झारखंड में क़ानून व्यवस्था की हालात कितनी संगीन है, इसका अनुमान केवल इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि चर्चित बकोरिया काण्ड ( फर्जी मुठभेड़ ) की जांच सीबीआई से कराने का फैसल झारखंड उच्च नयायालय को लेना पड़ता है। झारखंड प्रदेश में नक्सलवाद को खत्म करने के नाम पर मुख्यमंत्री रघुबर दास की पुलिसिया मुहिम लगातार जारी है। फिल्मों में निभाये जाने वाले फर्जी मुठभेड़ के काल्पनिक किरदार झारखंड सरकार अपने शासन प्रणाली में चरितार्थ करती दिख रही है। नक्सल ख़त्म करने के नाम पर पुलिस प्रशासन द्वारा 12 निर्दोष लोगों मार दिया जाना, नक्सलवाद का खात्म नहीं दर्शाता बल्कि इसके जड़ में खाद-पानी दिए जाना दर्शाता है।
इसके दूसरे मायने यह भी हो सकते हैं कि नक्सल के नाम पर हुए और भी फर्जी मुठभेड़ मोती लाल बासकी जैसे अन्य प्रकरणों के निष्पक्ष जाँच की राह आसान करती दिखती है। झारखंड की स्थिति यह है कि एक गरीब रिक्शा चालक भूख मिटाने के लिए अपनी दस माह की बच्ची को दस रुपये में बेचने पर मजबूर हो जाता है और यह सरकार भुखमरी मिटाने के बजाय जिन्दा रहने के लिए उठी आवाजों को कुचलने के लिए अपनी दमन-मशीनरी का इस्तेमाल खुले-आम करने से जरा भी गुरेज नहीं करती।
ज्ञात हो कि 8 जून 2015 को पलामू जिले के बकोरिया ( बकोरिया काण्ड ) में नक्सली कहकर 12 लोगों को पुलिस ने मार दिया था। इस घटना के बाद से यह पूरा प्रकरण कई संदिग्ध सवालों के घेरे में था। इसके (बकोरिया काण्ड – फर्जी मुठभेड़ ) विरोध में झामुमो से नेता विपक्ष हेमंत सोरेन ने सड़क से सदन तक अपने सवालों से सरकार को घेरा था। परन्तु इस कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ मामले की जांच अब माननीय उच्च नयायालय द्वारा सीबीआइ को सौपे जाने से राज्य सरकार की पुलिस और सीआइडी जैसी जांच एजेंसियों की विश्वसनियता पर गंभीर सवाल जरुर खड़े हुए है।
वरीय अधिवक्ता आरएस मजूमदार व अधिवक्ता प्रेम पुजारी राय तथ्यों के माध्यम से पक्ष रखते हुए ( उच्च नयायालय ) अदालत में यह साबित किया कि बकोरिया काण्ड की पुलिसिया जांच निष्पक्ष नहीं है और पुलिस मिली हुई है। यह मुठभेड़ पूरी तरह से फर्जी है। जबकि तत्कालीन एडीजीपी एमवी राव के लिखे पत्र में डीजीपी डीके पांडेय का उनपर धीमी जांच करने के लिए दवाब बनाने का उल्लेख होना, इसके अलावा एडीजी रेजी डुंगडुंग, डीआइजी हेमंत टोप्पो, आइजी सुमन गुप्ता समेत आठ अफसरों का तबादला कर दिया जाना, पूरे मामले को संदिग्ध बनता है।
बहरहाल, रघुबर सरकार की पुलिस उनके आवास के सामने हुए हत्या का उद्भेन तो कर ही नहीं पाती और दावा करती है झारखंड की क़ानून व्यवस्था दुरुस्त करने की। ऐसे में देखना यह है कि खुद अपनी ही दामन पर लगे दाग को साफ़ करने के जद्दो-जहद में उलझी सीबीआई बकोरिया काण्ड ( फर्जी मुठभेड़ ) के कथित 12 निर्दोषों का जाँच एवं उच्च नयायालय का मान कैसे रखती है ! वैसे भी सीबीआई एजेंसी के प्रति आम धारणा यह है कि यह एजेंसी भी सरकार के रुख के हिसाब से काम करती है।