हॉर्स ट्रेडिंग मामला 2016 : अपील भी तुम, दलील भी तुम, गवाह भी तुम, वकील भी तुम

हॉर्स ट्रेडिंग मामला 2016 में भाजपा के रवैये को देखते हुए, मरहूम राहत इन्दौरी की मशहूर शायरी अपने आशय के साथ सटीक बैठती है –

अपील भी तुम, दलील भी तुम, गवाह भी तुम, वकील भी तुम

जिसे चाहो हराम कर दो, जिसे भी चाहो हलाल कर दो..।

मरहूम राहत इन्दौरी

रांची : झारखंड वर्ष 2016,  राज्यसभा चुनाव में हुए हॉर्स ट्रेडिंग प्रकरण प्रदेश भाजपा के कई नेताओं की गले का फांस बन गयी है. हड्बडी बन उनके गले में फंसी गयी है. खासकर बाबूलाल मरांडी के लिए तो न उगलते बन रहा है और न ही निगलते. भाजपा में व्याप्त मामले को लेकर दहशत, उनके नेताओं के बयान में साफ़ देखी जा सकती है. वे जल्दबाजी में हड्डी को किसी भी प्रकार निकालना चाहते हैं. लेकिन जितना वे निकालने का प्रयास कर रहे हैं, गले में उतनी ही धंसती जा रही है. जिसकी खीज कभी धाराओं में ज्ञान बांटने तो कभी धमकी के रूप में बाहर आ रही है. 

मोटे तौर पर समझें, 2016 का हॉर्स ट्रेडिंग मामला क्या था? राज्यसभा चुनाव में भाजपा अपने उम्मीदवार के पक्ष में वोटिंग कराने के लिए कांग्रेस विधायक को रिश्वत देने की पेशकश की गई थी. जो भाजपा की ओर से सीधे-सीधे विपक्षी विधायक को खरीदने के प्रयास का मामला बना. इस मामले में सीआईडी के तत्कालीन एडीजी अनुराग गुप्ता और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के सलाहकार अजय कुमार की भी भूमिका अहम मानी गयी है. दोनों ही मामले में प्राथमिक अभियुक्त है. और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास अप्राथमिक अभियुक्त हैं.

बड़ा सवाल : क्या दल बदल लेने भर से ही व्यक्ति के विचारधारा की नैतिकता का पतन हो जाता है 

हॉर्स ट्रेडिंग मामला 2016

ज्ञात हो, मामले की शिकायत 2016 में, जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी द्वारा ही चुनाव आयोग को की गयी थी. अब स्थिति 180 डिग्री पर घूम जाने के कारण पूरा मामला कई मायने में दिलचस्प हो गया है. क्योंकि, मौजूदा दौर में बाबूलाल जेवीएम विचारधारा समेत खुद को भाजपा के लूट विचारधारा में विलीन कर लिया है. ऐसे में बाबूलाल के लिए यहीं से बड़ा सवाल उत्पन्न होता है कि उस समय उनकी शिकायत जब सही थी तो अब वह गलत कैसे हो सकती है? क्या दल बदल लेने भर से व्यक्ति की विचारधारा की नैतिकता का पतन हो जाता है?

ऐसे में झारखंड राजनीति के पृष्ठभूमि पर कई गंभीर सवाल उत्पन्न हुए है जिनके जवाब बाबूलाल जी को पत्र लिखकर या फिर प्रेस कांफ्रेंस कर जनता को देना चाहिए :

  1. बाबूलाल मरांडी को इतने साल बाद अचानक क्यों लगने लगा कि जांच निष्पक्ष नहीं हो रही है?
  2. क्या वह अब नहीं चाहते हैं कि इस मामले की जांच आगे बढ़े? या फिर यहां से भी यूटर्न वे लेना चाहते है.
  3. क्या उन्हें लगने लगा है कि उन्होंने पूर्व में यह शिकायत दर्ज कर गलती की थी?

हॉर्स ट्रेडिंग मामला 2016 में इससे अधिक अजीबोगरीब स्थिति क्या हो सकती है. जहाँ आरोपी और शिकायतकर्ता दोने हीमौजूदा दौर में भाजपा से ही जुड़े हैं. तो ऐसे में भाजपा का आरोप कि वर्तमान सरकार मामले में राजनीति कर रही है, कैसे युक्ति सांगत हो सकती है? जबकि कहावत तो यह प्रयुक्त होता है कि “चौबे गए छब्बे बनने दुबे बनकर लौटे”. मामले की दूसरी गंभीर पहलू यह भी है कि एक तरफ आरोपी व भाजपा के वरिष्ठ नेता जांच से न डरने की बात करते हैं. तो वहीं दूसरी तरफ 2024 में सबका हिसाब किया जाएगा व अफ़सरों को दिल्ली तलब किया जाएगा, जैसी धमकी, मामले की संदिग्धता को दर्शाती है.

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