देश को झकझोरने वाले त्रिकुट रोपवे हादसे में पीएम या गृह मंत्री का सीएम से बात न करना क्या सामाजिक शिष्टाचार का उल्लंघन नहीं!

झारखण्ड : पीएम की ‘मन की बात’ पर सीएम हेमन्त सोरेन के बयान को प्रदेश भाजपा नेता शिष्टाचार उल्लंघन की में रखा था. तो फिर देश को झकझोरने वाले त्रिकुट रोपवे हादसे में पीएम या गृह मंत्री का मुख्यमंत्री से बात न करना प्रदेश भाजपा के लिए सामाजिक शिष्टाचार का उल्लंघन क्यों नहीं?

रांची : झारखण्ड, देवघर त्रिकुट पहाड़, रोपवे हादसा ने पूऱे देश को झकझोर दिया है. 50 घंटे से अधिक वक्त तक रोपवे में फंसे लोगों की कुशलता के लिए हर तरफ प्रार्थनाएं हुई राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन हर पल चिंतित रहे. साहेबगंज दौरा के बावजूद सीएम व उनकी मंत्रिमंडल रेस्क्यू अभियान पर पैनी बनाए रहेअ और उसी दिन वापस राँची लौटे. लेकिन देश व् राज्य की विडंबना रही कि ऐसे संकट में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री गंभीर नहीं दिखे. 

पीएम या गृह मंत्री द्वारा संवैधानिक मर्यादा और सामाजिक शिष्टाचार के परिधि में उदाहरण पेश नहीं किया गया. उन्होंने मुखिया मामले में बात तक नहीं की. लेकिन प्रदेश भाजपा नेता मामले को सामाजिक शिष्टाचार का उल्लंघन नहीं मानना राज्य के लिए चिंता का विषय है. काया भाजपा के पात्र वीरों व वाक वीरों मामले में सवाल उठाते हुए प्रधानमन्त्री के समक्ष झारखण्ड का पक्ष नहीं रखा जाना चाहिए? एक गंभीर सवाल…?

सीएम सोरेन द्वारा मन की बात पर सवाल उठाये जाने पर प्रदेश भाजपा शोर मचाते लेकिन ऐसे जन मामले में क्यों चुप्पी साध लेते हैं 

ज्ञात हो, 7 मई 2021, कोरोना काल का दूसरा चरण – जब प्रधानमंत्री द्वारा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओड़िशा के साथ झारखण्ड के मुख्यमंत्री से फोन पर एक तरफा बात कर कोविड-19 की स्थिति का जायजा लिया गया था. और मुख्यमंत्रियों की बातें नहीं सुनी जाने के मामले में झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन ने दुःख व्यक्त करते हुए कहा था कि ‘बेहतर होता कि प्रधानमंत्री ‘काम की बात’ करते और ‘काम की बात’ सुनते’ तो झारखण्ड जैसे गरीब राज्य के हित में होता. 

सूत्रों की मानें तो उस वक्त सीएम हेमन्त सोरेन इस लिए दुखी थे कि वह उस एकतरफ कार्यक्रम में राज्य की पीड़ा को प्रधानमंत्री के समक्ष नहीं रख सके थे. क्योंकि प्रधानमंत्री ने सिर्फ अपनी बात की थी. उस वक़्त प्रदेश भाजपा नेताओं हेमन्त सोरेन की आलोचना करते हुए मामले को  सामाजिक शिष्टाचार का उल्लंघन करार दिया था. लेकिन अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री ने त्रिकुट रोपवे हादसा मामले में सीएम से बातचीत नहीं की, तो ऐसे में प्रदेश भजपा को झारखण्ड का पक्ष रखते हुए बताना चाहिए – क्या यह सामाजिक शिष्टाचार का उल्लंघन नहीं है? 

पहली बार नहीं हुआ है जब हेमन्त सोरेन ने निभाया है मुखिया का फर्ज

त्रिकुट रोपवे हादसा पहला मौका नहीं है, जब झारखण्ड के मुख्यमंत्री ने मुखिया का फर्ज निभाया है. ज्ञात हो, हेमन्त सोरेन द्वारा मुख्यमंत्री पद सँभालते ही राज्य समेत देश को कोरोना का प्रकोप झेलना पड़ा. केंद्र सरकार द्वारा गैर भाजपा शासित राज्यों को अकेला छोड़ दिया गया था. ऐसे संकट के दौर में, मुख्यमंत्री के नेतृत्व में झारखण्ड सरकार ने सीमित संसाधनों के बीच संक्रमण से लड़ाई लड़ी. साथ ही जब भी किसी झारखंडी भाई-बहन ने संकट में कहीं से भी मुख्यमंत्री को पुकारा, वह हमेशा उनके साथ खड़े हुए.

सीएम हेमन्त सोरेन ने न केवल राज्य को कोरोना भूखे मरने बचाया, पूरे देश में मिशाल पेश करते हुए प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष प्लेन-ट्रैन की लड़ाई लड़ी और अपने सभी भाई-बहनों की सुरक्षित घऱ वापसी करायी. ज्ञात हो, कोरोना के दूसरे चरण में देश ऑक्सीजन की कमी जूझ रहा था. तब उन्होंने न केवल झारखण्ड को बल्कि अन्य राज्यों को भी ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित कर इस त्रासदिय तकलीफ से उबारने का प्रयास किया. तमाम प्रकरण साबित करते हैं की मुख्यमंत्री झारखंडी समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहते हैं.

त्रिकुट रोपवे हादसे के पीड़ितों और जान बचाने वाले पन्नालाल के लिए खोला गया सरकारी दरवाजा

ज्ञात हो, हेमन्त सरकार में, त्रिकुट रोपवे हादसा में न जान गंवाने वाले, न घायल और और ना ही जीवन बचाने वाले नजर अंदाज हुए. पन्ना लाल पंजियारा को सरकार व सीएम की सराहना मिली. प्रोत्साहन राशि से पन्ना लाल पंजियारा को सम्मानित किया गया. जबकि हादसे में जान गंवाने वालों के परिजनों को सीएम द्वारा पांच-पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद मिली और घायलों को निःशुल्क ईलाज मुहैया हुई.

साथ ही जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि वह 22 लोगों की जिंदगी बचाने वाले पन्ना लाल को तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाये. लेकिन राज्य व देश की विडंबना है कि ऐसे ह्रदय विदारक घटना में भी पीएम या गृह मंत्री और न ही प्रदेश बीजेपी नेताओं की सीएम के कार्यों की सराहना मिली है. हां, भाजपा सांसद निशिकांत दूबे व बीजेपी नेता-कार्यकर्ताओं द्वारा सुरक्षा कार्य में लगे वीरों को मानसिक प्रताड़ना जरुर दी गई.

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