PM के ST न्याय में मणिपुर व ST मुद्दों पर चुप्पी की गारंटी

झारखण्ड : पीएम का आदिवासी न्याय राजनीति से प्रेरित. मणिपुर और आदिवासी मुद्दों पर चुप्पी उनके आदिवासी न्याय की हकीकत. SC, ST, OBC और पास्मंदों को चार स्तंभ के आसरे बरगलाने का प्रयास. 

रांची : आरएसएस या सामन्तवाद का देश से सम्बंधित किसी भी ऐतिहासिक घटनाओं या आन्दोलनों में कोई भागीदारी नहीं होती. लेकिन, कुटिल चालों के आसरे वह हमेशा उन ऐतिहासिक साक्ष्यों से खुद को जोड़कर न केवल उन ऐतिहासिक संघर्षों को हड़पने का प्रयास करता है, उसके असल सूत्रधार और नेताओं को दरकिनार भी करता है. इसकी स्पष्ट तस्वीर झारखण्ड राज्य स्थापना दिवस के मौके पर, धरती आबा बिरसा मुंडा के जन्म स्थल पर आयोजित पीएम के कार्यक्रम में दिखा.

PM के ST न्याय में मणिपुर व ST मुद्दों पर चुप्पी की गारंटी

दिशोम गुरु शिबू सोरेन अलग झारखण्ड राज्य की स्थापना और आन्दोलन का असल अगुवा नेता हैं. जो आज भी न केवल जीवित हैं राज्यसभा सांसद भी हैं. पीएम के द्वारा अटल सरकार के आसरे न केवल गुरूजी को झारखण्ड स्थापना और आन्दोलन की ऐतिहासिक संघर्ष से पृथक करने का प्रयास हुआ. उनके जैसे झारखंडी आइकॉन को मंच पर जगह तक नहीं मिली. और वनवासी बाबूलाल को मंच पर जगह दे राज्यवासियों पर सामन्ती सोच पर आधारित कृत्रिम इतिहास थोपने का प्रयास हुआ.   

पीएम मोदी ने धरती आबा बिरसा मुंडा के पावन दरवार में न एक शब्द मणिपुर या देश भर में हो रहे आदिवासी त्रासदी पर बोले. और ना ही आदिवासियों के पहचान सुनिश्चित करने वाली वर्षों से लंबित आदिवासी-सरना धर्म कोड के सम्बन्ध में बोले. और ना ही उनकी योजनाओं की मियाद आदिवासी केन्द्रित दिखी. केवल गारंटी शब्द पर विशेष भार डाल, चार स्तंभ जैसे नए जुमले के आसरे एससी, एसटी, ओबीसी, पास्मंदों और गरीबों नए रूप में परिभाषित करते हुए फिर से एक बार उन्हें नया सपना परोसने का प्रयास करते दिखे. 

मोदी डबल इंजन सरकार में बिरसा के घर पहुँचने वाले पहले पीएम क्यों नहीं बने?

झारखण्ड में पूर्व में मोदी की डबल इंजन सरकार थी. वह सरकार आदिवासी विरोधी कार्य का सच लिए हुए है. आदिवासी ज़मीनों के लूट के आसरे लैंडबैंक बना. आदिवासियों की ज़मीन आडानी पॉवर प्लांट को जबरन दी गई. विरोध करने पर आदिवासियों के पीठ पर लाठियां पड़ी. आदिवासियों के सुरक्षा कवच सीएनटी-एसपीटी एक्ट को समाप्त करने का प्रयास हुआ. यही नहीं उस सरकार में बिरसा समाधि स्थल पर विराजित बिरसा प्रतीमा का हाथ तोड़ कर उसे मिटाने का प्रयास हुआ.

पूर्व के डबल-इंजन सरकार को पांच बार बिरसा का जन्म दिवस मनाने का मौक़ा मिला. पीएम उस दौर में ही धरती आबा बिरसा मुंडा के जन्म स्थल पर पहुँचने वाले पहले प्रधानमंत्री बन सकते थे. और बिरसा प्रतिमा को मिटाने का प्रयास करने वाले संदिग्धों की खोज करने का आदेश दे सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वर्तमान गृहमंत्री के द्वारा बिरसा स्थल में किये वादे तक पूरा नहीं हुए. ऐसे में हेमन्त सरकार में पहले पीएम के रूप में मोदी का आगमन राजनीति से प्रेरित ही हो सकती है.  

सीएम हेमन्त ने स्वागत भाषण में भी पीएम को आदिवासी समंस्याओं से अवगत कराया 

सीएम हेमन्त के स्वागत से पीएम गदगद दिखे. उलिहातू की पावन भूमि पर सीएम ने आग्रह किया कि -प्रधानमंत्री जी आपका संदेश आदिवासियों के लिए महत्वपूर्ण है. बिरसा मुंडा पूरे देश के आदिवासियों और मूलवासियों के भगवान हैं. झारखण्ड वीरों की भूमि है. भगवान बिरसा मुंडा जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय में आपने यह दृश्य देखा है. एसटी सीएम होने के नाते ना सिर्फ झारखण्ड, पूरे देश के आदिवासियों की तरफ से, आदिवासी धर्म कोड पर सकारात्मक निर्णय लेने का आग्रह करता हूँ.

मुझे गर्व है कि मैं भी एक आदिवासी हूं. आदिवासी सदियों से हक-अधिकार की लड़ाई लड़ता आया है. फिर वह लड़ाई महाजनों के विरुद्ध हो या अंग्रेजों के. इतिहासकारों ने इन्हें उचित जगह नहीं दी. आज हम चांद पर पहुंच चुके हैं, लेकिन समाज के अंदर जो अंतर दिख रहा है, उसे अबतक मिट जाना चाहिए था. जनजातीय समूह सबसे पिछड़ा है. अगर इस समुदाय को मजबूती नहीं दी गयी तो ये नहीं बचेंगे. यहाँ जंगलों में बसने वाले आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ता है.

राज्य की धरती से खनिज सम्पदाओं को निकालने के लिए बड़े पैमाने में कई वर्षों से इनका विस्थापन होता रहा है. इस क्षेत्र में बसने वाले लोगों के लिए ऐसी विशेष कार्ययोजना तैयार की जाय, जहाँ हमारे आदिवासी भाई-बहन अपने जल-जंगल-जमीन के साथ खुद को समग्र विकास से जोड़ सके. लेकिन पीएम के द्वारा इन सन्दर्भों को सिरे से ख़ारिज कर 2047 का सपना दिखाने में व्यस्त दिखना, आरएसएस एजेंडे पर आधारित उनकी राजनीतिक मंशा की पोल खोलती है.

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