शिक्षा के केंद्र ही झारखंड के विकास का उद्गम बने

शिक्षा के केंद्र ही झारखंड के विकास का उद्गम बने 

शिक्षा के केंद्र न केवल बच्चे को अक्षर ज्ञान कराता है, बल्कि वह एक ऐसा स्रोत भी है जो समाज में सामूहिकता के भावना को गढ़ते हुए, देश के उसके कला व श्रम संस्कृति में अद्भुत बदलाव कर विकास की गाथा लिखती है। शिक्षा का केन्द्र ही उद्गम है जो राष्ट्र के पीढ़ियों में मानसिक व शारीरिक विकास में ऐसा तालमेल बिठाती है जिससे उस राष्ट्र को देखने का नज़रिया बदल देता है। इन्हीं अहमियतों के कारण शिक्षा व शिक्षा के केंद्र किसी भी सरकार की पहली ज़िम्मेदारी होती है।

झारखंड राज्य में पिछली सरकार शिक्षा के क्षेत्र में न केवल नए आयाम जोड़ने में असफल हुई बल्कि हजारों स्कूलों को मर्जर के नाम पर बंद कर ध्वस्त करने का भी कार्य किया। साथ ही बड़ी बेशर्मी के साथ यह भी कहा कि राज्य के छात्रों में योग्यता ही नहीं है। झारखंड राज्य की सरकारी स्कूलों की स्थिति खुद ही अपनी दुर्दशा बयाँ करती हैं कि व्यवस्थित तरीक़े से ख़त्म करने का काम सरकार ने किया। पूँजीपति वर्ग की नुमाइन्दगी करने वाली सरकार ने पूँजी के लिए बाज़ार खोल दिया।

उस सरकार ने मुनाफे के आसरे सरकारी स्कूल को शिक्षा का केंद्र से बेदखल कर प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा दिया। जो पूँजीपति वर्ग को शिक्षा के क्षेत्र में मोटी कमाई के लिए बिज़नेस के तौर पर इस्तेमाल करने का रास्ता खोल दिया। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि जहाँ एक तरफ सरकारी स्कूलों में होने वाले एडमिशनों में भारी गिरावट देखी गयी वहीं निजी स्कूलों में भारी मात्र में नये छात्रों ने एडमिशन लिया। जो यह पुष्टि करता है कि सरकारी स्कूलों में ढाँचागत सुधार नहीं किये गए। 

मसलन, राज्य के नवनिर्वाचित हेमंत सरकार को चाहिए कि राज्य के सुनहरे भविष्य की सुनिश्चिता के लिए, शिक्षा के ऐसे मायने स्थापित करे, जो न केवल राज्य बल्कि देश को भी नयी परिभाषा दे। जो मनमाने फीस लेनेवाले विद्यालयों की दुकान बंद करे और सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता को लेकर विश्वसनीयता फिर से कायम करे। ताकि राज्य के आख़िरी पायदान पर खड़ी ग़रीब जनता तक को लगे कि उसका व उसके परिवार का भविष्य उसके बच्चे के पढ़ाई में निहित है।

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