झारखण्ड के आदिवासी पूर्व सीएम के मामले में न्यायालय के द्वारा जुलाई या गर्मी की छुट्टियों के दौरान सुनवाई करने की इच्छा जताने के बाद, सोरेन के वकील ने याचिका ख़ारिज करने की गुहार लगाई.
रांची : झारखण्ड की बहुजन जनता का स्पष्ट कहना है कि – ऐसा प्रतीत हो चला है कि वर्तमान लोकसभा चुनाव में आदिवासी-दलित वर्ग के नेताओं की आवश्यकता ही नहीं समझी जा रही है. यदि इस वर्ग के नेताओं की जनता के बीच उपस्थिति और प्रासंगिकता को गंभीरता से ली जाने की मंशा होती तो क्या सुप्रीम कोर्ट पूर्व आदिवासी सीएम के मामले में जुलाई या गर्मी की छुट्टियों के दौरान सुनवाई करने की इच्छा जताते? जबकि दिल्ली के सीएम को अंतरिम बेल दी जा चुकी हो.

ज्ञात हो, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर न्यायालय के द्वारा पहले जुलाई या गर्मी की छुट्टियों के दौरान सूचीबद्ध करने की इच्छा व्यक्त की गई. लेकिन, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के द्वारा लोकसभा चुनावों के कारण तत्काल सुनवाई पर जोर दिए जाने बाद न्यायमूर्ति की पीठ ने मामले में 17 मई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है.
यदि अदालत जुलाई से पहले सुनवाई नहीं करना चाहती है तो सोरेन को अंतरिम जमानत दी जा सकती – सिब्बल
हेमन्त सोरेन के मामले में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर वक़्त रहते सुनवाई पर विचार करने से न्यायालय के इनकार पर निराशा सिब्बल को यहां तक कहना पड़ा कि तब सोरेन की याचिका को खारिज की जा सकती है. दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने के हालिया आदेश का जिक्र करते हुए सिब्बल ने कहा, ” तो फिर इसे खारिज करें… चुनाव खत्म हो गए हैं। केजरीवाल का आदेश मुझे कवर करता है.”
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता से अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि यदि अदालत जुलाई से पहले मामले की सुनवाई नहीं करना चाहती है तो सोरेन को अंतरिम जमानत दी जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि वह ईडी को सुने बिना ऐसा नहीं करेगा. सिब्बल ने आरोप लगाया कि केंद्रीय एजेंसी जानबूझकर इस मामले में पेश नहीं हो रही है, हमने 6 मई को ईडी को इसकी जानकारी दी थी. न्यायालय ने 17 मई को विचार के लिए याचिका को सूचीबद्ध की है.