महा बदलाव रैली को जनता ने मेघदूत को धोबी पछाड़ दे सफल बनाया 

19 अक्टूबर को झारखंड की राजधानी राँची का पूरा दिन थम जाना-ठहर जाना,  इंद्रदेव के मेघदूत का एक दफा नहीं चार-चार दफा झारखंडी जनता की परीक्षा लेने के बावजूद उनका अडिग खड़ा रहना, क्या यह नहीं दर्शाता कि रघुवर सरकार के दिन अब झारखंड में गिने चुने रह गए हैं झारखंड की भूखी जनता का ध्यान तरह-तरह के झुनझुने बजाकर, इधर-उधर की चीज़ें दिखाकर आखिर कब तक भटकाया जा सकता है। लोग लोहे की दीवारों में क़ैद हों, तो भी जागेंगे। वे उठेंगे और दीवारों को तोड़ डालेंगे और उनका हक़ छीनने वालों को सबक़ सिखायेंगे। यही तो 19 अक्टूबर के झामुमो की महा बदलाव रैली (बदलाव महारैली) को सफल बना कर जनता ने दिखाया।

यह झारखंड में कोई पहली बार नहीं बल्कि इतिहास ने बार-बार साबित किया है, यहाँ लाशों की राजनीति, आतंक के सन्नाटे से भरे साम्राज्य कभी भी टिकाऊ नहीं रहे। सच को यहाँ कभी भी हमेशा के लिए झूठी बातों से छुपाया नहीं जा सकता। भीडतंत्र का राज क़ायम कर भी लोगों को उठ खड़े होने से रोका नहीं जा सकता। झारखंडी जनता जब भी उठ खड़े हुए हैं, तमाम तानाशाहों को मिट्टी में मिलकर ही दम लिया है। पर तानाशाह इतिहास को कचरे की पेटी भर समझते हैं इसलिए वे कभी इतिहास से सबक़ नहीं लेते, बल्कि उन्हें इतिहास को बदल देने का भ्रम होता है, लेकिन इतिहास उनके लिए कचरे की पेटी तैयार करता रहता है।

बहरहाल, यह सत्य है कि फ़ासीवाद के ख़ि‍लाफ़ लड़ाई का मोर्चा सड़कों पर ही बँधता है। क्योंकि यहीं से फासीवादियों की घिनौनी करतूत, उनके काले इतिहास और पूँजीपरस्त, धनलोलुप चरित्र का पर्दाफ़ाश व्यापक पैमाने पर हो सकता है। यही काम झारखंड के नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने पहले झारखंड संघर्ष यात्रा और बाद में बदलाव यात्रा फिर महा बदलाव रैली के रूप में किया। जिससे फासीवादियों का सामाजिक आधार छिन्न-भिन्न हो सका, जिसमे झारखंडी आवाम भरपूर ताक़त के साथ इनके आवाज़ में आवाज़ मिलानी चाही। यह नकारा भी नहीं जा सकता कि फासीवादियों को  इतिहास के कूड़ेदान में धकेलने के लिए हेमंत सोरेन ने कभी संघर्ष का दामन नहीं छोड़ा, वे लगातार अपने काम में लगे हुए हैं।

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