CAA और NRC को हेमंत सरकार द्वारा नकारना झारखंड के लिए राहत भरी ख़बर

CAA और NRC झारखंड के लिए हितकर नहीं

आज हमारा देश आर्थिक मंदी की चपेट में है, हमारी अर्थव्यवस्था आखरी साँसे गिन रही है। बेरोजगारी अपने ऐतिहासिक चरम पर है। हर प्रदेश की जनता त्राहिमाम हो सड़कों पर आन्दोलनरत है। बदहवास सत्ता टीवी चैनलों पर उलूल-जुलूल सफाइयाँ देते हुए जनता को धमकी भी देने से नहीं चुक रही। दमन-चक्र अपने चरम पर है। राहत की बात यह है कि आन्दोलन को ‘हिन्दू-मुस्लिम’ में बाँटने की हर कोशिश नाकाम रही हैI वो कहते हैं कि जो जितनी अक़ल भिड़ाते हैं, उतने ही आत्मघाती कदम उठाते हैं। रंगा-बिल्ला की जोड़ी से भी यही हुआ है।

CAA और NRC लाकर खास धर्मवाली को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की जुगत भिडाई, लेकिन हुआ ठीक उलटा। छात्रों-युवाओं से अधिक आम नागरिक सड़कों पर उमड़ पड़े जिसकी संख्या मुसलमानों से कई गुना अधिक थे। जो साम्प्रदायिक विभाजन की जगह साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता की लहर फ़ैलने लगी है। हो भी क्यों न उदाहरण के रूप में झारखंड में चुनाव के वक़्त बोकारो के 19 विस्थापित गांव के लोग सरकार से पूछ बैठे कि वे लोग कौन हैं, रोहिंग्या या पाकिस्तान से आए हैं। नतीजतन रघुवर सत्ता को मुँह की खानी पड़ी।

ये बोकारो जिले के 19 विस्थापित गांवों के लोग हैं जिनकी ज़मीने बोकारी स्टील प्लांट स्थापना की भेंट चढ़ गयी। ये अपने प्रतिनिधि को तो वोट दे सदन तक भेज सकते हैं, लेकिन अपने लिए ग्राम प्रधान तक नहीं चुन सकते। मसलन इन्हें अबतक स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय तक नहीं मिल पाया है, सड़क व बाकी चीजें दूर की बात है। फिर भी पूरे बोकारो को शौच मुक्त घोषित किया जा चुका है। साथ ही जहाँ ये रह रहे हैं उन ज़मीनों को भी लैंडबैंक में डाला दिया गया है। ऐसे में CAA और NRC के बीच इनका सवाल जायज़ है कि ये कहाँ के हैं?

यही स्थिति कमोवेश झारखंड के लगभग सभिजिलों की है। कहीं कोयला उद्योग के कारण लोग विस्थापित हैं तो कहीं माइका व लोह अयस्क उद्योग के कारण। झारखंड की अधिकांश आबादी जो इस प्रदेश के आदिवासी- मूलवासी हैं विस्थापित है। जबतक इन तमाम विस्थापितों को इनका हक नहीं मिल जाता है तब तक CAA और NRC प्रदेश में लागू करना झारखंड की जनता के लिए अहितकर होगा। 

CAA के अनुसार किसी व्यक्ति को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए तीन बिन्दुओं को सिद्ध करना पड़ेगा। 1. उस व्यक्ति ने अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान से भारत में 31 दिसम्बर 2014 की कट ऑफ़ तारीख़ से पहले प्रवेश किया हो। 2. उस व्यक्ति के पास अपने मूल देश का पहचान प्रमाणपत्र व भारत आने की वेद्य  दस्तावेज़ हों। 3. उसने धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर पलायन किया हो। साफ़ है कि इन तीन बिन्दुओं में दूसरे व तीसरे बिंदु को सिद्ध कर पाना बेहद कठिन है। ऐसा करने में विफल होने की स्थिति में उसे शिवरों में नज़रबन्द कर दिया जाएगा, या फिर उसे लंबी व बेहद तकलीफ़देह क़ानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा।

मसलन, इन प्रावधानों के आधार पर झारखंड के वे लोग NRC में पंजीकृत होने से वंचित हो जायेंगे जो यहाँ कई पुश्तों से रह रहे हैं लेकिन ग़रीबी, अशिक्षा, विस्थापन जैसे तमाम कारणों की वजह से कागज़ातरहित हैं। इन परिस्थितियों में झारखंड के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का CAA और NRC को ना कहना झारखंड के लिए एक राहत भरी खबर है।

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