सरयू राय द्वारा पर्यावरण पर लिखा गया ख़त केवल मगरमच्छ के आँसू भर है

सरयू राय जी पर्यावरण पर पत्र लिखकर आखिर क्या जाताना चाहते हैं?

बताने की ज़रूरत नहीं है कि पर्यावरण के विनाश का नुकसान सबसे ज्यादा ग़रीब आम जनता को ही उठाना पड़ता है। 12-14 घण्टे रोज़ खटते हुए प्रदूषित हवा से लेकर प्रदूषित भूजल का सीधे उपयोग करते हुए, बीमारी तक ग़रीब जनता ही झेलती है। सीधी बात कहें तो प्रदुषण द्वारा होने वाली तबाही आम जनता ही झेलती है। पर्यावरण को ख़तरा, जो अन्तत: मानवजाति के लिए ख़तरा है इस पूँजीवादी प्रणाली ने पैदा किया है, जिसमे मौजूदा सरकार की बे रोक टोक मिली भगत है।

झारखंड में स्थिति यह है कि रघुबर सरकार के मंत्री को अपनी ही सरकार से पात्र लिख कर पूछना पड़ता है कि, क्या हम कम से कम विश्व पर्यावरण दिवस के दिन भी राज्य को प्रदूषण से मुक्त नहीं रख सकते? लेकिन राज्य की विडम्बना है कि भक्षक ही पर्यावरण को बचाने के लिए बड़े-बड़े वायदे करते दिखते हैं। वे ”विनाशरहित विकास” की बात करते हैं, हालाँकि वे भी जानते हैं कि पूँजीवादी व्यवस्था के अराजक जंगलराज में यह असम्भव है।

पर्यावरण पर मौजूद संकट पर जनता के ग़ुस्से के दबाव के कारण मजबूरन ये चौधरी हर वर्ष पर्यावरण सम्मलेन करते या मीडिया में ऐसी कुछ बयान दे कर या तो सुर्ख़ियों में रहना चाते हैं या फिर जनता को बरगलाना चाहते है। परन्तु हमारे साम्राज्यवादी शासकों ने अपने विकास के नाम पर पूंजीपतियों से गठजोड़ कर यहाँ के कोयला व अन्य संशाधनों को जंगल कतई के कीमत पर जमकर लूटा या लूटवाया है।

ऐसे में खाद्य आपूर्ति मंत्री सह पर्यावरण चिंतक सरयू राय का वन, पयार्वरण व जलवायु परिवर्तन विभाग के अपर मुख्य सचिव को पत्र लिखना, केवल झारखंडी जनता का सहानुभूति बटोरने से अतिरिक्त और क्या हो सकता है चूँकि झारखंड के चुनाव भी अब काफी नजदीक हैं, तो जाहिर है कि पर्यावरण के बहाने ही सही जनता से फिर से जुड़ाव बनाने का प्रयास भर हो सकता है

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