झारखण्ड : नड्डा जी मोदी जी की भांति कुछ भी फेंकते हैं? आरएसएस विचारधारा पर आधारित नड्डा के बचपन की स्मृति के अनुसार झारखण्डवासी अलग झारखण्ड की नहीं वनांचल की मांग करते थे.
रांची : भ्रम की बुनियाद पर हवा-हवाई महल खड़ा करने में आरएसएस-बीजेपी की ट्रेनिंग आला दर्जे की होती है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तथ्य की पुष्टि हरमू मैदान, संकल्प यात्रा के समापन कार्यक्रम में की. एक तरफ गुजरात लॉबी के आर्थिक मुखिया अडानी ने पीएम मोदी की छाँव बन देश भर की ज़मीन कब्ज़ा लिया, फिर भी बीजेपी सरकार साधू है. लेकिन वहीं एक आदिवासी सीएम पर चंद ज़मीन के टुकड़े की ख़रीद के आरोप को बीजेपी चुनावी मुद्दा बनाने की कवायद करती है.
आरएसएस के ज्ञान कोष से निकले जेपी नड्डा की बचपन स्मृति सवालों के घेरे दिखी. झारखण्ड को भान है कि समलित बिहार का पठार क्षेत्र हमेशा ही अलग झारखण्ड के लड़ाई लड़ी थी. वनांचल शब्द तो महज इस क्षेत्र के संघर्ष को हड़पने हेतु आरएसएस का सामन्ती एजेंडा भर था. फिर भी, जेपी नड्डा ने न केवल अटल बिहारी वाजपई के व्यक्तित्व के पीछे खड़ा हो आरएसएस एजेंडे के आसरे बीजेपी को झाखण्ड से जोड़ने का प्रयास किया राज्य के महापुरुषों को गौण करने का प्रयास भी किया.
संजय मिश्र के दौर में शुरू हुई ईडी जांच के आसरे नड्डा की राजनीति
ज्ञात हो, वर्तमान में केंद्र बीजेपी और मोदी सरकार को देश को मणिपुर, महंगाई, किसान, ओल्ड पेंशन, बेरोजगारी, महिला उत्पीडन, आदिवासी, दलित, ओबीसी जैसे कई जवलंत मुद्दों पर जवाब देना है. झारखण्ड के आरक्षण बढ़ोतरी बिल, 1932 स्थानीय नीति विधेयक, सरना/आदिवासी धर्म कोड, मोबलिंचिंग बिल, राज्य का बकाया से संबंधित सवालों का जवाब देना है. लेकिन जेपी नड्डा के द्वारा सभी सवालों को गौण कर संजय मिश्रा के दौर में शरू हुई ईडी जांच के आसरे राजनीति करने का प्रयास हुआ.
नड्डा के भाषण में दिलचस्प पहलू तब आया जब वह पूर्व के रघुवर सरकार की तारीफों के पूल बांधे. उसी मंच पर उस रघुवर सरकार को पानी पी कर कोसने वाले बाबूलाल मरांडी भी उपस्थित थे. उनके चेहरे पर अपने विधायकों की छिनतई का शिकन नहीं बल्कि नड्डा के शब्दों पर सच की मुहर दिखी. बहरहाल, बिना लाग लपेट के कहा जा सकता है कि जेपी नड्डा, बाबूलाल मरांडी जैसे बीजेपी नेताओं ने फरेब की पराकाष्ठा पार की. जो बीजेपी-आरएसएस की आरक्षित वर्ग और ग़रीब विरोधी विचारधारा का स्पष्ट दर्शन भर है.