क़ैदियों के रिहाई के बाद उनकी अवस्था को सुधारने के नयी नीति लाने बनाने की हेमंत की सोच : एक विकसित राज्य के सफ़र की शुरुआत के संकेत है ।
भारत में कुल क़ैदियों की 67.6 फीसद विचाराधीन क़ैदी हैं। कुल क़ैदियों में महिलाएँ 4.4 फीसद है। प्रति एक लाख आबादी में 33 फीसद लोग जेल में बन्द है। जितनी जगह में 100 क़ैदियों के लिए होना चाहिए उतनी जगह में 118 क़ैदी ठूँसे गये हैं। जो एक औसत आँकड़ा है। जबकि व्यवहार में आम तौर पर वीआईपी और दबंग क़ैदियों को अतिरिक्त जगह और सुविधाएँ दी जाती हैं, यहाँ तक कि वीआईपी और दबंग क़ैदी जेलों में दरबार तक जमाते हैं। ऐसे में आम क़ैदियों के लिए वास्तव में कितनी जगह बचती है यह आसानी से समझा जा सकता है।
भारतीय जेलों में बंद कुल क़ैदियों और उनमें से विचाराधीन क़ैदियों के जातिगत सामाजिक और धार्मिक पृष्ठभूमि को देखें तो दलित, आदिवासी और मुस्लिम क़ैदियों का अनुपात कुल जनसंख्या में उनके अनुपात से कहीं ज़्यादा है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लम्बे अवधि की जेल काट कर बाहर आने वाले लोगों की सुध ली है। शायद यह देश में किए जाने वाला पहली पहल हो सकता है।
कारामुक्त कैदियों को मिलेगा पेंशन, राशन कार्ड, आवास योजना का लाभ
दरअसल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के अधिकारियों को पुनरीक्षण बैठक में निर्देश दिए। श्री सोरेन ने कहा कि 75 वर्षीय महिला को मुक्त करने का प्रस्ताव ठीक है, लेकिन क्या यह सुनिश्चित किया गया है कि उक्त वृद्ध महिला कैसे जीवित रहेगी। क्या उनके पास राशन कार्ड है, रिहाई के बाद वह क्या करेगी? क्या इसके लिए कोई योजना है? यदि नहीं, तो जल्द ही महिला के परिवार, उनकी आर्थिक स्थिति का पता लगाएँ। ताकि उसे रिहाई के बाद परेशानी का सामना न करना पड़े। पेंशन, राशन कार्ड, आवास योजना का लाभ दें।
जेलों में बंद एसटी-एससी कैदियों की सूची तैयार करने के निर्देश
मुख्यमंत्री ने विभिन्न जेलों में बंद वृद्ध बंदियों को पेंशन योजना से आच्छादित करने की दिशा में नीति बनाने का निर्देश दिया है। ताकि उन्हें या उनके आश्रितों को आर्थिक मदद प्राप्त हो सके। राज्य की जेलों में बंद एसटी-एससी कैदियों की व उनके अपराध की प्रकृति की सूची भी तैयार करने का निर्देश दिया है। ताकि राज्य सरकार उनके लिए कुछ कर सके। झारखंड सरकार की योजना कारा प्रशासन द्वारा कार्य के एवज में मिल रहे लाभ के अतिरिक्त पेंशन देने की है।
जेल से रिहा करने से पहले कैदियों की होगी काउंसलिंग
मुख्यमंत्री ने कहा कि बंदियों को जेल से रिहा करने से पहले उनकी काउंसलिंग कराई जानी चाहिए। ताकि रिहा होने के बाद वे किसी तरह की आपराधिक गतिविधियों में शामिल न हो सके। इसके लिए मनोचिकित्सक की नियुक्ति किए जाए। यह झारखंड जैसे राज्य के लिए जरूरी है। आजीवन जेल की सजा वाले बंदियों को रिहा करने से पहले बंदियों के अपराध की प्रकृति, आचरण, उम्र, कारा में व्यतीत वर्ष के दौरान उसके आचरण का अवलोकन किए जाए।
उदाहरण के लिए, मुख्यमंत्री दलितों, आदिवासियों, ओबीसी और गरीबों की जेलों में उच्च अनुपात में होने की स्थिति को गंभीरता से ले रहे हैं। वे भलीभांति समझ रहें कि इन समुदायों के लोगों का बहुसंख्यक भाग ग़रीब और मज़दूर है। ये समुदाय ज्यादातर शोषण का शिकार हैं। उनकी गरीबी का फायदा उठा उनसे आसानी से अपराध कराये जाते हैं या कराये जा सकते हैं। और एक ठोस नीति द्वारा ही समाज को व्यवस्था की ऐसी कोढ़ से मुक्त कराया जा सकता है। और यह सोच एक विकसित समाज के शुरुआत के लिए , किसी राज्य और राष्ट्र की शुरुआत हो सकती है।