झारखण्ड : माझी परगना महाल व्यवस्था होगा मजबूत. एसटी समुदाय के एकजुटता पर जोर. पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था का होगा सशक्तिकरण. ग्राम प्रधानों के अधिकारों में होगी बढ़ोतरी.
रांची : झारखण्ड एक आदिवासी-दलित बाहुल्य प्रदेश है और खनिज संपदायुक्त राज्य भी है. यहाँ की अधिकाशं भूमि पर इन्हीं वर्गों का वास है. मसलन, यह प्रदेश आरएसएस और बीजेपी के सामंती नीतियों के लिए आसान मैदान कभी नहीं रहा. मसलन, आरएसएस और बीजेपी के एजेंडे में वनवासी, कमल कलब, लैंड-बैंक, सरना धर्म कोड़ न देना, 1932 आधारित स्थानीय से दूरी, बाहरियों का समर्थन, अशिक्षा, पलायन जैसी मूलवासी विरोधी नीतिययां प्रमुखता से हावी रहे हैं.
लेकिन, इन सामंती प्रोपोगेंडा के राहों में दिशोम गुरु के बाद पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन के लोकहित नीतियां मजबूत दीवार साबित हुए है. जिससे न केवल ज़मीन लूट, मेजर वर्ग में आने वाले संसाधन लूट पर भी लगाम लगाना शुरू हुआ. मूलवासियों के अधिकारों – शिक्षा, स्वास्थ्य, नियुक्ति, इतिहास, परम्परा संरक्षण देखने को मिले. राज्य की ग्रामसभा व्यवस्था को मजबूती मिली. संभी वर्गों को एकजुट करने का प्रयास हुआ. जिसे आज विधायक कल्पना सोरेन के द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है.
सीएम चंपाई की उपस्थिति में परगना महाल का 14वां महासम्मेलन
सीएम चंपाई सोरेन – माझी परगना व्यवस्था के मजबूती से गरीबी आदिवासी समाज आगे बढ़ेगा. राज्य की आदिवासी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था की सशक्तिकरण हेतु सरकार प्रतिबद्ध है. ग्राम प्रधानों को और अधिकार दिए जायेंगे. आदिवासी समुदाय प्राचीन काल से झारखंड और राज्यों के साथ नेपाल और भूटान जैसे कई देशों में निवास करता आ रहा है. आज इसपर खतरा मंडरा रहा है. मसलन, आदिवासी परंपरा, भाषा औऱ कला-संस्कृति को संरक्षित करने की आवशयकता है.
आदिवासियत संरक्षण हेतु देश भर के आदिवासियों को होना होगा एकजुट
चंपाई सोरेन – आज सामंतवाद के द्वारा आदिवासियों के सामाजिक-पारंपरिक और आर्थिक व्यवस्था से खिलवाड़ हो रहा है. इसलिए सभी आदिवासी समुदाय को अपने हक-अधिकार के लिए एकजुट होना होगा. आदिवासियों में सामाजिक एकता और वर्ग चेतना की आवश्यकता है, यह तभी संभव होगा जब सभी वर्ग के आदिवासी पूरी ताकत के साथ अपनी आवाज बुलंद करेंगे. इस दिशा में सरना/आदिवासी धर्म कोड के लिए सरकार के तरफ से प्रयास है. वन अधिकार और सीएनटी तथा एसपीटी एक्ट के संरक्षण के हेतु सरकार का विज़न स्पष्ट है.