राष्ट्रीय दल ( भाजपा- कांग्रेस ) आखिर क्षेत्रीय दल की गरिमा क्यों भूल जाते हैं

क्या राष्ट्रीय दल कांग्रेस ने ही सर्व प्रथम सीएनटी/एसपीटी एक्ट एवं विल्केंसन रूल्स पर हमला शुरू किया 

झारखंड के केनवास पर गठबंधन पर मचे भूचाल के बीच कांग्रेस का राष्ट्रीय दल होने का दंभ को देखकर यह आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश की दोनो पूंजीवादी एवं मनुवादी विचारधरा से लैस राष्ट्रीय पार्टियां ( भाजपाकांग्रेस राष्ट्रीय दल ) किसी भी सूरत में यहाँ के आदिवासियोदलितमूलवासियों के हाथों में सत्ता देने के पक्षधर नहीं दिखती है। केवल इसलिए कि ऐसा करने से ये यहाँ कि धरती एवं धरती में दबी प्राकृतिक संसाधनों का बन्दरबाँट अपने पूंजीपति आकाओं के साथ कैसे कर पायेंगी!

आज झारखंड के परिपेक्ष में, सोशल मीडिया में झारखंडी मानसिकता वाली जनता लगातार चेता रहे हैं कि कांग्रेसराष्ट्रीय दल ) जिस प्रकार 7/4, 2/1 का फार्मूला बना रही है, उससे झारखंडी आशंकित के साथ अचंभित भी है ऐसे में महत्वपूर्ण यह है कि आम झारखंडी झामुमो को इन गैरझारखंडी पार्टियों (भाजपाकांग्रेस राष्ट्रीय दल ) के बीच किस प्रकार की राजनीति करते हुए देखना चाहती है

अगर झारखंड नामधारी अन्य दलों कि बात की जाए तो आजसू हमेशा से ही भाजपा की पिछलगू रही है। जब स्थानीयता का सवाल हो, जब सीएनटी/एसपीटी एक्ट में संशोधन का सवाल हो, चाहे 13-11 अधिसूचित और गैराधिसूचित जिलों में झारखंडियों को बांटने की बात रही हो तो आजसू के ही चन्द्र प्रकाश चौधरी ने कैबिनेट में बैठकर मुहर लगाई और सुदेश महतो जनता के बीच जा कर कहते रहे कि भाजपा द्वारा स्कूलों को बंद करने का लिया गया निर्णय गलत है। तो सुदेश जी यह कहते वक़्त क्यों भूल जाते हैं कि स्कूल मर्जर के नाम पर स्कलों को बंद करने वाले फरमान पर उनके ही दल के चौधरी साहब ने ही अपने हस्ताक्षर दिए हैं। इस प्रकरण में जनता ने आजसू के दोहरे चरित्र उभार को कहीं न कहीं देखा ही है।

अगर झारखंड विकास मोर्चा को टटोलें तो ज्ञात होता है कि यह संघ के गर्भ से निकली पार्टी है। इसके सुप्रीमो अपने जीवन के बेहतरीन 30 वर्ष हाफ पेंट पहनकर झोला टांगकर संघ के प्रचार के लिए दिए हैं। तो यह समझा जा सकता है कि उनका संघ के प्रति मोह होना जायज भी है। वो भाजपा को भले ही प्रत्यक्ष मदद न करते हो परन्तु परोक्ष रूप से तो जरूर मदद करते दिखते हैं। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनके विधायक जीतते ही भाजपाई हो जाते हैं। दिखावे के तौर पर चिट्टी प्रकरण को भी यह मीडिया के बीच उछालते हैं परन्तु अमित शाह के दौरे के बाद सब सामान्य हो जाता है। जिस भाजपा को झारखंडी समाज अपना दुश्मन मानता है। जिसने झारखंडियों को सरनाक्रिश्चन में बांटा, हिन्दूमुसलमान में बांटा और अब बाहरीभीतरी में बाँट रहे हैं, उसके साथ जेवीएम का किसी भी प्रकार के सहयोग का कदम उठाता है तो झारखंडी जनता को जरूर यह लगता है कि जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल जी का चेहरा झारखंडियों को ठगने के लिए भाजपा द्वारा प्रतिरोपित है।

