शिक्षा नीति का लिफाफा है तो चमकदार लेकिन अन्दर वही पुराना माल    

शिक्षा नीति का बर्तन तो नया है, लेकिन अन्दर कड़वा काढ़ा

देश में साहेब के सरकार आने के बाद शिक्षा व्यवस्था में बदलाव के अंतर्गत जिस तरह की बातें हुई, उस माहौल में यदि कोई गीता का “यथा संहरते चायम” (2/58) का यह हवाला देकर कहे कि भगवान कृष्ण चाय पीते थे तो कोई ताज्जुब बिल्कुल मत समझना चाहिए! क्योंकि ऋग्वेद के ‘‘अनश्व रथ’’ (4/36/1) का हवाला देकर कुछ महानुभाव यह सिद्ध करने की कवायद में लगे हैं कि ‘आर्यावर्त’ के स्वर्णिम काल में हमारे देश के वायुमंडल में हवाई जहाज उड़ा करते थे और पगडण्डियों पर कारें दौड़ा करती थी।

      स्टेम सेल, शल्य चिकित्सा, परमाणु ऊर्जा, टेलीविजन से लेकर तमाम वैज्ञानिक खोजों के बारे में पता चला है कि यूरोप और अमेरिका आज जिसके बूते पर इतने उछल रहे हैं, वह खोजें तो हमारी महान संस्कृति के कर्णधार हज़ारों साल पहले ही कर चुके थे, बस कमी केवल यह रही कि उस समय पेटेंट की कोई प्रणाली न होने के कारण इन वैज्ञानिक खोजों का कोई पेटेंट नहीं हो पाया। स्मृति ईरानी जैसी कम पढ़ी-लिखी, टीवी ऐक्ट्रेस को केवल इसीलिए मानव संसाधन मंत्रालय में बैठाया गया था ताकि बेरोकटोक अपनी मनमानी चला सके। साथ ही के. कस्तूरीरंगन समिति के नई शिक्षा नीति के मसौदे को लागू कर साकार जिस प्रकार शिक्षा को निजी क्षेत्र को सौंप देने में आमादा है, सोचनीय है।  

नयी शिक्षा नीति के मसौदे का लिफाफा तो कहती है हुम अन्तरिक्ष देखें, क्योंकि जिक्र तो इसमें है चारक, चाणक्य नीति, आर्यभट, पतंजलि आदि तक का हुआ है साथ ही यह भी चिंता जताते हैं कि तक्षिला और नालन्द जैसे गौरवपूर्ण अतीत में भारत को कैसे पहुंचाया जाय। लेकिन विडंबना देखिये 630 पन्ने का मसौदा पढ़ का ऐसा प्रतीत होता है शिक्षा क्षेत्र में केवल अब आरएसएस के लोगों की ही भर्ती होने वाली है, पूरी शिक्षा व्यवस्था को निजी हाथों में सौपने की बात है जिसमे संस्थान के फीस बढ़ाने पा कोई रोक नहीं है। आज भी हिंदी भाषा गैर हिन्दी राज्यों को थोपने की जद्दोजहद है। हां केवल केंद्र में महिला वोटरों को लुभाने के लिए यह ध्यान रखा गया है कि आँगन बाड़ी के बच्चों को केला और दूध दिया जाये।   

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