झारखण्ड : भाजपा ने राज्यपाल अभिभाषण पर सवाल उठा सदन की गरिमा को किया तार-तार. संवैधानिक प्रावधानों से खिलवाड़ कर बीजेपी ने OBC आरक्षण को 27 से 14% किया. स्थानीय नीति को हाईकोर्ट ने किया रदद्. हेमन्त सरकार विधि प्रक्रिया के तहत लेगी निर्णय.
रांची : झारखण्ड भाजपा व उसके नेता, मौजूदा दौर में झारखण्ड समेत देश भर में संवैधानिक प्रावधानों को तार-तार करने के लिए जानी जाती है. जिसके विरुद्ध सवाल बन खड़े कई आन्दोलन तथ्य की तस्दीक कर सकती है. झारखंड विधानसभा के बजट सत्र–2022, झारखण्ड भाजपा ने फिर एक नयी परिपाटी शुरू की है. उसके द्वारा महामहिम राज्यपाल के अभिभाषण पर ही सवाल उठाया गया है. ज्ञात हो, संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सत्र के पहले दिन सदन में राज्यपाल का अभिभाषण होता है. इसमें राज्यपाल द्वारा सरकार के कार्यों को निष्पक्षता के साथ सदन के पटल पर रखा जाता हैं. 25 फरवरी 2022, झारखण्ड विधानसभा के सदन में भी यह संवैधानिक जिम्मेदारी राज्यपाल द्वारा निभायी गयी.
झारखण्ड के राज्यपाल द्वारा सरकार के कार्य, नीति व उपलब्धियों को सदन के पटल पर निष्पक्षता से रखा गया. झारखण्ड भाजपा के सदस्य जो हमेशा संविधान का हवाला देते तो हैं, लेकिन, संवैधानिक प्रावधानों की गरिमा को ठेस पहुंचाते हुए अपना संविधान विरोधी चेहरा पेश किया. और महामहिम राज्यपाल के पद की गरिमा, उसकी निष्पक्षता को ठेस पहुंचाया. भाजपा सचेतक बिरंची नारायण ने 28 फरवरी को ऱाज्यपाल के अभिभाषण पर सवाल उठाते हुए चलते सत्र में कहा कि यह राज्यपाल ने मजबूरी वश, संवैधानिक व्यवस्था के कारण झूठ का पुलिंदा पढ़ा है. मसलन, भाजपा नेताओं ने सदन का ही नहीं देश के विधि-विधान की गरिमा को भी तार-तार किया.
क्या भाजपा के अनुसार राज्यपाल द्वारा गिनायी उपलब्धियां संवैधानिक प्रावधानों के तहत सत्य पर आधारित नहीं थे? …पड़ताल
राज्यपाल के 45 मिनट के अभिभाषण में, उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं. संविधान के निहित प्रावधानों के तहत ऐसा किया. लेकिन उपलब्धियां सत्य आकड़ों पर आधारित हैं. इसमें कृषि ऋण माफी योजना के तहत 2 लाख से ज्यादा किसानों के खातों में 836.57 करोड़ रुपये भेजने, राज्य के सुदूर ग्रामीण टोला में जलापूर्ति की सुविधा उपलब्ध कराने हेतु 4374 पंचायतों में 5 नलकूप प्रति पंचायत स्थापित करने, युवक-युवतियों को सॉफ्ट स्किल की नि:शुल्क ट्रेनिंग देने, बेरोजगार अध्ययनरत युवक-युवतियों के लिए मुख्यमंत्री प्रोत्साहन योजना शुरू करने.
झारखण्ड असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत श्रमिकों के कल्याण के लिए 5 (पांच) योजनाएं चलाने सहित कई योजनाओं का जिक्र किया. ऐसे में भाजपा द्वारा फिर एक बार बिना आंकड़ा पेश किये भ्रम फैलाने का सच सामने आया है. और राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद के प्रति उसकी सोच प्रदर्शित हुई है.
राज्यपाल के नसीहतों को भी अनदेखी करते दिखे भाजपा विधायक
भाजपा विधायक ने केवल राज्यपाल के अभिभाषण पर ही सवाल नहीं उठा रहे हैं. राज्यपाल के नसीहतों को भी अनदेखी करते दिखे हैं. ज्ञात हो अभिभाषण में राज्यपाल ने विधायकों को नसीहत दी थी कि वे अपने कार्य और आचरण से सदन की गरिमा बनाए रखें. राज्यपाल ने यह नसीहत तमाम सत्ता और विपक्ष के सभी जनप्रतिनिधियों को दिया था. लेकिन, विपक्ष में बैठे भाजपा विधायक ठीक इसके उलट ही करते दिख रहे हैं. सदन के अंदर-बाहर दोनों ही जगह बेवजह हंगामा कर सत्र को बाधित करने का प्रयास हो रहा हैं. जिससे सपष्ट होता है कि विकास की ओर बढ़ते राज्य सरकार राज्य सरकार कदम को विपक्ष रोकना चाहती है.
ओबीसी आरक्षण को कम करने का काम भाजपा की बाबूलाल सरकार में हुआ था
सदन के बाहर, विधानसभा प्रवेश द्वार पर भाजपा विधायक द्वारा हर दिन अपने ही फैलाए परपंच के मद्देनजर विभिन्न मांगों को लेकर धरना दिया जा रहा है. मांग है कि सरकार ओबीसी आरक्षण को 27% सुनिश्चित कर पंचायत चुनाव कराएं. साथ ही 1932 का खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन उपरोक्त दोनों मांगों पर भाजपा की गंदी राजनीति साफ दिखती है.
दरअसल ओबीसी वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण को 14 प्रतिशत करने का काम पूर्व के बाबूलाल मरांडी सरकार में हुआ था. भाजपा नेतृत्व वाली बाबूलाल मरांडी सरकार में आजसू नेता सुदेश महतो दूसरे नंबर के नेता थे. साफ है कि इन्होंने भी ओबीसी आरक्षण को कम करने की दिशा में बराबर की भूमिका निभाई थी. जबकि हेमन्त सरकार हमेशा से ही OBC आरक्षण बढ़ाने के पक्षधर रही है. सरकार का कहना है कि वह इस समस्या का स्थाई हल पूरी विधि प्रक्रिया के तहत करेगी.
स्थानीय नीति में भविष्य में कोई परेशानी नहीं हो, मजबूत व्यवस्था के साथ सरकार लागू करेगी -सीएम हेमन्त सोरेन
वर्तमान में भाजपा विधायक यकायक 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति की पक्षधर दिखने लगी है. लेकिन सर्वविदित है कि उनके सरकार (रघुवर दास सरकार) में बनाये स्थानीय नीति को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था. हेमन्त सोरेन कह चुके हैं कि उनकी सरकार न्यायालय के फैसले के सम्मान में फैसला लेगी. सीएम का ऐसा करने के पीछे दो प्रमुख कारण है. पहला वह विस्थापन की समस्या का स्थाई हल निकालना चाहते हैं. दूसरा उनके द्वारा बनायी गयी स्थानीय नीति पर भविष्य में कोई विवाद न हो. और वह स्थानीय नीति मज़बूती से लागू हो जिसमें झारखंडियत का अधिकार भी संरक्षित रहे और राज्य के विकास में मजबूत कड़ी साबित हो.