खंडपीठ प्रस्ताव को मुख्यमंत्री की स्वीकृति कई मामलों में संताल को पहुंचाएगी राहत – अपील करने के लिए क्षेत्र के लोगों को नहीं करना पड़ेगा रांची तक का सफ़र
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का निर्णय प्रबुद्धजीवियों के विचारों का है सम्मान
रांची। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दुमका के जनता दरबार में हाजिर हों। और न्याय के आसरे संताल के प्रबुद्धजीवी जमात हाईकोर्ट खंडपीठ की मांग करे। जिसके अक्स में 40000 मामलों की उलझन उसी प्रमंडल में सुलझाने का सच हो। तो यह हेमंत सरकार के लिए चुनौती भी हो सकती है। और बुद्धिजीवियों के जायज विचारों पर खरा उतरने की कसौटी भी। इसी बीच झारखंड के कैनवास पर खंडपीठ के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री की सच सहमती के मुहर तौर पर उभरे। तो इसे प्रबुद्धजीवियों के विचारों के सम्मान के मद्देनजर, राहत के दिशा में संताली जनता के लिए लिया गया ऐतिहासिक फैसला माना जा सकता है।
पूर्व की सरकारों की चौसर पर हेमंत सरकार की बड़ी लकीर
हाईकोर्ट दुमका खंडपीठ गठन के मातहत हर सरकार की चौसर संताली जनता के छले जाने का सच लिए हो। जहाँ वोट उगाही के राहों में केंद्र की सहमती भी दिखे। लेकिन डबल इंजन सरकार प्रस्ताव को केंद्र तक ना ले जा पाए। तो मूलवासी व आदिवासी बहुल ज़मीन पर निश्चित रूप से हेमंत सरकार का निर्णय बड़ी लकीर है। निश्चित रूप से जनवरी माह में संताल के परेशानियों के मद्देनजर, झारखंड बार कौंसिल द्वारा गठन प्रक्रिया शुरू करने को लेक,र राज्य सरकार को लिखे गए पत्र का अंजाम भी माना जा सकता है।
स्थानीय कोर्ट में केस हारने पर गरीब जनता रांची पहुंच नहीं कर पाते हैं अपील
ज्ञात हो कि दुमका के दिसोम मारंग बुरु युग जाहेर आखड़ा व संताली ग्रामीणों की खंडपीठ की मांग पुरानी है। यह मांग पिछले कई वर्षों से होती रही है। कुछ वर्ष पहले मामले में जनता द्वारा पोस्टकार्ड अभियान चलाया गया। लेकिन, पिछली सरकार तक में न्याय के नाम मिली झूठी उम्मीद। जाहिर है दुमका में हाईकोर्ट खंडपीठ स्थापित होने से गरीब जनता को सुलभ न्याय की दिशा में राहत मिलेगी। खासकर वैसे मूलवासी-आदिवासी को, जिसके लिए स्थानीय कोर्ट में केस हारने परिस्थिति में, उसकी गरीबी रांची हाईकोर्ट की राह बहुत दूर कर देती है।
40,000 से अधिक मामले हैं लंबित, 3000 मामले में अपील तक न हो सके
ज्ञात हो कि अनुमान के मुताबिक, हाईकोर्ट में संताल परगना से संबंधित 40,000 लंबित मामले का वर्तमान सच हो। लगभग 1300 मामले ऐसे हो जिसमे सुनवाई एक बार न हो सकी हो। विभिन्न न्यायालयों के करीब 3000 आदेश में लोग गरीबी में अपील के लिए हाईकोर्ट नपहुँच पाए हों। तो कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का निर्णय ऐसे तमाम मामलों में राज्यवासियों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। दुमका बेंच में पूरे प्रमंडल के मामलों की न केवल अपील, याचिकाओं पर सुनवाई भी हो सकेगी। इसी बेंच में जनहित याचिका से लेकर रिट दायर तक हो सकेंगी।