डायन बिसाही जैसी कुप्रथा की जड़ से खात्मे पर जोर, विद्यार्थी बनें जागरुकता अंबेसडर

झारखण्ड : गरिमा परियोजना अंतर्गत डायन बिसाही जैसी कुप्रथा से झारखण्ड को मुक्त कराने के लिए आयोजित कार्यशाला में डायन कुप्रथा को जड़ से खत्म करने पर जोर…

  • स्कूली बच्चे बनें डायन कुप्रथा के जागरुकता अंबेसडर- मुख्य न्यायाधीश
  • छुटनी देवी को गरिमा परियोजना का ब्राण्ड अंबेसडर बनाएं- न्यायाधीश

रांची : ग्रामीण विकास विभाग एवं झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के अंतर्गत हेहल स्थित राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (SIRD) में झारखंड को डायन बिसाही जैसे कुप्रथा से मुक्त बनाने के उद्देश्य से दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ. गरिमा परियोजना के अंतर्गत आयोजित साझा प्रयास से डायन बिसाही जैसी कुप्रथा से मुक्त झारखण्ड पर कार्यशाला में मुख्य अतिथि के तौर पर झारखण्ड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और झालसा के मुख्य संरक्षक ने सर्ड कैंपस में पौधारोपण किया. साथ ही डायन कुप्रथा की पीड़ित महिलाओं के मुख्यधारा में जुड़ने की कहानियों के संग्रह पर आधारित गरिमा पुस्तिका का विमोचन किया गया.

21वीं सदी में भी डायन जैसे कुप्रथा के जरिए महिलाओं से असमानता एवं भेदभाव का दौर जारी

झारखण्ड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि 21वीं सदी में भी डायन जैसे कुप्रथा के जरिए महिलाओं से असमानता एवं भेदभाव का दौर जारी है, जो दुखद है. जागरुकता एवं शिक्षा की कमी ऐसी कुप्रथाओं को बढ़ावा देती है. हमें स्कूली बच्चों को डायन कुप्रथा को समाप्त करने के लिए ब्राण्ड एम्बेसडर के रुप में तैयार करने चाहिए. जो गांव में हमारे जागरुकता एम्बेसडर हो सकते हैं. सभी विभागों को साथ मिलकर हर गांव में शिक्षा, जागरुकता, स्वास्थ्य सेवा को सुद्ढ करने की जरुरत है. हर गांव में महिलाओं  सशक्त बनाने की जरुरत है. 

झालसा के जरिए राज्य भर में ऐसी सामाजिक कुप्रथाओं को जड़ से खत्म करने के लिए कार्य किया जा रहा है. ग्रामीण विकास विभाग की इस पहल में झालसा भी अपना रोल निभाएगा. वहीं उन्होंने डायन प्रथा के कानूनों के बारे में लोगों को जागरुक करने की बात कही ताकि उनको अपने हक की जानकारी हो एवं समाजिक न्याय हासिल कर सके.

छुटनी देवी को गरिमा परियोजना का ब्राण्ड अंबेसडर बनाएं- न्यायाधीश

न्यायाधीश अपरेश सिंह ने कहा कि झालसा डायन प्रथा को समाप्त करने के लिए लगातार प्रयासरत है. यह कार्यशाला इस उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा. हमें सभी तक को शिक्षा एवं कानूनी जानकारी लोगों तक पहुंचाने की जरुरत है. जेएसएलपीएस एवं झालसा मिलकर डायन कुप्रथा को खत्म करने की दिशा में काम कर सकते है. राज्य में डायन कुप्रथा को खत्म करने के लिए कई कानून बनाए गए है. झालसा लोगों को जागरुक करने के लिए कार्य कर रही है. उम्मीद है कीइस कार्यशाला के जरिए काम मजबूती से आगे बढ़ेगा. 

डायन कुप्रथा की घटनाओं के आंकड़े चौकाने वाले

कार्यशाला में ग्रामीण विकास सचिव ने कहा कि राज्य में डायन कुप्रथा की घटनाओं के आंकड़े चौकाने वाले है. ग्रामीण झारखण्ड से इस कुप्रथा को समाप्त करने की जरुरत है. इस कार्यशाला के माध्यम से डायन कुप्रथा के खिलाफ काम करने वाले विभिन्न स्टेकहोल्डर्स एक साझा रणनीति तैयार कर सकेंगे. गरिमा परियोजना पर जानकारी देते हुए उकहा कि आने वाले दिनों में इस परियोजना के तहत राज्य की करीब 5000 डायन कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं को लाभ मिलेगा. इस परियोजना के तहत पीड़ित महिलाओं को कानूनी मानसिक काउंसेलिंग समेत अन्य मदद का प्रावधान भी किया गया है.

2023 तक राज्य को डायन बिसाही जैसी कुप्रथा से मुक्त करने की कोशिश -पद्मश्री छुटनी देवी

डायन बिसाही जैसी सामाजिक कुप्रथा पर सामाजिक कार्य के लिए पद्मश्री से सम्मानीत छुटनी देवी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अपनी कहानी विस्तार से साझा किया. छुटनी देवी ने बताया कि डायन के रूप में गांव के लोगों ने उन्हें भी मारने की कोशिश की. आज मैं करीब 145 दूसरी पीडित महिलाओं को मुख्यधारा में ला चुकी हूं जो अपने गांव में डायन के रुप में ब्राण्ड की जा चुकी थी. आने वाले दिनों में इस राज्य में हजारों छुटनी हमारे साथ होंगी और 2023 तक राज्य डायन कुप्रथा मुक्त होगा.

गरिमा परियोजना के जरिए राज्य में डायन बिसाही जैसी प्रथा को जड़ से मिटाने के लिए कार्य किया जाएगा

जेएसएलपीएस की सीईओ ने धन्यवाद देते हुए सभी अतिथियों के सुझावों पर अमल करने की बात कही. श्रीमती सहाय ने बताया कि गरिमा परियोजना के जरिए राज्य में डायन बिसाही जैसी प्रथा को जड़ से मिटाने के लिए कार्य किया जाएगा. इस कार्यशाला के जरिए समेकित प्रयास किया जाएगा की सभी स्टेकहोल्डर्स मिलकर डायन प्रथा के खिलाफ काम करें. जेएसएलपीएस के द्वारा गरिमा परियोजना के जरिए 7 जिलों में डायन कुप्रथा उन्मूलन के लिए कार्य किया जा रहा है. परियोजना का लक्ष्य डायन कुप्रथा से प्रभावित क्षेत्रों की महिलाओं का आर्थिक एवं सामाजिक विकास के द्वारा सामाजिक कुरीतियों को खत्म कर, एक सभ्य समाज की स्थापना करना और हर महिला को गरिमामय जीवन दे पाना है.

अब तक राज्य में करीब 933 डायन कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं की पहचान की गई है. वहीं करीब 438 चिन्हित पीड़ित महिलाओं को सखी मंडल के जरिए आजीविका के विभिन्न साधनों से जोड़ा गया है. करीब 567 चिन्हित महिलाओं को मनोचिकित्सिय काउंसेलिंग भी उपलब्ध कराया गया है.

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