंपनियों को बड़ा ठेका क्यों दिया गया? 

ईडी के छापे के बाद नेता-विधायक बीजेपी क्यों ज्वाइन कर लेते है? वे कैसे बेआरोप और साफ़ छवि का हो जाता है. जबकि एक आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन को बिना न्यायालय की मध्यस्ता के महज चंद एकड़ ज़मीन खरीद के बे-सर-पैर के आरोप में डेढ़ माह से जेल में डाल कर प्रताड़ित किया जा रहा है. चार्जशीट तक प्रस्तुत नहीं किया जा सका है. जांच तो होनी ही चाहिए, ये लोकतांत्रिक सरकारी संस्थान हैं या सामंतशाही के वह स्थापित लठैत, जो वसूली करते स्पष्ट रूप से प्रतीत हो रहे हैं.

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