इस सरकार में ग़रीब के बच्चों की कोई मोल नहीं!
वैसे तो यह सत्य है कि झारखंड प्रारंभ से ही योग संस्कृति का हिस्सा रहा है। यहां की छऊ नृत्य की शैली और मुद्राएं योग का ही तो आभास कराती हैं। साथ ही नागवंशियों व असुरों की संस्कृति वैदिक काल से कहीं अधिक पुरातन है। तो जाहिर है योग प्रारंभ काल से झारखंड की संस्कृति का हिस्सा रहा है। कहा जा रहा कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने रांची की धरती से योग की महत्ता का संदेश दिया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि विश्व शांति, सद्भाव और समृद्धि के लिए योग अपनायें। राँची विश्व के फलक पर चमक रहा है और इस प्रकार फिर से एक बार चुनाव से पहले लोकप्रियता बटोरने के लिए उन्होंने यह भी कहा कि राँची उनके मन में विशेष जगह रखता है।
उनका यह भी कहना है कि स्वास्थ्य की सबसे बड़ी योजना आयुष्मान भारत का शुभारंभ राँची से हुआ था। यह योजना आज बहुत कम समय में ग़रीबों के लिए वरदान साबित हुआ है। लेकिन सवाल है कि अगर राँची उनके लिए इतना महत्त्व रखता है तो फिर, अभी चंद दिनों पहले यहाँ के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में उसी योजना के तहत भर्ती हुए रोगियों को क्यों दवा के जगह मौत मिली। काश उन मौतों पर भी कुछ बोल दिए होते! कम से कम इतना ही बता दिए होते कि झारखंड में भूख से हुई 20 मौतों में गलती किसकी है? लेकिन, इस योग दिवस पर सोशल मीडिया पर मोदीजी अलग मुद्दे पर ट्रोल हुए हैं।
लोगों का कहना है कि क्रिकेटर शिखर धवन की उंगली में जरा सी मोच क्या आयी साहब ने तुरंत ट्वीट करके दुःख प्रकट किया, लेकिन योग स्थल से महज 300 किलोमीटर की दूरी पर 300 से अधिक बच्चे इलाज के अभाव में मर गये पर साहेब के मुंह से उफ़ या उनके लिए एक शब्द तक न निकले। मरने वाले हैं भी इसी लायक क्योंकि ये ग़रीब जो ठहरे। पता कर लीजिये मरने वाले बच्चों में कितने बच्चे अमीरों के थे? इस ब्रह्मणवादी सरकार में इनकी औकात ही क्या है! गीता के तीसरे अध्याय के 26 वें श्लोक के नियम का पालन कर रहे हैं, इसी बहाने कुछ जनसंख्या कम तो हुई। मतलब साफ़ है कि ग़रीब इन्हें वोट देते रहे और अपने बच्चों की लाशों को कंधा पर उठाकर श्मशान तक पहुँचाते रहे।