केन्द्रीय सत्ता : SC/ST मामलों में 23% और बलात्कार के मामलों में 33% की बढ़ोत्तरी. और दोनों ही मामलों में सजा केवल 6% को मिली. ऐसे घने अँधेरे में SC-ST महिलायें केन्द्रीय सत्ता का कौन सा धुन गाए?
रांची : देश में आरएसएस और भाजपा की ब्राह्मणवादी/सवर्णवादी सत्ता न केवल मनुस्मृति आधारित प्रतिक्रियावादी ग्रन्थों का गुणगान बल्कि उसे खाद-पानी देने का भी सच लिए है. जिसके अक्स में दलितों-आदिवासियों के उत्पीड़न के मामलों की बढोतरी का सच है. मणिपुर समेत कई मामलो में बीजेपी सरकार अपराधियों को बचाने में पूरा जोर लगाने का सच लिए हुए है. क़ानून ताक़ पर रख पीड़ित दलित लड़की की लाश बग़ैर पोस्टमार्टम के पुलिस प्रशासन द्वारा ही जलाने का सच लिए है.
संविधान के अक्स में मनु मानसिकता में उत्पन्न क़ानून के थोड़े बहुत भय ख़त्म होने का सच लिए है. सुप्रीम कोर्ट के द्वारा SC-ST क़ानून को कमज़ोर करने जैसी कई प्रयासों के सच लिए वही बीजेपी सत्ता सतह पर खड़ी है. बहुजन जजों की नियुक्ति, तबादल व जज लोया जैसे प्रकरणों में न्यायालयों की दुर्गति की सहज समझ देश के समक्ष हो. और बीजेपी के नेता-कार्यकर्ता दलित-आदिवासी उत्पीड़न में संलग्नता का सच लिए हो तो बीजेपी सत्ता की प्राथमिकता समझी जा सकती है.
दलित-आदिवासी बेटियों से बलात्कार और हत्या के अपराधों के ग्राफ बढोतरी
दलित-आदिवासी समेत कामगार महलाओं के दृष्टिकोण से मनु आधरित केन्द्रीय सत्ता ने दमन उत्पीड़न सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ने के सच के साथ खडी है. दलित-आदिवासी बेटियों से बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों का ग्राफ बढे हैं. विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में अनुषंगिक संगठन एबीवीपी के सदस्यों के द्वारा दलित प्रोफ़ेसरों के साथ मारपीट और अपमान की कई घटनाएँ सामने हैं. यही नहीं आदिवासी-दलित सीएम पूर्व सीएम को षड्यंत्रों के आसरे बदनाम करने का सच भी सामने है.
मार्च 2023 में दूसरे बजट सत्र में केन्द्रीय गृह राज्यमन्त्री ने जवाब दिया कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2021 के रिपोर्ट के अनुसार, चार सालों (2018 से 2021 तक) में एससी-एसटी के ख़िलाफ़ अपराधों के कम-से-कम 1,89,945 मामले दर्ज हुए. वर्ष 2016 में अपराध के कुल 40,801 मामले दर्ज हुए थे. साल 2017 में 43,203, 2018 में 42,793, 2019 में 45,961 और 2020 में यह बढ़कर 50,291 हो गई. यानी 2016 से 2020 तक इसमें 23% की बढ़ोत्तरी हुई.
इसी प्रकार दलित आदिवासे महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों में साल-दर-साल लगातार बढ़ोत्तरी होती गयी. वर्ष 2016 में बलात्कार के 2,541 मामले दर्ज किये गये थे, वर्ष 2017 में 2,714, 2018 में 2,936, 2019 में 3,484 और 2020 में 3,372 मामले दर्ज हुए. यानी इनके बलात्कार के मामलों में 2016 से 2020 तक लगभग 33% बढ़ोत्तरी हुई. जिसका अर्थ है कि हर रोज़ 9 महिलाओं के बलात्कार के मामले दर्ज हुए हैं. जबकि यह तब है इनके मामले बमुश्किल ही दर्ज हो पाते हैं.
वर्तमान केन्द्रीय सत्ता में अनुसूचित जातियों के मामलों में सुनवाई की स्थिति
अनुसूचित जातियों के उत्पीडन में दर्ज मामलों में भी सज़ा मिलने का प्रतिशत भी बहुत कम है. वर्ष 2020 में अपराध के कुल 50,291 मामले दर्ज हुए, मात्र 3,241 मामलों में ही सज़ा सुनाई गयी. जो मात्र 6% है. साल 2020 के महिलाओं के दर्ज बलात्कार के कुल 3,372 मामलों में मात्र 2,959 मामलों में ही चार्जशीट पेश हुए और सिर्फ़ 225 मामलों सज़ा सुनाई गयी, वह भी मात्र 6% है. क्या यह आँकड़े भाजपा के दलित-आदिवासी प्रेम, रामराज्य और अमृत्काल की सच्चाई सामने नहीं रखते?
दिलचस्प है कि दलितों का उत्पीड़न उन राज्यों में भी बढ़ा है जहाँ बीजेपी की सरकार नहीं हैं. लेकिन इन राज्यों में भी दलित-आदिवासी उत्पीड़न के कई मामलों में गैर बीजेपी सरकार को बदनाम करने के अक्स में भाजपाई ही ज़िम्मेदार थे. लेकिन, यह उत्पीड़न का ग्राफ भाजपा शासित राज्यों में अधिक तेज़ गति से बढ़ा है. जो दर्शाता है कि अनुसूचित जातियों के उत्पीड़न में बढोतरी का सीधा कारण सत्ता या राजनीति में मनुवाद का होना है. भारत अब इस सत्य को जैसे भी ले लेकिन सत्य तो यही है.