BDO पदस्थापन मामला : बीजेपी नेता आज चुनाव आयोग के अनुमोदन पर ही उठा रहे सवाल!

झारखण्ड : ग्रामीण विकास मंत्रालय की अधिसूचना में साफ़ जिक्र है कि पदस्थापन पर राज्य निर्वाचन आयोग का अनुमोदन प्राप्त है. भाजपा ने अधिसूचना को आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करार दिया है. लेकिन वास्तविकता है कि आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन भाजपा द्वारा हुआ है

संवैधानिक संस्थाओं को पंगु करने का भाजपा पहले ही बना चुकी है रिकॉर्ड

राँची : केंद्र की भाजपा सरकार की नीतियों के अक्स में देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं पर प्रहार हुए हैं, उन्हें पंगु बनाया गया है. महंगाई दर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. देश भर में आम जन जीवन प्रभावित हुआ है, अस्त व्यस्त हुआ है और जनता त्राहिमाम है. नतीजतन, झारखण्ड प्रदेश भाजपा भी केन्द्रीय नीतियों पर चलने को विवश है और वह इस दिशा में राजनीतिक प्रोगेंडा रचने से नहीं चुक रही है.

ताजा मामला – ज्ञात हो, ग्रामीण विकास विभाग द्वारा 32 प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) का पदस्थापना किया गया है. विभाग द्वारा जारी पदस्थापन अधिसूचना में स्पष्ट जिक्र है कि इसमें राज्य निर्वाचन आयोग का अनुमोदन प्राप्त है. लेकिन, भाजपा पंचायत चुनाव के मद्देनज़र अधिसूचना पर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करार दे रही हैं. और इस सम्बन्ध में भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल शिकायत प्रस्ताव के साथ निर्वाचन आयोग कार्यालय तक जा पहुंची .

चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन तो भाजपा के केंद्रीय मंत्री कर रहे 

झारखण्ड भाजपा भले ही झारखण्ड सरकार पर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन का आरोप लगाये, लेकिन वास्तविक तौर पर आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन भाजपा नेताओं द्वारा हुआ है. राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा पंचायत चुनाव की तिथि की घोषणा के साथ ही राज्य में आचार सहिंता लग गया है. इसके बावजूद बीजेपी के केंद्रीय मंत्रियों द्वारा जिलों का दौरा किया जाना, सरकारी योजनाओं की समीक्षा किया जाना. क्या आचार संहिता का सम्मान है. नतीजतन, तमाम संवैधानिक अनियमित्ताओं के मद्देनज़र झारखण्ड मुक्ति मोर्चा द्वारा निर्वाचन आयोग के पास शिकायत दर्ज करानी पड़ी है. 

झारखण्ड सरकार तो संवैधानिक मर्यादाओं के तहत करती रही है काम

हेमन्त सरकार ने अबतक संवैधानिक मर्यादा के तहत ही दायित्वों का निर्वहन किया है. ऐसे में गंभीर सवाल है कि क्या भाजपा नेताओं को भान नहीं कि राज्य निर्वाचन आयोग राज्य सत्ता गठबंधन पार्टियों का अंग नहीं है. आयोग संवैधानिक दायरे पर रहकर निर्णय लेता है. क्या भाजपा नेताओं ने शिकायत करने से पहले जारी पदस्थापन अधिसूचना को गंभीरता से नहीं पढ़ी है? यदि नहीं पढ़ी है तो उसे पढ़ना चाहिए था. इसमें स्पष्ट लिखा है कि 32 प्रखंड विकास पदाधिकारियों का पदस्थापन संबंधी प्रस्ताव एवं प्रारुप पर राज्य निर्वाचन आयोग का अनुमोदन प्राप्त है.

संवैधानिक संस्थाओं पर निरंतर आघात का भाजपा बना रही रिकॉर्ड 

2014, केन्द्रीय सत्ता में आने के बाद से ही भाजपा व उसके अनुषंगी संगठनों द्वारा देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं पर नीतियों के आसरे आघात हुआ है. संस्थाओं की स्वायत्ता समाप्त करने में भाजपा ने रिकॉर्ड बनाया है. इस श्रेणी में पहली पायदान पर संवैधानिक संस्था राज्यपाल है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि आज राज्यपाल की पद की गरिमा पर प्रश्न चिन्ह लगे हैं. राज्यपाल जैसे पद पर आरोप लगे हैं कि वह केन्द्रीय शक्तियों के प्रभाव में गैर भाजपा शासित राज्यों को डिस्टर्ब करती रही हैं. मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे राज्य इसके स्पष्ट उदाहरण है. 

ज्ञात हो, केंद्र सरकार द्वारा ऐसे कई कानून बनाए जा रहे हैं, जिससे समाज में टकराव और उत्तेजना पैदा हो रहा है. तीन कृषि क़ानूनों विधेयक में भी ऐसी ही पटकथा देखी गई. ज्ञात हो विधेयक पारित कराने की प्रक्रिया लोकतंत्र का मुंह चिढाती है. लोकतंत्र में विधेयक पारित कराने की एक स्वस्थ प्रक्रिया है. मौजूदा केंद्र सरकार में तमाम प्रक्रियाओं को दरकिनार किया गया. नतीजतन, देश के ग़रीब किसान एक साल तक आंदोलनरत रहे, जिसमे कई किसानों की जाने गयी है.

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