हेमन्त के प्रति हुए केन्द्रीय साजिश में वनवासी पत्रवीर बराबर भागिदार

झारखण्ड : पंजी-2 में नाम दर्ज कर हेमन्त सोरेन के नाम पर पूरी जमीन हस्तांतरित करने की थी सामंती तैयारी. ऐसा हो नहीं सकता वनवासी पत्रवीर मामले से अभिज्ञ रहे हों. इस सामंती साजिश में इस साहब को क्यों ना बराबर का भागिदार माना जाए?

रांची : पूर्व आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन के नेतृत्व वाली अबुआ सरकार में झारखण्ड ने देश भर में झंडे गाड़े. वही डंका देश में फिर बजा है. जिसके अक्स में देश में घोर तानाशाही के बीच, केन्द्रीय पक्षपात के अक्स तले पूर्व की बीजेपी की डबल इंजन के द्वारा झारखण्ड पर मढ़ा गया 1,36,000 करोड़ का कर्ज न केवल हेमन्त सरकार चुका रही थी, कर्ज चुकाने में देश में अव्वल रही. क्या राज्य को कर्जमुक्त करना आत्मनिर्भरता और विकास का पैमान नहीं? तो क्यों ना इसे उस आदिवासी सीएम का परिचय और परिभाषा माना जाए?

वनवासी पत्रवीर बराबर भागिदार

लेकिन, लूट राजनीति की विचारधारा से लैस केंद्र की सामन्तवाद सत्ता को बहुजन और गरीबों के सामाजिक न्याय से क्यों मतलब हो? और सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक न्याय और आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित करने वाले सीएम को वह क्यों ना अपना परम शत्रु माने? मसलन, वह आदिवासी सीएम को ना केवल जेल में डाला गया, संस्थानों में स्थापित किए गये सामंती मानसिकता के कर्मचारियों के आसरे पंजी-2 में उस सीएम का नाम दर्ज कर पूरी जमीन उसके सर मढ़ एक लोकतांत्रिक राजनीति को समाप्त करने के सामन्ती प्रयास भी हुए. 

अपराध करने की तैयारी का आरोप मढ एक ST सीएम को जेल -इतिहास का पहला मामला

हेमन्त सोरेन से जुड़े जमीन घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा 7 जून को चार्जशीट दाखिल किया गया. पीएमएलए की विशेष अदालत के द्वारा मामले में संज्ञान लिया गया. कोर्ट ने सुनवाई के लिए अगली तिथि 27 जून निर्धारित की है. ईडी की ओर से दाखिल चार्जशीट में बताया गया है कि बड़गाई अंचल स्थित बरियातू रोड की 8.86 एकड़ जमीन पूरी तरह से हेमन्त सोरेन के नाम पर करने की तैयारी थी. उनका नाम पंजी-2 में चढ़ाया जाना था, इसके पहले ही मामले का पर्दाफाश हो गया.

ईडी ने वर्ष 1940 का फर्जी डीड नंबर 3985 जब्त किया था, जो 6.34 एकड़ जमीन से संबंधित था. भुईहरी प्रकृति की 8.86 जमीन को जनरल बनाकर अलग-अलग नामों पर पहले पंजी-2 में दिखाया गया, जहां से फर्जी तरीके से पूरी सोरेन के नाम की जानी थी. मजे कि बात है कि इस मामले दाखिल चार्जशीट में शामिल कई नामों में पूर्व सीएम का नाम ही नहीं है. और आरोप सिद्ध न कर पाने की स्थिति हेरफेर करने की साज़िश बतया गया है! स्पष्ट सवाल कोई सीएम क्यों महज 8.86 एकड़ जमीन अपने नाम करवाएगा? 

ऐसे में यह इतिहास का पहला मामला है जहाँ सिविल केस में “अपराध करने की तैयारी” का आरोप मढ़ एक आदिवासी लोकतांत्रिक सीएम को न केवल चुनाव से पहले गिरफ़्तार किया गया! उसे चुनाव प्रचार हेतु भी जमानत न मिल सका. जिसके अक्स में जनता ने कोलेजियम न्याय पद्धति पर पक्षपात के आरोप भी लगाए. और देश की गोदी सामन्ती मीडिया बिना जांच पड़ताल किए ED के अदालती कार्रवाही को हैडलाइन बनाया. जिसके अक्स में उस सामन्ती सत्ता ने आम जन को भ्रमित किया! जिससे उसे वोट भी मिले.

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