झारखण्ड : पूरे प्रकरण में हेमन्त सोरेन का झारखण्ड के प्रति समर्पण समझा जा सकता है. उन्होंने केन्द्रीय साजिश को खुद झेला, जेल गए लेकिन राज्य को वैकल्पि सीएम दे सरकारी काम-काज की गति को जारी रखा.
रांची : केन्द्रीय व्यवस्था के अमृतकाल युग में बिना अपराध के एक सीएम पद को लोकतांत्रिक मूल्यों के अक्स तले सुशोभित करने वाले आदिवासी को 5 माह जेल में रखा गया. ऐसे में महत्वपूर्ण सवाल यह खड़ा हो चला है कि क्या ईडी के जिन अफसरों ने हेमन्त सोरेन को जेल भेजा उनके विरुद्ध क्या कार्यवाही होगी? क्या पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन के द्वारा ईडी अधिकारियों पर लगाया गया एससी-एसटी अट्रोसिटी एक्ट को सत्य मान कर कार्रवाही होगी?
हेमन्त सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन, उनके बच्चों, उनके वृद्ध माता-पिता और राज्य की जनता को जो मानसिक, आर्थिक और समाजिक यंत्रणा झेलनी पड़ी उसकी भरपाई कौन करेगा? साथ ही उनकी पार्टी के विचारधारा को मानने वाले नेता-कार्यकर्ताओं और समर्थकों को लोकसभा चुनावों में जो क्षति हुई है उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? वह तो हेमन्त सोरेन की कुशलता और झारखण्ड के प्रति समर्पण है कि सरकारी काम-काज को अधिक क्षति नहीं हुआ.
पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन ने सम्पूर्ण केन्द्रीय साजिश को अपने उपर लिया. खुद जेल चले गए लेकिन सरकार पर आंच नहीं आने दी. उनका मानना था कि झारखण्ड की जनता को सरकारी काम-काज के अक्स किसी प्रकार की परेशानी न हो. उन्होंने सबसे पहले इस्तीफ़ा दिया और राज्य की जनता को चंपाई सोरेन के रूप में वैकल्पिक सीएम दिया. जिसके अक्स में जनकल्याणकारी योजनाओं को गति मिली. लोगों को आवास जैसे कई अधिकार मिले. मसलन, पूरे प्रकरण में हेमन्त सोरेन का विपरीत परिस्थिति में भी झारखण्ड के प्रति समर्पण की पराकाष्ठा समझा जा सकता है.