मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का विपक्ष को गार्जियन विहीन कहना दूरदृष्टि का परिचायक

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नहीं बल्कि संघ को जवाब देना चाहिए कि उसकी ट्रेनिंग में क्या खोट है कि झारखंड भाजपा में एक भी नेता प्रतिपक्ष बनने के गुण वाले नेता शेष नहीं बचे! और गार्जियन विहीन है? क्यों बीजेपी को बहार नेता इम्पोर्ट करने पड़ रहे हैं

किसी भी मीडिया हाउस के लिये ये बड़ी खबर हो सकती है, जब उसे किसी राज्य में भाजपा जैसे दल कहे कि सत्ता पक्ष के इशारे पर ही नेता प्रतिपक्ष की घोषणा नहीं हो रही। यह ठीक वैसा ही हो सकता है जैसे 31 मार्च 2019 को दिल्ली में एक न्यूज चैनल के उद्घाटन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पहुंच जाना। एतराज हर किसी को तब होना ही चाहिए, जब वह मीडिया हाउस भाजपा से सवाल न करे कि कैसे? क्यों देश के एक बड़े पार्टी के पास झारखंड में नेता प्रतिपक्ष देने लायक नेता नहीं हैं? क्यों संविधान के अधिनियमों को किनारे कर बाहर से लाये नेता को वह नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहते हैं?     

झाविमो के तीन विधायक में से दो विधायक कांग्रेस जबकि एक बाबूलाल ही गए भाजपा में 

किसी भी पार्टी के दो तिहाई विधायक जिधर विलय करते हैं, उसे ही मूल विलय माना जाता है। यही कारण है कि विधानसभा अध्यक्ष से पार्टियों द्वारा गुज़ारिश किया गया था कि बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया जाए। ज्ञात हो कि झाविमो के तीन विधायक में से दो विधायक कांग्रेस में शामिल हुए, जबकि बाबूलाल जी अकेले ही भाजपा में गए। और स्पीकर ने मामले को समझते हुए हल निकल तक रोक लगाई। अब भाजपा झारखंड प्रदेश में अपने चिर परिचित अंदाज में साफ़ तौर पर भ्रम फैलाती दिखती है। 

ऐसे में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना कि विपक्ष के नेता गार्जियन विहीन हैं उनके दूरदृष्टि का परिचायक हो सकता। लोकतंत्र के विरुद्ध कतई नहीं हो सकता है। यह तो संघ जैसे यूनिवर्सिटी को बताना चाहिए कि क्यों उनकी शिक्षा झारखंड में फ़ैल हो गयी? क्यों उनके द्वारा ट्रेंड किये गए नेताओं में नेता प्रतिपक्ष बनने के गुण मौजूद नहीं है? क्यों उसे झारखंड में 14 वर्ष शासन करने के बावजूद विधायक दल के नेता चुनने के लिए बाहर से नेता इम्पोर्ट करना पड़ रहा है? इन सवालों का जवाब देने के बजाय भाजपा ने सीधा मुख्यमंत्री पर आरोप लगा भ्रम फैला रही है और सीधे तौर पर अपनी नाकामी छुपाने का प्रयास कर रही है।

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