झारखंड में कम सीटें जितने के बाद भी हेमंत ने आरजेडी को मंत्रिमंडल में दिया है स्थान
करीब 15 सालों से बिहार की सत्ता पर काबिज है नीतीश कुमार
राँची। बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पूरे राज्य का सियासी पारा उफान पर है। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के पुराने सहयोगी दल (जीतनराम मांझी जैसे नेता) युवा नेता तेजस्वी यादव का साथ छोड़ रहे है। वहीं सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) अपने 15 वर्षों से बरकरार किले को बचाने की हर संभव प्रयास में लगी है।
बिहार में भी झारखंड के ही तर्ज पर महागठबंधन पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरने का संकेत दे रहे हैं। हालांकि सीट बंटवारे पर पेंच फंसने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन, आपसी स्वार्थ को दरकिनार कर आरजेडी अगर झारखंड के तर्ज पर सीट बँटवारे को अंजाम देता है, तो निश्चित रूप से नीतीश राज के खात्मे में महागठबंधन को ज्यादा परेशानी नहीं होगी।
झारखंड में हेमंत ने स्वार्थ से परे हो कर सीट बँटवारे को दिया था अंजाम
ज्ञात हो कि झारखंड की प्रमुख विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने स्वार्थ से परे होकर एक माह पूर्व ही सीट बँटवारे का कार्य पूर्ण किया था। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने झारखंड में जनाधार खो चुके आरजेडी को न केवल 7 सीट देकर परिपक्व राजनीति का परिचय दिया था। बल्कि केवल 1 मात्र सीट जितने वाले आरजेडी को मंत्रिमंडल में स्थान देकर गठबंधन धर्म का पालन भी किया था।
युवा नेता हेमंत सोरेन के परिपक्वता का ही परिणाम था कि तथाकथित मोदी लहर में भी महागठबंधन ने रघुवर सरकार को सत्ता से बेदखल किया। बिहार में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव हेमंत की तरह ही युवा है। महागठबंधन में उनका मुख्यमंत्री चेहरा बनना लगभग तय है। ऐसे में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भांति ही सीट बँटवारा कर कुशल राजनीति का परिचय दें। जिससे नीतीश काल की समाप्ति संभव हो सके।
नीतिश को सत्ता से बेदखल करने के लिए महागठबंधन जरूरी
बिहार के सत्ता पर नीतिश कुमार पिछले 15 वर्षों से काबिज है। उन्हें सत्ता से हटाने के लिए वहां भी झारखंड के ही तर्ज पर महागठबंधन को अस्तित्व में लाना अतिआवश्यक है। बिहार के वर्त्तमान राजनीतिक घटनाक्रम से साफ़ प्रतीत होता है कि इस बार तीन युवा नेता -कांग्रेस – राहुल गांधी, आरजेडी – तेजस्वी यादव व झामुमो – हेमंत सोरेन मिलकर नीतीश सरकार के खिलाफ हमला बोलेंगे। और संभवतः बिहार की धुरी जदयू-भाजपानीत एनडीए बनाम यूपीए महागठबंधन होगी।
जेएमएम के माँगों पर विचार कर सकती है आरजेडी
झारखंड में बीजेपी पटकनी दे सत्ता पर काबिज होने वाले जेएमएम के हौसले बुलंद हैं। जेएमएम महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने संकेत दिए हैं कि इस बार के बिहार चुनाव में जेएमएम भी महागठबंधन के विपक्षी मोर्चा में मज़बूती से शामिल होगा। और उनकी पार्टी 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की दावेदारी पेश करेगा।
सूत्रों की माने तो झामुमो तारापुर, कटोरिया, मनिहारी, झाझा, बांका, ठाकुरगंज, रूपौली, रामपुर, बनमनखी, जमालपुर, पीरपैंती और चकाई पर प्रत्याशी उतारने के रणनीति पर जोरदार काम कर रही है। ये सभी सीटें झारखंड की सीमा से लगे हैं और इनकी पकड़ भी दिखती है। नीतिश के 15 साल के किले को ध्वस्त के मद्देनज़र तेजस्वी यादव जेएमएम के मांगों पर प्रमुखता से विचार कर सकते। इसके भी संकेत मिल रहे हैं।
इन 12 सीटों पर आदिवासी वोटर है फैक्टर, जेएमएम के साथ आने पर आरजेडी को 40 सीटों हो सकता है फायदा
जेएमएम की बिहार इकाई प्रभारी प्रणव कुमार ने बताया, ‘बिहार में जेएमएम कुल 40 सीटों पर आरजेडी को फायदा पहुंचा सकता है। क्योंकि यहाँ आदिवासी वोटर की मात्रा अधिक हैं। जिन 12 सीटों पर हम दावा कर रहे हैं, वहां पिछले चुनाव में हम तीसरे स्थान पर रहे हैं। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार में जेएमएम का स्थिति ठीक नहीं थी। 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में जेएमएम 32 सीटों पर चुनाव लड़ा था। हालांकि सभी सीटों पर पार्टी को हार मिली थी, लेकिन 1,03,946 वोट मिले थे।