झारखण्ड : बीजेपी की प्रवासी नीति झारखण्ड की संवैधानिक राजनीतिक परम्परा को मजाक बनाने का सच लिए है. 2014 में राज्य को एसटी सीएम तो 2019 में विपक्ष नेता शून्य किया .
रांची : वर्ष 2104, मोदी लहर और ओबीसी वर्ग के समर्थन और आदिवासी-दलित अशिक्षा के अक्स में झारखण्ड विधानसभा चुनाव जीतते ही बीजेपी ने खुद को झारखण्ड का अजय दल घोषित किया. उसने अपनी बी टीम झाविमों के विधायकों को खरीद कर विधानभा में संख्या बढ़ाई. और राज्य के मूलवासी ओबीसी को खुश करने हेतु रिमोट संचालित प्रवासी ओबीसी सीएम को सामने लाया. जो न केवल बीजेपी का आदिवासी विरोधी चेहरा था, उस दल पर बाहरियों की पकड़ का स्पष्ट दर्शन भी था.
बीजेपी ने आदिवासी बाहुल्य झारखण्ड में प्रवासी गैर-आदिवासी को सीएम बिठा अपनी मंशा साफ़ की. आदिवासियों को वनवासी बना उसके सुरक्षा कवच सीएनटी-एसपीटी एक्ट को ख़त्म करने का प्रयास किया. कमल क्लब के आसरे ग्रामसभा के अस्तित्व को ख़त्म कर आदिवासियों पर संघी पैंठ को थोपने का प्रयास किया. जिसके अक्स में लैंड बैंक और अडानी पॉवर प्लांट तले आदिवासी ज़मीन लूट का सच सामने आया. राज्य में स्कूल बंद हुए, भीड़तन्त्र के अक्स में राज्य को आशान्त कर दिया.
राज्य ने रघुवर सरकार का तानाशाह रौद्र रूप देखा
बीजेपी को लगा कि उसने राज्य के ओबीसी वर्ग पर पकड़ बना ली है. झाविमो के आसरे वह आदिवासी वोट बैंक को साध लेगी और आजसू के आसरे राज्य के महतो वोट बैंक पर तो कब्ज़ा है ही. मसलन, उसका झारखण्ड प्रदेश के अजय दल के रूप में इतराना लाजमी था. जिसके अक्स में राज्य ने रघुवर सरकार का तानाशाह रौद्र रूप देखा. उसने राज्य के बेटे-बेटियों पर कई रूपों में लाठियां बरसाई. न केवल बाहरियों को नौकरी दी उसके घुसपैंठ के रास्ते भी आसान कर दी.
लेकिन, बाहरियों को स्थानीय ताने-बाने की समझ नहीं होती. बीजेपी को भी झारखण्ड के आन्दोलनकारी रवैया और कुशलता की समझ नहीं थी. राज्य के आदिवासी-मूलवासी बेटे-बेटियों ने विभिन्न आंदोलनों के आसरे 2019 में उसे सिरे से ख़ारिज कर दिया. और राज्य की सत्ता पर झारखंडी मिट्टी को बिठाया. मसलन, बीजेपी को ज़मीनी सच का भान हुआ और उसने आनन-फानन में अपने संघी आदिवासी प्रचारक बाबूलाल को झाविमो पार्टी समेत बीजेपी में विलय किया.
बीजेपी बाबुलाल को आगे कर आदिवासी-मूलवासी दोनों को ठग रही
लेकिन, बीजेपी यहाँ भी चुक गयी. पार्टी के दो विधायक झारखंडी समझ के निकले जिसने बीजेपी के प्रवासी और बंटवारे की विचारधारा को नकारते हुए शामिल होने से इनकार कर दिया. झाविमो का दो फाड़ में बटवारा हुआ. बीजेपी समझ चुकी थी कि राज्य के आदिवासियों ने उसे नकार दिया है. मसलन, उसने यहां दोमुहियाँ राजनीति का परिचय दिया. उसने विधायक के नेता रूप में बाबुलाल को आगे कर दिया. जिसके आसरे वह आदिवासी-मूलवासी दोनों को ठगने का प्रयास कर रही है.
बहरहाल, झारखण्ड में बीजेपी का आदिवासी-मूलवासी विरोधी चेहरा ही अंतिम और स्पष्ट सच है. जिसके अक्स में उसका वर्ष 2014 में झारखण्ड को आदिवासी सीएम शून्य करने का सच है. तो 2019 में झारखण्ड को विपक्ष के नेता शून्य करने का सच है. ज्ञात हो भारत एक लोकतांत्रिक देश है. और झारखण्ड जैसे आदिवासी, दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्र में इसकी महत्ता और बढ़ जाती है. ऐसे में राज्य के प्रति बीजेपी-आरएसएस की मंशा को समझा जा सकता है.