बाबूलाल मरांडी जैसे बीजेपी आदिवासी नेताओं का बिफरने के बजाय मणिपुर घटना को ढकने का प्रयास उनकी बीजेपी दासता की पराकाष्ठा बयान करती है. साथ ही बीजेपी शासन में मानवता की वस्तुस्थिति भी.
रांची : देश की गौरव, महान मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम की अपने राज्य के प्रति परेशान हो केंद्र से मणिपुर हिंसा को शांत करने की गुहार, देश भर में, बीजेपी शासन में आदिवासी त्रासदी की कहानी बयान करती है. ज्ञात हो, बीजेपी के एजेंडे देश भर में लगभग सभी राज्यों में एक जैसी ही होते हैं. केवल मुखौटा अलग होता है. झारखण्ड के भांति मैतेई/मीतेई को एसटी श्रेणी में शामिल कर बेजुबान आदिवासी के चुनावी सीट, ज़मीन, संसाधन लूट का सामंती साजिश रची गई.
इस एजेंडे के अक्स में हुए फैसले में कोलिजियम सिस्टम का प्रभाव भी दिखे, तो जाहिर है राज्य के अन्य प्रान्तों की भांति आदिवासी समुदाय के द्वारा इस षड्यंत्रकारी एजेंडे का विरोध होना ही था. ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) के द्वारा इसका विरोध भी हुआ. गोदी मीडिया के मुताबिक, युवाओं और विभिन्न समुदायों के स्वयंसेवकों के बीच हिंसक घटना हुई. लेकिन जलता मणिपुर आदिवासियों की अलग कहाने बयान कर सकती है.
ऐसे में, बाबूलाल मरांडी जैसे बीजेपी आदिवासी नेताओं का बिफरने के बजाय घटना को ढकने का प्रयास बीजेपी दासता की पराकाष्ठा बयान करती है. बीजेपी शासन में मानवता की वस्तुस्थिति बयां करती है. साथ ही बीजेपी की राजनीतिक विकलांगता व विचारधारा पर गंभीर सवाल भी छोड़ते हैं. क्या देश में आदिवासियों का पृथक अस्तित्व होना गुनाह है? क्या देश के सर्वोच्च पद पर आदिवासी समुदाय के प्रतीक को आसीन कर देने भर से ही इनकी दयनीय स्थिति के अंत को परिभाषित किया जा सकता है?