पीएम मोदी के शासन में आदिवासी कल्याण और उपलब्धि का आखिरी सच 

झारखण्ड : धरती आबा बिरसा मुंडा की जयंती पर प्रधानमंत्री ने झारखण्ड में आदिवासी कल्याण में अपनी सरकार की योगदान के दावे किए. लेकिन उनकी नीतियां और ज़मीनी हकीकत अलग कहानी बयान करती है.

रांची : धरती आबा बिरसा मुंडा की जयंती पर प्रधानमंत्री ने झारखण्ड में आदिवासियों के कल्याण के लिए उनकी सरकार की योगदान के बड़े-बड़े दावे किए. नए सपनों के आसरे आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर फिर एक बार नए सपने दिखाने का प्रयास किये. ऐसे में पीएम मोदी के कार्यकाल में आदिवासी नीतियों की सच की जांच जरुरी हो जाता है. जहाँ मोदी-संघ के ज़मीन लूट की नीतियों का भुक्तभोगी आदिवासी-दलित समुदाय रहे हैं. वहीँ एट्रोसिटी का दंश भी इन्हीं वर्गों ने झला है.

पीएम के आदिवासी कल्याण और उपलब्धि का सच 

एक तरफ जहाँ दलितों पर उत्पीड़न के आंकड़ों में बढ़ोतरी हुई तो वहीं आदिवासियों के मुंह पर पेशाब तक किया गया है. और कानूनी न्याय मिलने के प्रतिशत में भी भारी कमी आयी है. जाती एट्रोसिटी का दंश से भारत के राष्ट्रपति महोदया तक झेलनी पड़ी है. देश का ख़ूबसूरत राज्य मणिपुर महीनों से जल रहा है. ना पीएम मोदी ने और उनकी सरकारी तंत्र ने अबतक कोई सुध ली है. भाजपा शासित मध्य प्रदेश आदिवासी अत्याचार के मामले में भारत का नंबर एक राज्य साबित हुआ है.

आदिवासियों असर डालने वाली मोदी सरकार की सबसे त्रासदीय नीतियां 

वन अधिकार अधिनियम, 2006 – इस कानून के आसरे एक सदी से होते आ रहे आदिवासियों और वन में रहने वाले अन्य लोगों के साथ उत्पीड़न को समाप्त किया गया था. मोदी सरकार में नीतियों में संशोधन कर इस अधिनियम को कमज़ोर किया गया है. जिसके अक्स में आदिवासियों के जल, जंगल और ज़मीन पर प्राप्त अधिकार को छीनने का घृणित प्रयास हुआ है. और मोदी सरकार यह प्रयास केवल चहेते कंपनियां को लाभ पहुंचाने के दृष्टि से हुआ है. 

मोदी सरकार में वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में संशोधन किया गया है. इससे वन का संरक्षण शक्तिहीन हो गया है जिसका सीधा असर आदिवासियों की आजीविका पर पड़ा है. इसी प्रकार भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम सभाओं की सहमति की आवश्यक को समाप्त करने का प्रयास हुआ है. चहेते निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के मद्देनजर भाजपा शासित राज्यों में इस प्रावधान को लागोपो भी कर दिया गया है.

यही नहीं झारखण्ड जैसे राज्य में आदिवासी-दलित के एक मात्र शिक्षा का ठिकाना, हजारों सरकारी स्कूलों को मर्जर के नाम पर बंद किया गया. एकलव्य विद्यालय जैसे चुनावी रबड़ी को फण्ड के नाम पर मोदी सरकार में ठेंगा दिखाया गया है. एससी-एसटी कल्याण में कार्य करने वाले संस्थाओं के फंड के स्रोत का मुंह आरएसएस के अनुषंगी संस्थानों के तरफ मोड़ दिया गया. उनके नेताओं को ईडी या फेक मुकद्दमों के आसरे समाप्त किया गया. ऐसे में पीएम मोदी के शासन में आदिवासी कल्याण और उपलब्धि का सच समझा जा सकता है.

Leave a Comment