झारखंड” के लिए गौरव की बात – इस मिट्टी में अनेक महान विभूतियों, महापुरुषों ने लिए जन्म 

“झारखंड” के लिए गौरव की बात है कि इस मिट्टी में अनेक महान विभूति, महापुरुष उपजे. जो देखने में तो सरल व मधुर रहे, लेकिन उनकी पटकथा शक्तियों से भरपूर, चमत्कारी थी. जिसने इतिहास की धारा को पलट दिया. जब भी ईमानदारी से झारखंड की उपेक्षित धरती व शोषितों के इतिहास का संकलन होगा तो पीढ़ियां इन विभूतियों को महान कर्मयोद्धा, विचारक व भविष्य द्रष्टा के रूप में अपनाना चाहेगी. इन महान शहीदों को आदरांजलि अर्पण करना चाहेगी. और इनकी प्रेरणा से झारखंड की धरती पर ऐसे ही महापुरुषों का पुनः जन्म होगा, युवाओं के विचारों का रूपांतरण होगा.

ये महापुरुष, विभूति गरीब, दलित-दमित के अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े हुए. इन्होने अशिक्षित समाज में शिक्षा की लौ जलायी. झारखंड में युग व समाज निर्माण में इन विभूतियों का महत्वपूर्ण योगदान है. ये समाज के रक्षक और महान स्वतंत्रता सेनानी रहे. इन्होने अपने संघर्ष, उलगुलान, आंदोलन, विद्रोह, क्रांति एवं बलिदान से झारखंड का स्वर्णिम इतिहास रचा. ताकि भावी पीढ़ी सुख-शांति व आज़ाद भावना से सीना तान कर चल सके. इन अमर शहीदों ने इस सोच तले अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया. इनके त्याग, समर्पण व जुल्म के खिलाफ अडिग खड़ा रहने की काबिलियत ने हमेशा आने वाली पीढ़ी को संकट में राह दिखाया है. 

महान विभूतियों से जब झारखण्ड की वर्तमान पीढ़ी का साक्ष्ताकार होगा, निसंदेह युवाओं के विचारों में क्रान्तिकारी बदलाव होगा 

झारखण्ड प्रदेश की भाषा-साहित्य, कला-संस्कृति, यहां की जीने की पद्धति, सामाजिक, सांस्कृतिक, समरसता, सामूहिकता, मधुरता, सुंदरता, पवित्रता, सरलता, सहजता, सुलभता, विनम्रता, सौहार्द्रता, मानवीयता, बराबरी, एकता, प्रेम, ईमानदारी, परिश्रम, संगीत-नृत्य के  संरक्षण में यहां के विभूतियों ने पूरा जीवन समर्पित किया. ऐसा महान विभूतियों से जब वर्तमान पीढ़ी का साक्ष्ताकार होगा, तब क्या उनकी वेदना उन्हें इन महापुरुषों को नमन को नहीं कचौटेगा. निसंदेह युवाओं के विचारों में क्रान्तिकारी बदलाव आएंगे. और झारखंड अपने विकास पथ पर तीव्र गति से बढेगा. जरुरत है तो इस दिशा में कार्य करने की. और मौजूदा राज्य की हेमन्त सरकार इसे बाखूबी अंजाम भी दे रही है. 

झारखण्ड के कुछ महान विभूति

  • तिलका मांझी : अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह करने वाले ये पहले आदिवासी, इन्हे आदि विद्रोही कहा जाता है.
  • रघुनाथ महतो : इन्होने अंग्रेजो के विरुद्ध छापामार पद्धति से अभियान चलाया. अंग्रेज सैनिको के गोलीबारी में शहीद हुए. 
  • रानी सर्वेश्वरी : पहाड़िया सरदारों के सहयोग से कम्पनी शासन के विरुद्ध 1781-82 ई.में विद्रोह किया. 
  • तेलंगा खड़िया : जमींदारों, महाजनो तथा अंग्रेजी राज्य के खिलाफ जुझारू आंदलोन किया. जमीन वापसी और जमीन पर झारखंडी समुदाय के परम्परागत हक़ की बहाली के लिए लड़े. अंग्रेजो के दलाल बोधन सिंह ने उन्हें पीछे से गोली मार दी.
  • भगीरथ मांझी : खरवार आंदोलन का नेतृत्व किया. जनता से अपील की वे अंग्रेजो व महाजनो को लगान न दे. 
  • बुद्धू भगत : कोल विद्रोह 1831-32 में नेतृत्व किया. झारखण्ड के प्रथम आंदोलनकारी थे, जिनके सिर के अंग्रेज सरकार ने 1000 रुपये के पुरस्कार की रखी थी.  
  • बिरसा मुंडा : इन्होने उलगुलान (महान हलचल) विद्रोह का नेतृत्व किया. इन्होने अंग्रेजो के विरुद्ध खूंटी, तोरपा, तमाड़, कर्रा, आदि क्षेत्रों में विद्रोह भड़काया. 3 फ़रवरी, 1900 में रांची जेल में हैजे के कारण इनकी मृत्यु हो गयी. बिरसा मुंडा आज भगवान् के रूप में पूजे जाते है 
  • सिद्धो-कान्हू : दोनों भाइयो ने ब्रिटिश सत्ता साहूकारों, व्यापारियों व जमींदारों के खिलाफ प्रसिद्ध संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया था. अंग्रेजी प्रशासन द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें बड़गैत में इन्हें फांसी दे दी गयी. 
  • जतरा भगत : इन्होने टाना भगत आंदोलन चलाया जो एक प्रकार का सांस्कृतिक आंदोलन था. जतरा भगत को गिरफ्तार कर रांची जेल में भेज दिया गया।  रिहा होने के बाद दो माह के भीतर ही इनकी मृत्यु हो गयी.
  • पाण्डेय गणपत राय : इन्होने 1857 के  विद्रोह में ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के साथ भाग लिया. बरवा थाना  जलने में अग्रणी भूमिका निभाई थी. लोहरदगा पर आक्रमण करने ही वाले थे की उन्हें बंदी बना लिया गया. एक कदम पेड़ से लटकाकर फांसी दे दिया गया.
  • टिकैत उमराव सिंह : इन्होने अपने भाई और प्रमुख क्रांतिकारी नेता शेख भिखारी के साथ मिलकर 1857 के विद्रोह में अंग्रेजो के समक्ष कड़ी चुनौती प्रस्तुत की. चुटूपालू तथा चारु घाटी में अंग्रेजी सेना को प्रवेश करने से रोक दिया था. इन्हे शेख भिखारी के साथ गिरफ्तार कर फांसी दे दी गयी.
  • शेख भिखारी : इन्होने टिकैत उमराव सिंह के साथ मिलकर 1857 के महासंग्राम में अग्रणी भूमिका निभायी. ब्रिटिश प्रशासन ने इन्हें गिरफ्तार कर फांसी दे दी.
  • ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव : 1857 के विद्रोह के दौरान विद्रोही सैनिको का भरपूर साथ दिया. अंग्रेजो ने उन्हें पकड़ लिया. पेड़ में लटकाकर फांसी दे दी.
  • नीलाम्बर-पीतांबर : नीलाम्बर-पीताम्बर पलामू के दो महान स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह किया. गुरिल्ला युद्ध में बहुत निपुण थे. 1857 के विद्रोह में चेरो राजाओं के साथ मिलकर भाग लिया.इन्हें लेस्लीगंज में एक आम के पेड़ में फांसी दे दी गयी। 

ना जाने झारखंड में कितने अनजाने विभूति है जो इतिहास के पन्नों में गुम हैं या इतिहास में जगह नहीं मिली है.

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