झारखण्ड : राज्य को आजीविका और स्वास्थ्य सुविधाओं से जोड़ने की तैयारी शुरू. प्रथम चरण में अति गरीब जनजातीय समूह को मजबूती देने का लक्ष्य. ट्राइबल डिजीटल एटलस बनाने की तैयारी शुरू.
रांची : भारत एक महान लोकतांत्रिक देश है. इस देश की संस्कृति, परम्परा, भाषा और इतहास भी महान है. यह देश बुद्ध काल में विश्व गुरु का तमगा भी हासिल कर चुका है. लेकिन यह देश जातीय आधारित समाज के ताने-बाने व वर्तमान केन्द्रीय सरकार की नीतियों का अक्स में यह देश त्रासदी से गुजर रहा है. बहुसंख्यक समाज और प्रथम नागरिक आदिवासी वर्ग न केवल हासिये पर है इन्हें अपनी संख्या तक पता नहीं है. मसलन, सरकारी योजनायें बेअसर साबित होती है.
झारखण्ड सरकार राज्य के गरीब जनता को आजीविका और स्वास्थ्य सुविधाओं से जोड़ने का प्रयास कर रही है. प्रथम चरण में अति कमजोर जनजातीय समूह पर ध्यान केंद्रित करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ी है. इस सन्दर्भ में हेमन्त सरकार में झारखण्ड में ट्राइबल डिजीटल एटलस बनाने की तैयारी शुरू हुई है. यह प्रयास आगे चल कर विभिन्न समुदाय के ऐतिहासिक साक्ष्यों की टेक्स्ट, फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, ऑडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से संरक्षित किया जा सकेगा.
प्रथम चरण में अति कमजोर आदिवासी समुदाय (PVTG) का बेसलाइन सर्वे किया जा रहा है. इसकी तैयारी कल्याण विभाग अंतर्गत आदिवासी कल्याण आयुक्त के निर्देशन में शुरू हुई है. ट्राइबल डेवलपमेंट डिजिटल एटलस तैयार होने से राज्य के आदिवासी गाँवों की बुनियादी सुविधाओं की स्थिति और विकास के मानक लक्ष्य के बीच की क्रिटिकल गैप का पता लग सकेगा. यह सर्वे गांव और टोला में शिक्षा, कौशल क्षमता, रोज़गार, आय, जीवनस्तर से संबंधित ब्यौरा तैयार करेगा.
यह डिजिटल एटलस सुविधा मुहैया के साथ सुदूर इलाकों में विकास की लकीर खींचेगा
हेमन्त सरकार का यह कदम 67,501 पीवीटीजी परिवार, 3705 गांवों के 2,92,359 जनसंख्या की सामाजिक बुनियादी ढांचा, आजीविका और स्वास्थ्य सुनिश्चित करेगा. जनजातीय समूह को पक्के आवास, शुद्ध पेयजल, बिजली/सौर विद्युतीकरण, पेंशन, आयुष्मान कार्ड, पीडीएस और ई-श्रम, स्वास्थ्य केंद्र, आंगनबाड़ी, शिक्षा, सिंचाई जल, सड़क कनेक्टिविटी, मोटर बाइक एम्बुलेंस/मोबाइल स्वास्थ्य केंद्र, मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी, वनोत्पाद, समेत अन्य सुविधाओं से जोड़ेगा.
यह प्रयास राज्य के पारंपरिक आजीविका को मजबूती देगा. जेटीडीएस चने की खेती और एसएचजी और क्लस्टर आधारित एफपीसी और महिला समूहों के माध्यम से जेएसएलपीएस इसके लिए कार्य करेगा. सिदो कान्हू वनोपज फेडरेशन के माध्यम से इनके उत्पादों का बाजारों तक पहुँचाया जाएगा. एनीमिया, विशेष रूप से सिकल सेल एनीमिया और कुपोषण की खातमे के मद्देनजर खाद्य सुरक्षा (डाकिया योजना) लाभ और स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देगा.
यह पहल असुर, कोरबा, माल पहाड़िया, बिरहोर, सबर, बिरजिया, सौर पहाड़िया जैसे आठ अति संवेदनशील जनजातीय समुदाय (PVTG) के युवक-युवतियों के नियोजन हेतु निःशुल्क आवासीय कोचिंग का शुभारम्भ का प्रयास फलीभूत होगा. प्रथम चरण में 150 युवाओं को विभिन्न परीक्षाओं के लिए तैयार किया जाएगा. इसमें 60 से अधिक युवतियां शामिल हैं. ज्ञात हो, अति संवेदनशील जनजातीय समुदाय के लिए यह देश का पहला आवासीय कोचिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम है.