झारखण्ड की नारियों ने दामोदर में किया मोदी लहर का विसर्जन!

 

अप्रैल के महीने में सुर्खियों में रही कुछ घटनाएँ इस ओर साफ़ इशारा कर रही हैं कि यह चतुर्दिक संकट अपनी पराकाष्ठा पर जा पहुँचा है। जहाँ एक ओर कठुआ और उन्नाव की बर्बर घटनाओं ने यह साबित किया कि फ़ासिस्ट दरिंदगी के सबसे वीभत्स रूप का सामना औरतों को करना पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर न्यायपालिका द्वारा असीमानन्द जैसे भगवा आतंकी और माया कोडनानी जैसे नरसंहारकों को बाइज्जत बरी करने की घटना के बाद भारत के पूँजीवादी लोकतंत्र का बचा-खुचा आखिरी स्तम्भ भी ज़मींदोज़ होता नज़र आया है। हालात चीख-चीख कर गवाही दे रहे थी कि संकट के इस अँधेरे को जनबल के बूते ही चीरा जा सकता था। झारखण्ड में हुए विधानसभा उपचुनाव में जिस प्रकार नारी शक्ति का उदय देखने को मिला इसका एक सटीक उधाहरण हो सकता है।

यूँ तो पिछले कई वर्षों से भारतीय समाज एक भीषण सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक और नैतिक संकट से गुज़र रहा है, परन्तु झारखण्ड में जहाँ एक तरफ लगातार इसके सांस्कृतिक तानेबाने पर हमला हो रहे थे वहीँ यहाँ की मूल जनता के अधिकारों का भी हनन लगातार हो रहा था। विकास के नाम पर साजिश के तहत लैंड बैंक जैसे कई योजनाओं को कानूनी अमलीजामा पहना थोपा जा रहा था। शायद, यहाँ की जनता इनकी मंशा भाँप गयी और भाजपा और आजसू गठबंधन को उन्ही की माँद में चित कर दी।

झारखंड में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए जिसके नतीजों ने यहाँ की सरकार को साफ़ जता दिया की इनकी विकास की राग बेसुरी और बेताला है। झारखंड मुक्ति मोर्चा की नारी शक्ति द्योतक सीमा महतो और बबीता देवी ने बड़ी जीत दर्ज की है। सिल्ली विधानसभा सीट पर सोमवार को उपचुनाव में कुल 75.5 फीसदी वोट डाले गए| गोमिया में चुनाव आयोग के अनुसार उपचुनाव में 62.61 प्रतिशत वोट डाले गए थे। गौरतलब है कि नक्सल प्रभावित होने के कारण यहां दोपहर तीन बजे तक ही मतदान कराया गया।

सिल्ली सीट पर मुख्य मुकाबला पूर्व उप मुख्यमंत्री और आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो और सीमा महतो (झामुमो) के बीच था। वहीँ गोमिया में भाजपा के माधव लाल सिंह और  आजसू के लम्बोदर महतो जैसे कद्दावर नेता से बबेता देवी (झामुमो) लोहा ले रहीं थी। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की ये दोनों नारी शक्तियों में पहली सिल्ली की बहु सीमा महतो ने सिल्ली के नालायक! बेटे को तकरीबन 13,500 मतों से चित्त किया तो वहीँ दूसरी ओर बबीता देवी ने तकरीबन 1344 मतों से सभी कद्दावर नेताओं को। इन दोनों ने साथ मिलकर एक और प्रतिद्वंदी गोदी मीडिया को भी चित्त कर दिया जो लगातार एकतरफ़ा कवरेज दे रही थी।

इसमें कोई शक़ नहीं रह जाता कि ये नतीजे यह सीख देती है कि भाजपा और उसके गठबंधन के आतंक को जड़ से समाप्त करने के लिए इसी तरह तमाम विपक्ष को एक लम्बी लड़ाई लड़ने की ज़रूरत है। यह लड़ाई हज़ारों सालों से चले आ रहे पुरुष प्रधान सामाजिक ढाँचे और पूँजीवादी व्यवस्था को नेस्तनाबूद करके समानता व न्याय पर आधारित शोषण व उत्पीड़न विहीन सामाजिक व आर्थिक ढाँचे के निर्माण करने की लड़ाई से जुड़ी है। यह लड़ाई ऐसे समाज के निर्माण से जुड़ी है जहाँ प्रजातंत्र का बोलबाला हो। इसलिए यहाँ की जनता अपने कंधे पर लड़ाई का भार लेते हुए झामुमो और तमाम विपक्ष को साथ दें ताकि इस क्रान्तिकारी परिवर्तन की लड़ाई को अभिन्न अंग के रूप में लड़ा जा सके।

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