कोरोना से अधिक मोदी सरकार की गलत नीतियां देश के गिरते आर्थिक हालत के लिए जिम्मेदार

नोटबंदी। जीएसटी। बेप्लानिग देशव्यापी लॉकडाउन। पूंजीपति मित्रों के फायदों के प्रति प्रेम। जैसे गलत निर्णय व मानसिकता, देश के गिरते आर्थिक हालत के लिए जिम्मेदार

देश की जीडीपी में वित्तीय वर्ष 2020-21 में नगेटिव 7.3% की आयी भारी गिरावट, चार दशक में आई सबसे बड़ी ऐतिहासिक गिरावट 

रांची: देश की आर्थिक व्यवस्था के मद्देनजर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी आंकड़े चिंताजनक है. ज्ञात हो, आकड़ों के अनुसार देश के जीडीपी में 7.3% की नगेटिव गिरावट आयी है. जो पिछले चार दशक, वित्तीय वर्ष 2020–2021 से 1979 की तुलना में ऐतिहासिक गिरावट है. 1979 के दौर में भी देश की जीडीपी में करीब 5% की गिरावट दर्ज की गयी थी. बहरहाल, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में गिरती अर्थव्यवस्था देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है. 

ज्ञात हो, वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में भी जीडीपी में 23.9% की ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गयी. कोरोना वायरस के रोक-थाम में लगे देशव्यापी लॉकडाउन से ठप आर्थिक गतिविधियां, गिरते आंकड़ों की सरकारी वजह मानी जा रही है. हालंकि, कुछ हद तक तो इस मान्यता को सही माना जा सकता है. लेकिन, अर्थव्यवस्था के गिरते आंकड़ों का जिम्मेदार केवल कोरोना महामारी नहीं हो सकती. क्योंकि, गलत आर्थिक नीतियों के अक्स में – मोदी सरकार की नोटबंदी, जीएसटी, बेप्लानिग देशव्यापी लॉकडाउन, पूंजीपति के फायदों के प्रति प्रेम, जैसे निर्णय देश की गिरती अर्थव्यवस्थ की मुख्य वजह रही है.

देश की समस्याओं के बजाय पूंजीपति हित व चुनावी फण्ड के मद्देनजर लिया गया नोटबंदी निर्णय, देश के गिरते आर्थिक हालत की मुख्य वजह  

देश की गिरती आर्थिक व्यवस्था की प्रमुख वजह मित्र पूंजीपतियों का फायदा, चुनावी फण्ड की उगाही व विपक्ष को आर्थिक चोट पहुँचाने के मद्देनजर, मोदी सरकार द्वारा अचानक ली गयी नोटबंदी का निर्णय रहा है. ज्ञात हो, देश में जीडीपी के ध्वस्त होने की शुरुआत नोटबंदी के दौर से हो गई थी. नवंबर 2016 में नोटबंदी का ऐलान हुआ था. जहाँ नोट बदलवाने की प्रक्रिया में लोगों को परेशानी झेलनी पड़ी. 100 से अधिक लोगों की मौत भी हुई. नोटबंदी का असर तत्कालीन वितीय वर्ष से ही देखने को मिला. देश की जीडीपी में 2016-17 के 8.26% की दर, वित्त  वर्ष 2017-18 में गिरकर 7% हो गयी. सिलसिला थमा नहीं और कोरोना महामारी ने आखिरी किल ठोक दी . 

कोरोना महामारी से पहले – जीएसटी-नोटबंदी ने देश की जीडीपी को 4.20% पर ला खड़ा किया 

मोदी सरकार द्वारा जल्दबाजी में लिए गए वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी का विनाशकारी फैसला, देश की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट की. देश में अभी नोटबंदी का असर शुरू ही हुआ था कि मोदी सरकार ने 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू कर, देश को भीषण आर्थिक संकट के भवर में धकेल दिया. विपक्ष ने निर्णय की आलोचना भी की, लेकिन गोदी मिडिया में मुद्दे को न उछाले जाने के कारण, यह बड़ा मुद्दा न बन पाया. नतीजन देश के कारोबारियों पर इसका बुरा असर पड़ा. एक तरफ नौकरिया गयी तो दूसरी तरफ 2017-18 के बाद 2018-19 और 2019-20 में देश की जीडीपी में भरी गिरावट दर्ज की गयी.

ज्ञात हो, 2017 से मार्च 2020 तक देश की जीडीपी बिल्कुल आधी हो चुकी थी. जबकि अभी कोरोना ने देश में दस्तक भी नहीं दिया था. मसलन, कोरोना वायरस की देश में एंट्री और उसके असर से पहले ही देश की जीडीपी 4.20% पर आ चुकी थी, और सिलसिला जारी भी था. जिसे मोदी सत्ता ने कोरोना की बाढ़ में अपने तमाम पाप को बहा देना चाहा. लेकिन सच्चाई है कि छुपने का नाम ही नहीं लेती.

