हेमन्त सोरेन को झारखण्ड समेत देश के बहुसंख्यक वर्ग अपना नेता मानते हैं. मौजूदा समस्याओं के अक्स में आम चुनाव में हेमन्त की मौजूदगी इन वर्गों के लिए अत्यंत आवश्यक है. ऐसे में SC मामले में जल्द फैसला ले इनकी आशा-विश्वास को मजबूती दे सकता है.
रांची : कथित भूमि घोटाला मामले में ईडी के द्वारा 31 जनवरी 2023 को झारखण्ड के पूर्व आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन की गिरफ्तार हुई थी. विडंबना है कि तब से लेकर 23 अप्रैल तक, जबकि देश अपने सबसे महत्वपूर्ण चुनाव के दौर से गुजर रहा है, पूर्व सीएम के पद पर शुशोभित शख्सियत को लेकर भी फैसला नहीं आ सका है. नतीजतन, कोलिजियम सिस्टम और केन्द्रीय नीतियों के अक्स में बहुसंख्यक जनता की स्मृति न्याय प्रक्रिया के प्रति भ्रम का सच लिए है.
तमाम अचंभित करने वाली परिस्थितियों के बीच झारखण्ड के पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन के द्वारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा एक बार फिर खटखटाया जाना आम जनता को तर्क सांगत प्रतीत हो रहा है. ज्ञात हो, उनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका पर तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया गया है. याचिका में उनके द्वारा झारखण्ड हाई कोर्ट पर आरोप लगाया है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर फैसला सुनाने में देरी हो रही है.
हाई कोर्ट ने 28 फरवरी से ही फैसला सुरक्षित रख रखा है
ईडी कार्रवाई को अवैध व राजनीति से प्रेरित बताते हुए 31 जनवरी 2023 को बतौर सीएम हेमन्त सोरेन के द्वारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांगी गई थी. गिरफ्तारी के बाद भी उनके द्वारा याचिका दायर किया गया. हेमन्त सोरेन की याचिका पर 2 फरवरी 2024, सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सुनवाई करते हुए उन्हें झारखण्ड उच्च न्यायालय जाने का निर्देश दिया गया. झारखण्ड हाई कोर्ट ने सुनवाई के उपरान्त 28 फरवरी से ही फैसला सुरक्षित रख लिया है.
ग्यात हो, देश अपने सबसे महत्वपूर्ण चुनाव के दौर से गुजर रहा है. और दस वर्षों के केन्द्रीय शासन के अक्स में बहुसंख्यक-गरीब आबादी हासिये पर है. ऐसे में चुनाव के मद्देनजर हेमन्त सोरेन जैसे नेताओं की उपस्थिति अति आवश्यक हो चली है. मसलन, राज्य और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए हेमन्त सोरेन के द्वारा वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के माध्यम से जस्टिस संजीव खन्ना-दीपांकर दत्ता की पीठ के समक्ष मामले में जल्द सुनवाई करने का अनुरोध किया गया है.
क्या है पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन का दलील
पूर्व सीएम के वकील कपिल सिब्बल का दलील है कि ‘अनुच्छेद 32 के तहत उनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट जाने का निर्देश दिया. हाई कोर्ट में 27 और 28 फरवरी को मामले की सुनवाई हुई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया. लेकिन, विडंबना है कि मामले में अभी तक फैसला नहीं सुनाया जा सका है. और उनके वकील का कहना है कि मामले में जज कुछ भी नहीं कह रहे.
सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर कपिल सिब्बल के द्वारा स्पष्ट कहा गया कि उनके मुवक्किल हेमन्त सोरेन के द्वारा नई याचिका दायर की है. और वह चाहते हैं कि इस मामले पर शुक्रवार को सुनवाई हो… अगर कुछ और कहेंगे तो यह कहा जाएगा कि न्यायपालिका पर हमला कर रहे हैं. और अगर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाने के लिए हाई कोर्ट को चार सप्ताह का समय दे देता है तो याचिका का मुख्य उद्देश्य विफल हो जाएगा. जो ‘बहुत दुखद’ होगा.
ज्ञात हो, झारखण्ड के पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन को झारखण्ड समेत देश भर के आदिवासी-दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक और गरीब वर्ग अपना नेता मानते हैं. मौजूदा ज़मीनी समस्याओं के अक्स में इन वर्गों को इस महत्वपूर्ण चुनाव के दौर में हेमन्त सोरेन जैसे नेताओं की मौजूदगी की आवश्यकता है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा हेमन्त सोरेन के मामले में जल्द फैसला लेना, न्याय प्रक्रिया के प्रति इन वर्गों की आशा-विश्वास को मजबूत दे सकता है.