फासीवादियों के निशाने पर अब ग़रीबों के पहरुआ, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

हिंसा को फासीवादी व्यवस्था का मुख्य हथियार माना जा सकता है। भारत में फासीवादियों का कोई ठोस चेहरा नहीं है। भीड़ की हिंसा; पुलिस, नौकरशाही, सेना और मीडिया का फासीवादीकरण; क़ानूनों और संविधान का खुलेआम मखौल उड़ा गतिविधियों को अंजाम देना फ़ासीवाद का तौर-तरीका है।

शाखाओं, शिशु मंदिरों, सांस्कृतिक केंद्रों और धार्मिक त्योहारों का उपयोग करते हुए मिथकों को समाज के ‘सामान्य बोध’ के तौर पर स्थापित करना प्रचलित है। झूठे प्रचार दुनिया भर में फासीवादियों की एक आम रणनीति रही है। फासीवादी हमलों को संस्थानों द्वारा नहीं बल्कि व्यक्तियों द्वारा लक्षित किया जाता है। अफ़वाहों का कुशल उपयोग भी भारतीय फासीवादियों का एक प्रमुख निशानी है।

उनके पास एक नरम चेहरा, एक उग्र चेहरा, एक मध्यवर्ती चेहरा होता है, और जब जिस चेहरे की आवश्यकता होती है उसे आगे बढ़ाया दिया जाता है। उनके पास कोई स्थायी संविधान नहीं होता; वे आवश्यकता पड़ने पर किसी भी प्रकार के चाल-चेहरे-चरित्र को अपनाने के लिए सहमत होते हैं। क्योंकि, सभी फासीवादी अवसरवादी होते हैं इसलिए वे अपने तात्कालिक राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

 मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जान से मारने की धमकी 

इसका उदाहरण हम झारखंड जैसे राज्य में देख सकते हैं। जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ग़रीबों के लिए एक पहरुआ बन कर उभरते दीखते हैं। जहाँ उन्होंने फासीवादी व्यवस्था पर चोट करते हुए आम जन के हक में कई ठोस फैसले लिए हैं। जो फासीवादियों को पच नहीं रहा है। नतीजतन अलग-अलग ईमेल भेजकर उन्हें जान से मारने की धमकी दे डाली है। साथ में संदेश दिया है कि सुधर जाओ नहीं तो मार दिए जाओगे।  

हालांकि, सुरक्षा एजेंसी सतर्क हो गई है। राँची साइबर पुलिस स्टेशन ने इससे संबंधित दो अलग-अलग मामले दर्ज किए हैं। वहीं, CID ने मामले को गंभीरता से लेते हुए दोनों मामलों की जांच शुरू कर दी है। सीएम हेमंत सोरेन के सुरक्षाकर्मियों को एलर्ट कर दिया गया है कि वे मुस्तैद रहें।

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