तात्पर्य यह है कि गठबंधन हो, भाजपा विरोधी मतों का विभाजन रुके, इसका दायित्व भी तमाम सेकुलर विचारधारा वाली पार्टियों का है। लेकिन उस सेकुलर विचाधारा के साथसाथ झामुमो का दायित्व झारखंड के मूलवासीआदिवासी के प्रति भी सर्वोपरि एवं महत्वपूर्ण है। इस दायित्व के निर्वहन के लिए झामुमो को दबाव में एक ऐसा समझौता करना पड़े जिसमें झारखंडियों का आत्मसम्मान ही गिरवी हो जाए, तो वह कतई झारखंडियों के हित में नहीं हो सकता। महत्वपूर्ण यह है कि एक झारखंडी, मूलवासीआदिवासी के हितों के बारे मे विचार करते हुए वह झामुमो से क्या अपेक्षा रखता है। वास्तविक अपेक्षा तो यही है कि होने वाले गठबंधन में झारखंडियतमूलवासियतआदिवासियत ही गोण न हो जाये। और यहाँ के सत्ता पर फिर से वैसे लोगों का कब्ज़ा न हो जिसके खिलाफ हमारे पूर्वजों ने कठिन लड़ाईयां लड़ी

हमें ज्ञात है कि अंग्रेजों का शासन पूरे हिंदुस्तान में था लेकिन वे भी झारखंड को विशिष्ठ मानते हुए तीनों प्रमंडलों (छोटानागपुर, संथाल, कोलहान) के लिए अलगअलग क़ानून बनाए। संथाल प्रगना एवं छोटानागपुर की डेमोग्राफी (जनसंख्याकी) या यहाँ के सुरक्षा कवच के रुप में सीएनटी/एसपीटी एक्ट एवं कोलहान के जलजंगलज़मीन को लेकर, वहां के लोगों के लिए विल्केंसन रूल्स बनाया। विडंबना देखिये अंग्रेजों के जाने के बाद सत्ता पर बैठे भूरे अंग्रेजों ने येनकेन प्रक्रेण सीएनटी/एसपीटी एक्ट   एवं विल्केंसन रूल्स  पर हमला शुरू कर दिया।कांग्रेस तो फिर भी यह छुपतेछुपाते करती थी परन्तु भाजपा तो नंगा नाच कर रही है।

अडानी को ज़मीन चाहिए तो एसपीटी ( सीएनटी/एसपीटी एक्ट ) ताक पर रखा गया और अगर बड़े पूंजीपति को छोटानागपुरकोल्हान में ज़मीन चाहिए तो एसपीटी ( सीएनटी/एसपीटी एक्ट विल्केंसन रूल्स को ताक पर रखा गया। इन सब के बीच झारखंडी जमात पर होने वाले चौतरफे हमले से बचाने कि जवाबदेही किसी दल पर है तो निःसंदेह झामुमो पर ही है। और यह इसलिए भी है कि पिछले कतिपय गलत निर्णयों के बावजूद झारखंडी अवाम झामुमो पर सर्वाधिक भरोसा और विश्वास करती है। धर्म के नाम पर भाजपा ने वोट प्रतिशत जरूर बढ़ा लिए परन्तु आज भी मूलवासीआदिवासी विचारधारा कि बात अगर आये तो झारखंड मुक्ति मोर्चा ही श्रेष्कर दिखती है।

