आयुष चिकित्सा का हाल झारखंड में बेहाल फिर भी प्रधानमंत्री के योग का दिखावा

आयुर्वेद या आयुष चिकित्सा को लेकर मोदी सरकार का केवल दिखावा

आयुर्वेद भारत की प्राचीन लगभग 5000 साल पहले उत्पन्न हुई चिकित्सा प्रणाली मानी जाती है। आयुर्वेद दो संस्कृत शब्दों ‘आयुष’ अर्थ -जीवन तथा ‘वेद’ अर्थ -‘विज्ञान’ से मिलकर बना है। इसलिए  इसका शाब्दिक अर्थ ‘जीवन का विज्ञान’ है। अन्य औषधीय प्रणालियों से परे, आयुर्वेद उपचार के बजाय स्वस्थ जीवनशैली पर अधिक केंद्रित है। आयुर्वेद उपचारित होने की प्रक्रिया को व्यक्तिगत बनाता है।

आयुष चिकित्सा मानव शरीर को चार मूल तत्वों -दोष, धातु, मल और अग्नि से निर्मित मानता है और  शरीर की इन्हीं बुनियादी बातों का अत्यधिक महत्व देता है। इन्हें ‘मूल सिद्धांत’ या आयुर्वेदिक उपचार के बुनियादी सिद्धांत’ कहा जाता है।

यह चिकित्सा पद्धति सस्ती होने के कारण केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 15.09.2014 को राष्ट्रीय आयुष मिशन (एनएएम) को मंजूरी दी, जिसे 15.09.2014 को अधिसूचित किया गया। एनएएम के अंतर्गत राज्‍यों का वित्‍त पोषण दिसम्‍बर, 2014 को वास्‍तविक रूप से प्रारम्‍भ हुआ। मंत्रिमंडल की स्‍वीकृति के अनुसार, एनएएम के मिशन निदेशालय एवं मूल्‍यांकन समिति का गठन भी किया गया। राष्ट्रीय आयुष मिशन के अंतर्गत अन्‍य बातों के साथ-साथ आयुष अस्‍पतालों और औषधालयों की संख्‍या प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों (पीएचसी) से लेकर जिला अस्‍पतालों (डीएच) में आयुष सुविधायें स्‍थापित करने की बात कही गयी। साथ ही उन्नत शैक्षिक संस्थानों की संख्या में वृद्धि से लेकर, गुणवत्तापूर्ण आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी (एएसयू एंड एच) औषधियों की उपलब्धता का लक्ष्य शामिल है।

संस्कृति व वेद पोषक दल के प्रधान मंत्री योग करने स्वयं झारखंड पहुंचे है, वो अलग बात है कि विपक्ष इसे आगामी विस चुनाव के तैयारियों के रूप में देख रही है इसकी मुख्य वजह यह भी हो सकती है कि आयुष चिकित्सा पद्धति का हाल इस राज्य में काफी ख़स्ता है झारखंड प्रदेश में आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध व  होमियोपैथ के आयुष निदेशालय से लेकर आयुष से संबंधित मेडिकल कॉलेजों, विभिन्न संयुक्त अस्पताल व डिस्पेंसरी में चिकित्सकों, शिक्षकों व पदाधिकारियों सहित तृतीय व चतुर्थ वर्गीय कर्मियों के लगभग 82 फीसदी पद रिक्त है आयुष से जुड़े कुल 1762 पदों में 1430 पद रिक्त हैं

झारखंड में इसकी बदहाली का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि 2003 में स्वीकृत हुआ आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज चाईबासा का भवन अबतक केवल 30 फीसदी ही बना है अब इसकी लागत भी करीब 10 गुना बढ़ गयी हैवहीं यूनानी मेडिकल कॉलेज, गिरिडीह भी 2016 से बन कर बेकार पड़ी हैआयुर्वेदिक फार्मेसी कॉलेज गुमला भी अबतक नहीं बना है 64 स्वीकृत पदों वाली गोड्डा होमियोपैथी मेडिकल कॉलेज भी मात्र पांच लोगों के भरोसे किसी तरह संचालित है राज्य भर में आयुष चिकित्सा की हालत बेहाल है यही नहीं झारखंड में कार्यरत आयुष चिकित्सकों में अपने ग्रेड-पे तथा सेवानिवृत्त की उम्र सीमा को लेकर गहरी नाराज़गी है

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