बाबूलाल के दोबारा बीजेपी आने, दीपक प्रकाश के अध्यक्ष और सांसद बनने के बाद से पार्टी में आंतरिक कलह का दौर जारी

बीजेपी कार्यकर्ता भले चुप हो, लेकिन आज दोनों नेताओं के नेतृत्व क्षमता पर पार्टी अंदर उठ रहे हैं सवाल. दीपक प्रकाश के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद बनने के बाद प्रदेश बीजेपी का तीन उपचुनाव हारना अंतर कलह का है प्रमुख वजह

14 साल बाद वापस लौटे बाबूलाल, पर न तो उपचुनाव में जीत दिला सके न ही जेवीएम से आये अपने सहयोगियों को सम्मान 

रांची। 2019 में सत्ता से बेदखल होने के बाद ऐसा लग था कि प्रदेश बीजेपी के नेता हार के कारणों पर मंथन कर दोबारा सत्ता पाने की कोशिश करेंगे। लेकिन बीजेपी में आज इसका उलटा ही हो रहा है। आज प्रदेश बीजेपी के अंदर आंतरिक कलह चरम पर हैं। भले ही कार्यकर्ता इसपर कुछ कहने से बच रहे हो, लेकिन हकीकत यही है कि कलह अब चरम पर हैं। कलह का एक कारण यह बताया जा रहा है कि पार्टी कार्यकर्ता आज दीपक प्रकाश और 14 वर्ष के बाद पार्टी में दोबारा लौटे बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व क्षमता और उनकी नीतियों को सही नहीं ठहरा रहे हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि दोनों नेताओं के नेतृत्व में पार्टी चुनाव तो लगातार हार ही रही है, साथ ही पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता, कई दिग्गज नेता और जेवीएम में रहने वाले नेता भाजपा मे आने के बाद खुद को गौण महसूस कर रहे हैं।

दोनों नेताओं ने जैसा संगठनात्मक बदलाव किया है, उसका फायदा सिर्फ कुछ ही लोगों को 

दोनों नये नेताओं के प्रदेश की कमान संभालने के बाद से ही पार्टी के अंदर कई तरह के संगठनात्मक बदलाव किये गये हैं। लेकिन आज कई कार्यकर्ता इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पाये हैं। क्योंकि इसका फायदा कुछ ही कार्यकर्ता उठा पा रहे हैं। इससे पार्टी के अंदर विवाद काफी बढ़ा है। बीते दिनों यह कलह पार्टी के मीडिया विभाग में देखी गयी है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में बैठने के मामले पर एक प्रदेश प्रवक्ता और पार्टी के मीडिया विभाग के पदाधिकारी के बीच तीखी नोकझोंक हुई थी। खबर तो यह भी है कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश उस दौरान हरमू स्थित पार्टी मुख्यालय में ही उपस्थित थे, लेकिन उन्होंने भी इसपर कोई हस्तक्षेप नहीं किया। 

प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी की गिरती दशा पर भी उठ रहे सवाल 

दीपक प्रकाश से नाराजगी तो पार्टी के कई कार्यकर्ताओं के बीच हैं। दबे आवाज में ही सही, पर कार्यकर्ता तो यह मानने लगे है कि प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद बनने के बाद से उनके नेतृत्व में पार्टी की दशा लगातार गिर ही रही है। तीन उपचुनाव में तो पार्टी को करारी हार मिली ही है, साथ ही कार्यकर्ताओं के शिकायतों को नहीं सुनने और अपने कुछ समर्थकों के बीच घिर कर वे पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को नाराज भी कर रहे हैं। बता दें कि नवंबर-दिसम्बर 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने करारी शिकस्त दी थी। उसके बाद बीजेपी में फेरबदल किया गया। 25 फरवरी 2020 को दीपक प्रकाश को प्रदेश अध्यक्ष की कमान दी गयी। उसके बाद जून 2020 में ही वे राज्यसभा सांसद भी बने। फिर उनके नेतृत्व में पार्टी तीन उपचुनाव (दुमका, बेरमो और मधुपूर सीट) भी लड़ी, लेकिन तीनों में ही पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा।

जिस घमंड से बीजेपी छोड़े थे, वह तो टूटा ही साथ ही अपनों से भी गद्दारी कर गये बाबूलाल 

काफी घमंड के साथ बीजेपी से नाता तोड़ने वाले बाबूलाल मरांडी 14 साल बाद जनवरी 2021 में दोबारा बीजेपी में शामिल हुए। उनके आने से भले ही बीजेपी के कुछ शीर्ष नेतृत्व (दीपक प्रकाश जो कभी जेवीएम में बाबूलाल के साथ बीजेपी छोड़े थे) को खुशी हुई, लेकिन अधिकांश बीजेपी नेता व कार्यकर्ताओं और जेवीएम से बाबूलाल के साथ पार्टी में शामिल हुए लोगों को काफी निराशा हुई। पिछले 14 सालों से बाबूलाल के साथ रहने वाले जेवीएम कार्यकर्ताओं के साथ बाबूलाल ने जैसी गद्दारी की, उसकी आज भी बीजेपी में निंदा होती है। बता दें कि जेवीएम से बीजेपी आये सभी नेता आज पूरी तरह से गौण हो चुके हैं। बाबूलाल मरांडी से नाराजगी की रही सही कसर तो मधुपूर उपचुनाव ने बढ़ा दी है, जब हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बीजेपी को करारी हार मिली।

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