मोदी सरकार द्वारा राज्यों से मशवरा किये बिना लिया गया लॉकडाउन का निर्णय ने देश के आर्थिक रफ्तार पर लगाया स्थाई विराम 

जनवरी 2020, देश में कोरोना महामारी का दस्तक – जब, मोदी सत्ता, खास कर गृह मंत्री अमित शाह सरकार गिराने-बनाने में व्यस्त थे. मार्च तक तो संक्रमण ने महामारी का रूप ले लिया था. फिर आनन-फानन में ताली-थाली का दौर शुरू हुआ. मोदी सत्ता के अचानक बुलाए लॉकडाउन से देश संभल नहीं पाया. निर्णय में राज्य की भागीदारी नहीं होने से वह केंद्र पर आश्रित रहे और किसी ख़ास नीति पर कार्य न कर सके. मसलन, कोरोना महामारी से देश बेरोजगारी का असंख्य भार को झेलने को विवश था. और आर्थिक व्यवस्था ज़मीन से नीचे रेंग रहा था. जिसकी भरपाई करने की क्षमता मौजूदा सत्ता में दिखती भी नहीं है. 

कोरोना के पहले ही वेग में देश लडखडाने लगा था. मजदूर घर तक के सड़क को अपने पाँव से नापने को मजबूर हो चुके थे. देश के लिए इससे दुखद स्थिति क्या हो सकती है, जहाँ मोदी सत्ता ने त्रासदी में सड़कों पर दम तोड़ दिए मजदूरों के आंकड़े तक न जुटा पाई. और न ही कोई संवेदना ही जाहिर कर पाई. देश को बिकुल उसके हाल पर छोड़ दिया गया. जहाँ देश की आर्थिक व्यवस्था तहस-नहस हो चुकी थी. और केन्द्र आपदा में अवसर तलाशते हुए केवल इतना भर कह कि देश की जीडीपी में गिरावट केवल कोरोना महामारी की वजह से है, पल्ला झाड लिया. 

मसलन, मौजूदा दौर, 2020-21 में नगेटिव 7.3% के गिरावट के आंकड़े देश की दुर्दशा को बयान कर रही है. और सम्बंधित मुद्दे पर हेमंत सोरेन सरीखे मुख्यमंत्री ने जब भी आवाज़ या सवाल उठाये, तो केन्द्रीय सत्ता व उसके प्रचार तंत्र द्वारा असंवैधानिक करार दे उन्हें दबाने का प्रयास किया गया. 

1979 में तो राजनीतिक अस्थिरता का दौर था, लेकिन आज तो ऐसा नहीं – केंद्र को बताना चाहिए कि देश की ऐसी स्थिति क्यों 

इतिहास गवाह है कि स्थिर एवं पूर्ण बहुमत की सरकार में देश की ऐसी आर्थिक स्थित पहले कभी नहीं रही. 40 साल पहले, सन 1979, जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार थी. ज्ञात हो, मोरारजी देसाई ने इंदिरा गांधी जैसे कद्दावर नेता को हराया था. हालांकि, राजनीतिक अस्थिरता होने के कारण देश के हालात अच्छे नहीं रहे. नतीजतन, उस वक़्त देश की जीडीपी में 5% की गिरावट आयी थी. लेकिन मौजूदा दौर में तो देश में स्थिर और पूर्ण बहुमत की सरकार है. ऐसे में देश के जीडीपी में नगेटिव 7% से अधिक की गिरावट कैसे आ सकती है. राष्ट्रभक्ति के मद्देनजर मोदी सत्ता को देश के गिरते आर्थिक हालत का सच बताना चाहिए.

कोरोना की दूसरी लहर के बाद देश की जीडीपी पर और मार पड़ने के आसार 

मजबूती से माना जा रहा है कि चालू वित्त वर्ष (2021-22) की पहली तिमाही में, देश की जीडीपी पर कोरोना की दूसरी लहर की मार और व्यापक पड़ेगी. इस वजह से पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को पहले ही घटा दिया गया है. ग्रोथ के रास्ते पर लौट रही अर्थव्यवस्था को कोरोना की दूसरी लहर ने फिर बेपटरी कर दिया है. कोरोना की दूसरी लहर का असर भी अप्रैल-जून तिमाही पर पड़ने का अनुमान है. ऐसे में देश के गिरते आर्थिक हालत के बीच मध्यम-गरीब वर्ग की स्थिति समझी जा सकती है.

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