झारखंड सरीखे राज्यों का कोरोना महामारी से जूझने के बीच प्रधान सेवक व संघ का संगठन कहाँ?

कोरोना महामारी से जूझने के मद्देनज़र झारखंड सरीखे राज्य अपने हाल है और कोरोना से लड़ाई को स्वयं जी रहे हैं. ऐसे हालत में अमीर प्रधान सेवक व देश का सबसे बड़ा संगठन संघ कहाँ है?

त्रासदीय दौर में मौतें गवाही दे. जहाँ केंद्रीय तंत्र -लोकतंत्र का ही नहीं बल्कि लोक हत्यारा भी हो। देश का सबसे बड़ा संगठन स्वयं सेवक संघ मुसीबत के दौर में जनता को राहत पहुंचाने की दिशा में कुछ किया हो. कोई उदाहरण नहीं मिलते. उसकी चहलकदमी चुनावी क्षेत्रों के अलावे अतिरिक्त कोई छाप छोडती नहीं. देश एक बरस से कोरोना महामारी को जी रहा है. कोरोना के पहली वेब के मद्देनजर देश में सैंकड़ों प्रवासी मजदूरों का सड़कों पर दम तोड़ने के सच से अभी उबरी भी नहीं था कि दूसरी वेब और तबाही के साथ आ धमकी.  लेकिन इस दौरान केंद्रीय सत्ता तो चुनाव को जीने में या सरकार गिराने-बनाने में व्यस्त रही. और दूसरी वेब का कारक रही हो. तो ऐसे में मजदूर दिवस को कैसे देश मनाये.

कोरोना त्रासदी अपना पाँव पसारते हुए नगरों से पंचायत व पंचायत से गाँव दर गाँव होते हुए सुदूर घरों तक अपनी खौफनाक दस्तक दे चुकी है. और केन्द्रीय लचर व्यवस्था खिल्ली उड़ाते हुए मौत का तांडव मचा रही है. मौजूदा स्थिति यह है कि देश ऑक्सीजन के अभाव में हांफ रहा है. वह सास लेने की स्थिति भी नहीं है. अस्पतालों के बाहर बेसब्री है तो घरों के भीतर कराहट भरी सिसकियां. जहाँ जनता उस पार कुछ समझा पा रही है और न कुछ दिख पा रही है. सबके मन में यही सवाल है कि जो हुआ क्यों हुआ. अपनों के साथ ऐसा हुआ तो इसका जिम्मेदार कौन है. अस्पतालों में ऑक्सीजन वाले बेड क्यों नहीं हैं? और जिन्हें बेड मिल चुकी है वह तड़प कर क्यों मर रहे हैं?

क्यों अमीर प्रधानसेवक का देश अस्पतालों को ऑक्सीजन तक मुहैया कराने में विफल है?

यह खबर आम हो चली है कि अस्पताल ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा है. जनता में मची  बौखलाहट डराने वाली है. हरा देश करोड़ों खर्च का विधायक खरीद सकता है. सालों भर महँगी चुनाव को जी सकता है. थाठशाही को बरकरार रखने के लिए नया सांसद, नया जहाज खरीद सकता है. करोड़ों का खर्च कर भाजपा कार्यालय का निर्माण कर सकता है. तो फिर देश के अस्पताल में बेड व कम बजट खड़ा होने वाली ऑक्सीजन प्लांट क्यों नहीं स्थापित कर सका. चुनाव आयोग क्यों नहीं चुनाव स्थगित कर पाया. और सुप्रीम कोर्ट क्यों केन्द्रीय सत्ता को एक आदद नोटिस भर भेज यह न दर्शा सकी कि लोक की उसे फ़िक्र है?  

ऐसे दौर में देश का सबसे बड़ा संगठन संघ गौण है, प्रधान सेवक व उनके तमाम तंत्र चुनावी रैलियों या फिर जीत के आंकड़ों को जुटाने में व्यस्त है. मीडिया सरकार के नाकामियों को बताने या सुझाव देने के बजाय एक्ज़िट पोल बताने के सच को जी रहा हैं. संघ जैसे बड़े संगठन के अथक प्रयास से तमाम संस्थानों में काबिज संघ मानसिकता, जनता के जीवन सुरक्षा के अधिकार को संरक्षण देने पाने में विफल है. सुप्रीम कोर्ट कड़े कदम उठाने के बजाय केंद्र सरकार की ढाल बनने का सच भी इस दौर में जी रहा है. और चुनाव आयोग की बेबसी का हद यह हो चला कि उसके लिए चुनाव रुकवाना तो दूर एक चरण में चुनाव भी करा पाने में असमर्थ है. 

राज्यों को उसके हाल पर क्यों छोड़ दिया है केंद्र?  

केंद्र द्वारा राज्यों को उसके हाल पर छोड़ देने के मद्देनजर झारखंड व दिल्ली सरीखे राज्य एक दूसरे की मदद कर मानवता की आस को बचाने में  प्रयासरत हैं. उसे अपनी व्यवस्था स्वयं करनी पद रही है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सीमित संसाधन के बीच एक बार फिर मैदान में हैं. और जनता का साथ नहीं छोड़ रहे. ऑक्सीजन से लेकर बेड की व्यवस्था व युवाओं की वैक्सीनेशन से लेकर ऑक्सीजन उत्पादन तक को लेकर कदम उठाने से नहीं चूक रहे. साथ ही प्रवासी समेत तमाम मजदूरों के साथ मजबूती से खड़े दिख रहे हैं. मसलन, 2 मई चुनावी रिजल्ट तो आ ही जाएगा. जीत चाहे जिसकी भी हो लेकिन हार केवल जनता की ही होगी.     

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