यह तमाम चीजें कहीं न कहीं यह साबित करती है कि झामुमो की जवाबदेही, झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रति झाखंड के लोगों की आकांक्षा लगातार बढती ही जा रही है। दिशोम गुरु शिबू सोरेन के नेतृत्व में झामुमो ने अलग राज्य निश्चित रूप से हासिल किया लेकिन अलग राज्य के लिए बना संगठन अलग राज्य के सत्ता पर काबिज होने कि लडाई में कहीं न कहीं पिछड़ता गया। इस विफलता या बिखराव की वजह केवल रानीतिक चूक रही। जिन राष्ट्रीय दल /दलों के साथ अपने शर्तों पर समझौता करने कि जरूरत थी वहां झामुमो ने कहीं न कहीं समान भाव से या उन्हें बड़ा भाई मान कर समझौता किया। जिसका खामियाजा झारखंड की जनता आज तक भोग रही है।

दरअसल, हालिया दौर में भाजपा का उभार तमाम दलों को निश्चित तौर पर परेशान कर रहा है। इसलिए इस दौर में झामुमो कि जवाबदेही का पैमाना और अधिक बढ़ गयी है। इसलिए इस दौर में अगर भाजपा विरोधी मतों का विभाजन नहीं रुका तो भाजपा को रोकना मुश्किल है। इसी विभाजन को रोकने के नाम पर राष्ट्रीय दल कांग्रेस जो न मानने वाली गैरजरूरी शर्तें थोपने का प्रयास कर रही है, जिसमे सबसे बड़ा कारण और कारक जेवीएम सुप्रीमो बन रहे हैं। कहीं न कहीं भाजपाई सोच, गंगाधर शक्तिमान वाला फार्मूला को मजबूत करने कि कवायद है।

बहरहाल, आज तमाम झारखंडी समाज बड़ी आशा भरी निगाहों से झामुमो कि और देख रहा है। वर्तमान समय में झारखंडी सम्मान संप्रभुता को सर्वोच्च स्थान देते हुए राजनैतिक समीकरण इस प्रकार विकसित किये जाए जहाँ झारखंडी हितों कि संरक्षा महत्वपूर्ण एवं सर्वोपरि हो।

चुनाव तो आतेजाते रहेंगे, झारखंड रहेगा, झारखंडी रहेंगे तभी तो झारखंड के मायने भी होंगे। अगर आने वाले पांच वर्ष फिर से भाजपा को मिल जाते है तो यहाँ पर कोई भी चीज पहले जैसी नहीं रहेगी। चाहे पूंजीपतियों का यहाँ के संसाधनों पर कब्ज़ा हो, चाहे यहाँ कि सरकारी नौकरियों पर बाहरियों का कब्ज़ा हो या यहाँ के संसाधनों पर बाहरियों का हक़ हो। झारखंडी इस बात को बड़े स्पष्ट रूप से मानता है कि यहाँ के संसाधनों पर सबसे पहला हक़ झारखंडपुत्रों – पुत्रियों का है। और उन्हीं के हितों को बचाए रखने की सबसे बड़ी जवाबदेही झामुमो की है। एक झारखंडी सोच रखने वाले कि हैसियत से इस लेख के माध्यम से यह विचार प्रकट करना चाहता हूँ कि झामुमो के कार्यकारी अद्यक्ष, तमाम नेता जो झारखंड की माटी से प्रेम रखते है। ऐसा कदम उठायें जिससे झारखंडी स्मिता को चोट न पहुंचे।

नोट : सीएनटी/एसपीटी एक्ट एवं विल्केंसन रूल्स : सीएनटी/एसपीटी एक्ट – संथाल प्रगाणा एक्ट संथाल प्रमंडल एवं छोटा नागपुर टेन्डेन्सी एक्ट छोटा छूटा नागपुर प्रमंडल के लिए  , विल्केंसन रूल्स कोलहान प्रमंडल के लिए – उस वक़्त तीन ही प्रमंडल थे।विल्केंसन रूल्स पर सामग्री हो तो मुहैया कराएं। मुझे विल्केंसन रूल्स पर सामग्री प्राप्त होते ही लेख लेकर उपस्थित होऊंगा।  

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