नेता प्रतिपक्ष मामला – हाईकोर्ट के निर्णय से बीजेपी की बदले की राजनीति के आरोप का हुआ पर्दाफाश

क्या बीजेपी के दिग्गज नेता प्रतिपक्ष की जंग लड़ रहे बाबूलाल मरांडी की मानसिक स्थिति को बिगाड़ने का षड्यंत्र रच रहे हैं!

रांची। झारखंड की राजनीतिक पृष्ठभूमि में साल 2020 के घटनाक्रम महत्वपूर्ण है। जहाँ एक तरफ भाजपा का घमंड व भ्रम की राजनीति सतह पर उभरी तो वहीं विधानसभा सभा में बजट सत्र व सरना आदिवासी धर्मकोड जैसे महत्वपूर्ण बिल बिना नेता प्रतिपक्ष के पास हुआ। विधानसभा अध्यक्ष द्वारा आधिकारिक तौर पर बीजेपी में इम्पोर्ट हुए बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष पद की स्वीकृति नहीं मिली। बजट सत्र बीजेपी नेताओं की बेवजह हंगामें की शिकार हुई। मामला सुप्रीम व हाईकोर्ट तक पहुंचा। हाईकोर्ट के एक अहम निर्णय से बीजेपी का सत्ता पक्ष पर बदले की राजनीति के आरोप सिरे से खारिज हुए। 

मुख्यमंत्री के चाह में बीजेपी में शामिल हुए बाबूलाल मरांडी को केवल विधानसभा अध्यक्ष ही नेता प्रतिपक्ष मानने से इनकार नहीं किया। पार्टी के अंदर गुटबाजी की उठान भी दर्शाता है कि कार्यकर्ता उन्हें भाजपा नेता नहीं मानते। अंदरूनी नाराजगी के तहत भाजपा कार्यकर्ताओं का स्पष्ट मानना है कि बाबूलाल व्यक्तिगत रूप से पार्टी में अलग संगठन संचालित कर रहे हैं। और पार्टी में उनके साथ शामिल हुए जेवीएम कार्यकर्ता भाजपा के पुराने नेताओं पर हावी है।

ज्ञात हो कि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश भी एक बार जेवीएम के नेता रह चुके हैं। ऐसे में बाबूलाल और उनके बीच का प्रेम प्राकृत है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को बाबूलाल मरांडी फूटी आँख नहीं सुहाते है। ऐसे में भाजपा के नेता ही बाबूलाल की मानसिक स्थिति खराब करने पर तुले हैं। ज्ञात हो बाबूलाल जी पिछले कई बयान इसके स्पष्ट उदाहरण हो सकते हैं।

दल-बदल मामले में विधानसभा अध्यक्ष अब कार्रवाई कर सकते हैं  

ज्ञात हो कि मंगलवार को एक अहम निर्णय में हाईकोर्ट ने दलबदल मामले में, बाबूलाल मरांडी के खिलाफ स्पीकर की कार्रवाई पर लगाई रोक को हटा लिया है। जो बाबूलाल के लिए बड़ा झटका हो सकता है। विधानसभा अध्यक्ष दल-बदल मामले में अब कार्यवाही को आगे बढ़ा सकते हैं। बीजेपी विधायक बिरंची नारायण ने पार्टी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिलाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 

खुद की गलती की सजा भुगत रहे हैं बाबूलाल और उनकी पार्टी   

बीजेपी भले ही सत्ता पक्ष पर जो आरोप लगाए, लेकिन हकीकत यह है कि बाबूलाल मरांडी और बीजेपी अपनी ही गलती का भुगतान भर रही है। 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी को बहुमत के लिए 41 सीटों की जरूरत थी। बाबूलाल मरांडी के तत्कालीन पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के 6 विधायकों की खरीद-फ़रोख्त बीजेपी ने एक साथ की थी। मामला दल-बदल कानून के तहत चला गया था। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव (बीजेपी नेता) को लेकर कोर्ट में मामला चलता रहा। चार साल के बाद दल-बदल को मंजूरी मिली थी। 

2019 के विधानसभा चुनाव के बाद बदली राजनीतिक परिस्थिति में बाबूलाल मरांडी झारखंड विकास मोर्चा को भंग करते हुए बीजेपी में शामिल हो गए। बाद में जेवीएम के शेष दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने कांग्रेस को अपना समर्थन दिया। ऐसे में मामला एक बार फिर दल-बदल कानून का बन गया। जहाँ अब एक बार फिर विधानसभा अध्यक्ष को ही तय करना है कि बाबूलाल की विधायकी जाएगी या फिर उनके दो विधायकों की। या फिर दोनों को ही मंजूरी मिलेगी।

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