सीएम हेमन्त सोरेन ने कभी खुद पर सत्ता के नशे को हावी नहीं होने दिया. यह छवि महामहिम राष्ट्रपति के प्रति उनके सम्मान में स्पष्ट दिखता है. दोनों आदिवासी वर्ग की शक्ति के रूप में उभरे हैं.
रांची : झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन ने खुद पर कभी सत्ता के नशे को हावी नहीं होने दिया. उनके मौजूदा कार्यकाल ने सिद्द किया है. वह जितने ज़मीन से जुड़े नेता हैं उतना ही लोकतांत्रिक नेता भी दिखे हैं. ज्ञात हो एक तरफ उन्होंने झारखण्ड मुक्ति मोर्चा दल में पिछड़े व गरीब के लिए दरवाजे खोल दिए हैं तो ओर मान्यवर कांसीराम की शिष्या बहन मायावती की भांति देश भर में सभी आदिवासी वर्गों को एकजुट करने के दिशा में आदिवासी महोत्सव की आसरे ईमानदार पग बढ़ा चुके हैं. जो केन्द्रीय राजनीति और नीतियों को साधने में अचूक पहल है.
ज्ञात हो, इस तथ्य की छवि महामहिम राष्ट्रपति महोदया के प्रति हेमन्त सोरेन के सम्मान भाव में स्पष्ट दिखता है. ज्ञात हो, महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के प्रति हेमन्त सोरेन का सम्मान अनूठा है. यह सच महामहिम भी अपने आव-भाव से व्यक्त करती रही हैं. जहाँ तमाम विपक्षी दल राष्ट्रपति महोदया के द्वारा भेजे गए आमन्त्रण भोज से किनारा करते दिखे, वहीं हेमन्त सोरेन ने अपने परिवार की अग्रज एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति सम्मान दिखाते हुए भोज में सक्रीय रूप से भागीदारी निभाते दिखे.
महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू और हेमन्त सोरेन आदिवासी समुदाय की शक्ति
सीएम हेमन्त सोरेन का यह रूप भी उनके व्यक्तिव से जुड़े सच को उभारता है. ज्ञात हो, राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू और हेमन्त सोरेन दोनों ही आदिवासी समुदाय से आते हैं. द्रोपदी मुर्मू एक ओड़िशा की आदिवासी महिला हैं तो हेमन्त सोरेन झारखण्ड के आदिवासी मुख्यमंत्री हैं. दोनों ही नेताओं ने अपने जीवन में संघर्ष और चुनौतियों का सामना किया है. द्रोपदी मुर्मू एक ग़रीब परिवार और कड़ी मेहनत का प्रतिनिधित्व करती हैं तो हेमन्त सोरेन का पृष्ठभूमि बिलकुल मेल काती है.
उपरोक्त समानताओं के कारण, राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू और हेमन्त सोरेन में एक मजबूत आत्मीयता है. वे दोनों ही आदिवासी समुदाय के लिए एकजुटता और संघर्ष के प्रतीक हैं. दोनों शख्सियतों ने ही आदिवासी समुदाय के बेहतर भविष्य के लिए प्रतिबद्धता दिखाई हैं. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने आदिवासी समुदाय को नई आस दी है. तो बतौर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के रूप में देश में ग़ायब होते आदिवासी आवाज़ को मजबूत प्रतिनिधित्व मिला है.
हेमन्त सोरेन आदिवासी समुदाय के लिए एक मजबूत आवाज़ हैं. मणिपुर त्रासदी के अक्स में केंद्र को लिखा उनका पत्र इसकी पुष्टि करती है. उन्होंने अपने कार्यकाल में आदिवासी-दलित, पिछड़े और सभी वर्गों के गरीबों के हित में महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं. तमाम कड़ियाँ अचेतन रूप से एक दूसरे से जुड़ राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू और हेमन्त सोरेन के बीच की आत्मीयता एक सकारात्मक विकास करती है. यह दोनों शख्सियतों के बीच एक मजबूत संबंध बनाता है और आदिवासी समुदाय को शक्ति देता है.