मोदी सरकार से आर-पार की लड़ाई के मूड में किसान, किसानों को देश का मालिक बताते हुए हेमंत ने कहा, “भारत बंद के पक्ष में JMM परिवार”

केंद्र के लाए तीन कृषि कानून को वापस लेने की मांग को लेकर किसान संगठनों ने 8 दिसम्बर को बुलाया है भारत बंद

मुख्यमंत्री ने कहा,”देश के मालिक को मज़दूर बनाने के केंद्र के षड्यंत्र के खिलाफ होगा उलगुलान”

रांची। केंद्र की मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ देश के किसान व उनकी संगठन आर-पार की लड़ाई के मूड में है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अब उस पंक्ति में सबसे आगे खड़े हो गये है, जिन्होंने भारतीय किसानों को देश का असली मालिक बताया है। उन्होंने कहा है कि मेहनती किसान हमारे देश के आन-बान-शान हैं। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने देश के मालिक को मजबूर बनाने का षड्यंत्र रच है। जिसके खिलाफ़ अब झारखंड में भी उलगुलान होगा। और किसान, अन्नदाताओं द्वारा 8 दिसंबर को बुलाये भारत बंद के पक्ष में झारखंड मुक्ति मोर्चा परिवार पूर्ण समर्थन करता है। 

बता दें कि इससे पहले किसान संगठनों के भारत बंद की घोषणा को देश की कई राजनीतिक पार्टियाँ, तृणमूल कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्रीय समिति और कांग्रेस ने भी समर्थन दे दिया है। इस बीच झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का यह समर्थन देश के किसानों के लिए काफी राहत भरा साबित हो सकता है। 

कृषि कानून के विरोध में सड़कों पर आंदोलनरत हैं देश के किसान 

बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार के लाये तीन नए कृषि कानून के विरोध में देश के किसान संगठन सड़कों पर आंदोलनरत है। पिछले 11 दिनों से राजधानी दिल्ली के आसपास उनका आंदोलन चल रहा है, जो कि अब चरम पर है। नई रणनीति को लेकर किसान संगठनों और केंद्र के बीच चल रही पांचवी दौर की वार्ता विफल रही है। पांचवे दौर की वार्ता में कोई हल नहीं निकल पाते देख किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद करने का ऐलान कर दिया है। वहीं केंद्र सरकार ने अब 9 दिसंबर को छठे दौर की वार्ता करने का निर्णय लिया है।

केंद्र कृषि विधयकों में कुछ संशोधन को तैयार, किसान कह रहे,”रद्द हो तीनों कानून”

देश के किसान इस बार जिस तरह से केंद्र से आर-पार की लड़ाई के मुड में है, उससे प्रतीत तो यही होता है कि मोदी सरकार के हाथ-पांव फुल रहे हैं। कॉपोरेट घरानों यथा मोदी-अडाणी-अंबानी की कांट्रैक्ट फार्मिंग नीतियों से नाराज़ किसान संगठन उनका देश भर में पुतले जला रहे हैं। किसानों ने स्पष्ट कर दिया है कि तीनों कानून के रद्द किये जाने की मांग से वे पीछे जाने को तैयार नहीं है। केंद्र सरकार किसान नेताओं को इस बात पर राजी करना चाहती थी कि कृषि विधेयकों में कुछ संशोधन कर दिया जाएगा। लेकिन किसान नेता तीनों विधेयकों को पूरी तरह वापस लेने पर अड़े हुए हैं।

मसलन, केंद्र का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के बारे में बाद में विचार कर लिया जाएगा। लेकिन किसानों का कहना है कि एमएसपी का फैसला भी इसी बैठक में किया जाएगा। लेकिन केंद्र की मोदी सत्ता न तो एमएसपी को ले कर कानूनी गारंटी देने को तैयार है ओर न ही कानूनों की वापसी को तैयार है। क्योंकि ऐसा करके वह अपने चहेते पूंजीपतियों की नाराजगी मोल नहीं ले सकती। मसलन, वह क़ानून में कुछ संशोधन कर किसान को खुश करना चाहती है, जो किसान व उनकी संगठनों को कतई मंजूर नहीं है। 

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