देश के आदिवासी वर्ग से बीजेपी और मोदी सरकार का बैर क्यों?

आदिवासी समुदाय के प्रति बीजेपी और मोदी सरकार में नफरत क्यों? यह इसलिए तो नहीं कि यह समुदाय देश का पौराणिक एवं प्राचीन इतिहास सहेजे है. और बीजेपी के सामन्ती विचारधारा के आड़े स्वतः ही खड़ा दिखता है.

रांची : बुद्धिजीवियों का मानना है कि मनुवाद का संपूर्ण दर्शन आदिवासियों के प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य के नीव पर खड़ा है. और मनुवाद ऐतिहासिक शुन्यता का अनुभव करता है. इसलिए उसमें बनवासी शब्द के आसरे आदिवासियों की पूरी ऐतिहासिक पहचान हड़प लेने की चाहत दिखती है. लेकिन, आदिवासी सभ्यता एक प्राकृत दर्शन है, जो लोकतांत्रिक है और प्रकृति की भांति वह सभी के लिए खुलापन लिए है और लचीला है. मसलन, वह हमेशा ही मनुवाद के षड्यंत्रकारी हाथों के पहुँच से पिचक कर दूर हो जाता है. 

देश के आदिवासी वर्ग से बीजेपी और मोदी सरकार का बैर क्यों?

हालांकि, मनुवाद आदिवासी पहचान को हड़पने की मंशा प्राचीन काल से रखती रही है. लेकिन, उसकी यह कवायद आरएसएस-बीजेपी के मोदी शासन में तीव्रता लिए दिखता है. मणिपुर हिंसक घटना, नवनिर्मित संसद के पूजन में आदिवासी राष्ट्रपति की अनदेखी और प्रथम प्रवेश दिवस से उन्हें दूर करना, 12 करोड़ आदिवासी समूह को जनगणना में उसके पहचान से वंचित रखने से लेकर देश के एकमात्र आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन प्रखर आवाज को समाप्त कर देने का प्रयास तथ्य के स्पष्ट साक्ष्य हो सकते हैं.

मोदी सरकार में लाए गए संशोधित विधेयक आदिवासी वर्ग के घातक  

केंद्र सरकार के द्वारा लाया गया वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023, आदिवासियों को उनके वन अधिकारों से वंचित करेगा.‌ वन अधिनियम, 1980 में परिवर्तन कर नये अधिनियम में ग्राम सभा की जरूरत को समाप्त कर दिया गया है. जिसे आदिवासियों के हित कुचलने और ग्राम सभा के प्रदत अधिकार का हनन है. ज्ञात हो कि देश का अधिकांश आदिवासी वर्ग जंगल को खनन क्षेत्रों में वास करता है. जो स्पष्ट तौर पर आदिवासियों के अधिकारों का हनन है. 

इसी प्रकार कोल बेयरिंग एरिया (एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट) अमेंडमेंट बिल 2023 भी आदिवासियों के हक-अधिकारों की हनन का गाथा बयान करती है. खनन पट्टा की अवधि समाप्त किया जाना राज्य सरकारों को अतिरिक्त राशि की प्राप्ति मरहूम करने का प्रयास है. जो स्पष्ट तौर पर संविधान की 5वीं अनुसूची के तहत आदिवासियों एवं मूलवासियों के भूमि सुरक्षा एवं अधिकार का हनन है. साथ ही भूमि अधिग्रहण के अक्स सामंती ज़मीन लूट के जीन खुला मैदान दे दिया गया है.

सीएए/एनआरसी के रूप में भी आदिवासी से निभाई जा रही नफरत  

एक तरफ मोदी सरकार में देश के आदिवासियों को उसके पहचान से महरूम रख गया है, तो दूसरी तरफ नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए), 2019 जबरन पास कर दिया गया है. नागरिकता संशोधन अधिनियम के प्रावधान स्पष्ट कहता है कि देश की नागरिकता धर्म के आधार पर सुनिश्चित होगी. लोगों को उनका धर्म बताना होगा. और देश में आदिवासियों का धर्म कोड अबतक परिभाषित नहीं है. ऐसे में आदिवासियों को नागरिक नहीं घुसपैठियों माना जा सकता है.

तमाम परिस्थितियों के बीच बतौर सीएम हेमन्त सोरेन एक मात्र वैश्विक संवैधानिक आदिवासी पहचान और आवाज हैं. और सीएम हेमन्त आदिवासी त्रासदी पर मुखर हैं. जिसका प्रभाव आरएसएस और बीजेपी के थिन्कटैंक भली भांति समझ रहे हैं. मसलन, बिहार और यूपी जैसे राज्यों की भांति झारखण्ड प्रदेश के इस मुखर आवाज़ को बदनाम करने जैसे षड्यंत्र के आसरे, बीजेपी सरकार कुचल देने पर आमादा है. और आदिवासी समाज के समक्ष इस आवाज़ को बचाने की चुनौती है.

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