झारखण्ड : वन अधिनियम 2022 की नई अधिसूचना में ग्राम सभा की सहमति के शर्त को आश्चर्यजनक रूप से पूरी तरह समाप्त किये जाने पर सीएम हेमन्त सोरेन ने आपति दर्ज की है. और इस शक्ति के पुनर्बहाल हेतु पीएम को सीएम के द्वारा पीएम को पत्र लिखा गया है.
रांची : भारत देश में आदिवासी समुदाय (अनुसूचित जनजातियों) ने पीढ़ियों से जंगलों को अपना घर माना है. इन समुदायों के संरक्षण के लिए वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में स्पष्ट रूप से उलेख किया गया था कि वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों की ज़मीन अधिग्रहण से पहले ग्राम सभा की सहमति की आवश्यकता होगी. लेकिन वन संरक्षण नियमावली 2022 में केंद्र द्वारा ग्राम सभा की शक्तियों को समाप्त कर इन समुदायों का यह महत्वपूर्ण अधिकार छीन लिया गया है.
मसलन, झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन के द्वारा जंगलों में बसने वाले अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण में, केंद्र के इस नियमावली के विरुद्ध आपत्ति दर्ज की गई है. इस बाबत सीएम द्वारा ग्राम सभा की शक्तियों को नियमावली में पुनर्बहाल हेतु 2 दिसंबर 2022 को प्रधानमंत्री को अनुरोध पत्र लिखा गया है. उनके द्वारा पत्र में स्पष्ट कहा गया है कि इस प्रावधान के अभाव में विकास के नाम पर अनुसूचित जनजातियों की पारंपरिक जमीनें छिनी जा सकती हैं.
झारखण्ड बत्तीस स्वदेशी समुदाय प्रकृति के साथ जीवन जीने के तरीके का करते हैं अभ्यास
सीएम हेमन्त के पत्र में कहा गया है कि वह ऐसे राज्य के मुख्यमंत्री हैं जहां बत्तीस स्वदेशी समुदाय प्रकृति के साथ जीवन जीने के तरीके का अभ्यास करते आ रहे हैं. पेड़ों की पूजा और रक्षा करते आ रहे हैं. यह उनका कर्तव्य है कि वह प्रधानमन्त्री को वन अधिनियम में 2022 में हुए उल्लंघन से अवगत कराए. ताकि इन समुदायों का अधिकार फिर से संरक्षण हो सके.
वन संरक्षण नियमावली 2022 से प्रभावित परिवर्तन में अधिकार अधिनियम, 2006 के गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि का उपयोग करने से पहले ग्राम सभा की पूर्व सहमति प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकताओं को समाप्त कर दिया है. ऐसे में जो पेड़ों को अपने पूर्वजों के रूप में देखते हैं, उनकी सहमति के बिना पेड़ों को काटना उनके स्वामित्व भावना पर हमला है.
एफआरए अधिनियमन वन में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों को वन अधिकार प्रदान करने के लिए लाया गया था. भारत भर में अनुमानित 200 मिलियन लोग अपनी प्राथमिक आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं, और लगभग 100 मिलियन लोग वनों के रूप में वर्गीकृत भूमि पर रहते हैं. ये नए नियम उनके अधिकारों को खत्म कर देंगे, जिन्होंने पीढ़ियों से जंगलों को अपना घर कहा है. विकास के नाम पर उनकी पारंपरिक जमीनें छिनी जा सकती हैं.
2022 की नई अधिसूचना में ग्राम सभा की सहमति की शर्त को पूरी तरह कर दिया गया है खत्म
ज्ञात हो, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ) ने 2009 में स्पष्ट रूप से कहा था कि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत वन भूमि के विचलन में किसी भी मंजूरी पर स्टेज -1 (सैद्धांतिक रूप से) अनुमोदन से पहले एफआरए के तहत प्रदान शक्तियों के सेटलमेंट से पहले विचार नहीं किया जाएगा. लेकिन 2019 में, इस प्रावधान को इस हद तक कम कर दिया गया था कि ग्राम सभा की सहमति हासिये पर चली गई थी.
लेकिन, 2022 की नई अधिसूचना में ग्राम सभा की सहमति की शर्त को आश्चर्यजनक रूप से पूरी तरह खत्म कर दिया गया है. अब नई परिस्थिति में एक बार फॉरेस्ट क्लीयरेंस के बाद बाकी सब नियम महज औपचारिकता भर ही रह जाते हैं. और अनिवार्य रूप से, वन भूमि के डायवर्जन में तेजी लाने के लिए केंद्र के पास राज्य सरकारों पर दबाव बनाने के लिए और भी अधिक शक्ति होगा.
मसलन, सीएम सोरेन द्वारा प्रधानमंत्री से अनुरोध किया गया है कि वह आगे आएं और यह सुनिश्चित करें कि गति की आड़ में आदिवासी पुरुष, महिला और बच्चे की आवाज को दबाये जाने की फितरत समाप्त करें. हमारे कानून समावेशी होने चाहिए. अतः वह वन संरक्षण नियम 2022 में बदलाव लाएं जिससे देश में आदिवासियों और वन समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने वाली व्यवस्था और प्रक्रियाएं स्थापित हो.