ज़मीन हमारी, पानी–कोयला हमारा – हमें ही बिजली नहीं! “हद में रहे डीवीसी! -मुख्यमंत्री

ज़मीन हमारी। पानी हमारी।–कोयला हमारा। – हम झारखंडियों को ही बिजली नहीं! “डीवीसी के हद पार करने की स्थिति में, झारखंड हित में हेमंत के अपील पर केंद्र मंशे का विरोध क्या कर पाएगी झारखंड भाजपा-नेता?

हेमंत सोरेन सरकार के सत्ता संभालते ही डीवीसी जैसे संस्थान का सच झारखंड में कोरोना त्रासदी में भी, अपनी मिट्टी का दुःख न समझने के तौर पर उभरे। वह अपनी मातृ-मिट्टी के कर्ज उतारने के बजाय उसके नियम झारखंडी स्मिता के लिए घातक हो जाए। उसकी स्वायत्तता केंद्र की नीतियों के फलीभूत की दिशा में झारखंड को बार्गेन के बाजार के तरफ धकेलने में सहायक दिखे। और वह भाजपा सरकार के बिजली बकाया केंद्र के इशारे फौरन चुकता करने का फरमान जारी करे। तो हेमंत सोरेन जैसे झारखंड मानसिकता कह ही सकता है – ज़मीन हमारी, पानी–कोयला भी हमारा -हमारे ही लोगों को बिजली नहीं! “हद में रहे डीवीसी!

कोरोना त्रासदी में तय समय पर भुगतान हो पाने स्थिति में,  डीवीसी जनवरी 2020 के शुरुआत से ही राज्य के आर्थिक ढाचा संभाले धनबाद, बोकारो, गिरीडीह, हजारीबाग, रामगढ़ समेत कई उधौगिक जिलों में बिजली कटौती का खेल शुरू करे। और डीवीसी के मनमानी पर मुख्यमंत्री के विरोध के बावजूद संस्थान के संवैधानिक पदों पर बैठे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पसंदीदे! केंद्र की शह पर उसका गन्दा खेल रोकने के  बजाय, आरबीआई खाते में जमा राशि, राज्य के जनता के भविष्य था, से करोड़ कटौती कर ना मंशा का सबूत दे। तो ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा उठाया गया कोई भी कदम झारखंड हीत में हो सकता है।

केन्द्रीय आकाओं को नाराज करने का जोखिम प्रदेश भाजपा उठाएगी?

मसलन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना कि डीवीसी अपने घोषित उद्देश्यों के विपरीत जाकर राज्य की जनता के विरोध में अपनी मोनोपोली कायम करना चाहता है। यह केंद्र का एक अहम उपक्रम होकर भी राज्य हित के खिलाफ काम कर रहा है। तो सदन के कैनवास में मुख्यमंत्री का विपक्ष सहमती का अपील लोकतंत्र के मर्यादा को दर्शा सकता है। और ऐसे में सदन के बाहर कुछ विपक्षी विधायकों का कहना कि डीवीसी मामले वह सरकार का साथ देने को तैयार हैं। कई सवाल छोड़ सकते हैं – जैसे झारखड के हित के मद्देनजर क्या प्रदेश इन भज भाजपा नेताओं को बख्शेगी? क्या  अपने केन्द्रीय आकाओं को नाराज करने का जोखिम प्रदेश भाजपा उठाएगी?

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