धरती आबा को नमन कर हेमन्त ने झारखंड से कोरोना को भागने का लिया संकल्प – जबकि राजनीति के मद्देनज़र बीजेपी नेताओं ने फिर लगाई योजनाओं की झड़ी

पहले के वादों को पूरा तक न कर पाने वाली बीजेपी, उसी धरती आबा, भगवान् बिरसा के नाम पर जनजातियों के विकास का फिर से किया दावा 

बीजेपी की घोषणाओं की चिता बन चुका है गांव उलिहातू, बहुमत वाली डबल इंजन सरकार ने सेंकी थी केवल राजनीति रोटी 

रांची: वैश्विक पटल पर झारखंड के चित्र/चरित्र/महान परम्परा को उकेरने व झारखंड को जुल्म के खिलाफ उलगुलान का पाठ पढ़ाने वाले धरती आबा, भगवान बिरसा मुंडा की 121वीं शहादत दिवस पर, 9 जून को झारखंड ने उन्हें हृदय से नमन किया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत पक्ष-विपक्ष के तमाम नेताओं ने भी उन्हें नमन करते हुए, उनके जीवनी से प्रेरणा लेने की बात कही. इस दौरान भले ही मुख्यमंत्री ने कोई विशेष घोषणा नहीं की, लेकिन, कोरोना महामारी में झारखंडी जन-जीवन के रक्षा के प्रति, उनमे दिखी इच्छाशक्ति -दृढ संकल्प व संवेदनशीलता की पराकाष्ठ, बिना धरती आबा जैसे महापुरुषों के प्रेरणा या उनके विचारधारा को पिए उनमे नहीं आ सकती थी.

ज्ञात हो, झारखंड में अभी वक्त घोषणा का नहीं बल्कि राज्य को कोरोना महामारी जैसे त्रासदी से उबारने का है. शायद यही कारण रहे होंगे, जहाँ मुख्यमंत्री ने अपने आवास पर ही सादगी से धऱती आबा को श्रद्धांजलि दिया और महामारी पर फोकास करते हुए, उससे स्थायी तौर से निपटने की बात कही. जबकि, बीजेपी नेता ने पूर्व की ढपोरशंखी वादों की ही भांति, इस बार भी वादों की झड़ी लगाई. जिसमें कल्याण कम और राजनीति की बू अधिक आई. ज्ञात हो, भारी बहुमत के बीच भी जिस भाजपा की डबल इंजन सत्ता ने धऱती आबा व उनके गांव को लेकर जनता को दिखाए सपने, कभी पूरा न कर पाई. उन्हीं वादों के चिता पर खड़ा हो फिर एक बार जनता में अपने झूठे सपनों को खाद-पानी देने से न चुकी.  

मुख्यमंत्री हेमन्त ने भगवान बिरसा को नमन कर खुशहाल और संक्रमणमुक्त झारखंड बनाने का लिया संकल्प 

सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड को भगवान बिरसा के सपनों का राज्य बनाने के लिए खुद को कटिबद्ध बताते हुए, उनके विचार और आदर्शों को खुशहाल झारखंड के नीव के रूप में स्थापित करने की बात कही. सीएम ने कहा कि शोषितों-वंचितों के अधिकार के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले धरती आबा ने, समाज में बीमारियों को लेकर फैले अंधविश्वास को भी दूर किया था. आज झारखंड भी धरती आबा से प्रेरणा लेकर, उनके ही सुत्रों पर चल कर कोरोना जैसे घातक दुश्मन को राज्य से दूर भगाएगा. ज्ञात हो, यही कटिबद्धता व इच्छाशक्ति मुख्यमंत्री के कार्यकाल में दिखी भी है.

जनजातियों के उत्थान को लेकर झूठा आश्वासन व झूठा सपना, पुराने वादों की चिता पर खड़ा हो बीजेपी नेता फिर से सपने जगाने के प्रयास में दिखे

खूंटी सांसद सह केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने एक बार फिर योजनाओं के माध्यम से जनजातियों के उत्थान का दावा किया. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार 36 हजार आदर्श ग्राम व प्रत्येक प्रखंड में एकलव्य विद्यालय शुरू करेगी. और मंत्रालय ने 36000 गांव को आदर्श ग्राम बनाने की योजना बनाई है. जिससे आधारभूत संरचना, रोजगार को बढ़ावा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल की व्यवस्था, नेटवर्क व्यवस्था समेत 55 व्यवस्थाएं सुनिश्चित होगा. प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत प्रत्येक वर्ष 7000 गांव को आदर्श बनाया जाएगा. मसलन, यह ठीक उसी प्रकार का सपना हो सकता है जैसे देश ने स्मार्ट शहरों के सपने को धाराशाही होते देखा. 

अर्जुन मुंडा यह बताना भूल गये कि उनके नेताओं ने आज तक वादों को नहीं किया पूरा

हालांकि, योजनाओं की जानकारी देने में मशगूल अर्जुन मुंडा भूल गये कि धरती आबा का गांव “उलिहातू” उन्हीं के संसदीय क्षेत्र, खूंटी में पड़ता है. अर्जुन मुंडा यह भी बताना भूल गये कि उनके ही पार्टी के दूसरे शीर्ष नेता, अमित शाह (वर्तमान गृह मंत्री) और रघुवर दास (पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में बीजेपी के राष्ट्रीय केंद्रीय उपाध्यक्ष) ने उलिहातू गांव को लेकर जो वादे किये थे, लोगों को जो सपने दिखाए थे वह आज तक पूरा नहीं हो सका है.

2017 में अमित शाह ने किया था भूमिपूजन, उसके बाद से सुध तक नहीं ली

17 सितंबर 2017, बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अमित शाह अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू पहुंचे थे. वहां उन्होंने भगवान बिरसा मुंडा के परपोते सुखराम मुंडा के आंगन में शहीद ग्राम विकास योजना के अंतर्गत आवास के लिए भूमि पूजन किया था. करीब चार साल होने को है, लेकिन इस वादे की सुध न ही अमित शाह ने ली, न ही उनके सांसद अर्जुन मुंडा ने और न ही उनके पार्टी के किसी प्रदेश नेताओं ने ली. 

राजनाथ और रघुवर का भी वादा केवल घोषणाओं तक सिमटा

र्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी जब उलिहातू गांव पहुंचे थे, तो बड़े-बड़े दावों के साथ शहीदों के गांव की विकास के सपने दिखाए थे. हालांकि, उनका दावे भी पूरी तरह से खोखले साबित हुए. रघुवर दास ने भी मुख्यमंत्री रहते हुए झारखंड के शहीदों के गांव के लिये बड़ी-बड़ी घोषणा की थी, लेकिन यह केवल घोषणा ही बनकर रह गए.

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