‘द ऑर्गनाइजर’ के लेख से स्पष्ट है कि बीजेपी में दो गुट हो चूका है. एक का निर्देशन आरएसएस तो दूसरे का मोदी टोली कर रहा है. आदिवासी सम्मान में बाबूलाल का मोदी चालीसा पढ़ना इसी का हिस्सा.
रांची : देश में आरएसएस एजेंडे व मोदी सरकार के नीतियों तले आदिवासी समाज को तितर-बितर करने सच सामने हो. देश के राष्ट्रपति पद पर सुशोभित आदिवासी महिला का अपमान का सच हो. बनवासी शब्द के अक्स में झारखण्ड के भांति मैतेई/मीतेई को एसटी श्रेणी में शामिल कर बेजुबान आदिवासी वर्ग के चुनावी सीट, ज़मीन, संसाधन व उसके पहचान लूट की साजिश सामने हों. और कोलिजियम सिस्टम के प्रभाव में आदिवासी वर्ग को जेल में ठूसे जाने का भी सच हो.
ऐसे में, झारखण्ड का आदिवासी वर्ग अपनी पहचान यानि सरना कोड के लिए दिल्ली के सड़कों पर धूल फांक रहा हो. और देश के मणिपुर प्रांत संघ व बीजेपी के षड्यंत्रकारी एजेंडे के अक्स में जल रहा हो. भारी जान माल के नुकसान की खबरे आ रही हो. लोग बेघर हो रहे हों. और आंदोलकारियों को गोदी मीडिया उग्रवादी क़रार दे रहा हो. ऐसे में बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी के द्वारा आदिवासी सम्मान के मद्देनजर मोदी चालीसा पढ़ा जाए. तो मौकापरस्ती की पराकाष्ठा समझी जा सकती है.
धरातल पर दोनों गुट के नेता व कार्यकर्ता बयानों से आकाओं को दे रहे स्पष्ट सन्देश
दरअसल, आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ‘द ऑर्गनाइजर’ में छपे लेख से स्पष्ट है कि बीजेपी देश भर में दो गुट में बंट चुकी है. एक को दिशा निर्देशन आरएसएस के द्वारा हो रहा है तो दूसरे गुट का संचालन मोदी टोली के द्वारा हो रहा है. हालांकि दोनों के शीर्ष नेतृत्व का एक है और फिर जनता में भ्रम पैदा कर सत्ता तक पहुँचने लालसा रखते है. लेकिन, धरातल पर दोनों ही गुट के नेता व कार्यकर्ता अपने बयानों से आकाओं को स्पष्ट सन्देश दे देना चाहते हैं.
इसी तथ्य की पुष्टी झारखण्ड के बीजेपी में दल बदल कर आए नेता बाबूलाल मरांडी के बयान करती दिखती है. चूँकि आरएसएस का राज्य नेतृत्व व अपने ज़मीनी नेताओं का पक्ष लेना बाबूलाल जैसे नेता को डरा रहा है. मसलन, झारखण्ड के सीएम पड़ की चाह में बाबूलाल अपने आका को स्पष्ट कर रहे हैं कि वह उनके साथ खड़े हैं. और इस मौकापरस्त मंशा की आड़ में वह लगातार आदिवासी अस्मिता व सम्मान को तार-तार करने से भी नहीं चूक रहे.