भारत श्रम संस्कृति के वाहक बहुसंख्यक आबादी का लोकतांत्रिक राष्ट्र है. इस राष्ट्र में यह बहुसंख्यक आजादी के बाद भी गरीब हैं. इनके मत बेमायने हैं. इनके उत्थान के लिए स्थानीय भाषा में शिक्षा अति आवश्यक.
रांची : भारत श्रम संस्कृत के वाहक बहुसंख्यक आबादी का लोकतांत्रिक राष्ट्र है. अनुसूचित जातियों -आदिवासी, दलित, शूद्रों, गरीबों और प्रभावशाली सामंतवादियों का राष्ट्र है. विभिन्न स्थानीय भाषाओँ के मद्देनजर भारत इन श्रम संस्कृति के बहुसंख्य वाहक के गरीबी का बोझ सदियों से ढोने का सच लिए है. इसका प्रमुख कारण इस बड़ी आबादी को हजारों वर्षों से हर प्रकार से शिक्षा से दूर रखने का सामन्ती प्रयास है. जो भारत देश का आधुनिक तकनीकी क्षेत्र में अति पिछड़ा होने का कारण भी है.
तमाम परिस्थितियों के बीच भारत के विकास के जरुरी है कि यह लोकतांत्रिक राष्ट्र तेज गति से शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़े. और इस महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्थानीय भाषा में शिक्षा मुहैया कराने के दिशा में देश का बढ़ना अति आवश्यक हो चला है. स्थानीय भाषा में शिक्षा एक ऐसा अचूक उपाय है जिसके आसरे अनुसूचित जातियों के बच्चों तक शिक्षा पहुंचा उनकी समझ को विकसित किया जा सकता है. और सशक्त विकसित भारत के सपने को साकार किया जा सकता है.
भारत में अनुसूचित जातियों के बच्चे गरीबी, अशिक्षा, भेदभाव और सरकारी शिक्षा नीतियों के कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित होते हैं. इन बच्चों को अक्सर ऐसी शिक्षा प्रदान की जाती है, जो उनका मदरटंग नहीं होता. नतीजतन न उनकी समझ विकसित हो पाती है और ना ही वह संस्कृति-परंपराओं से जूस पाते हैं. मसलन, स्थानीय भाषा में शिक्षा मुहैया करा इन बच्चों की समझ विकसित की जा सकती है. ऐसे में सीएम हेमन्त का स्थानीय भाषा में शिक्षा मुहैया कराने का प्रयास एक अचूक प्रयास है.
स्थानीय भाषा में शिक्षा कराने के विशिष्ट लाभ
स्थानीय भाषा में शिक्षा बच्चों में सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाता है. मूल भाषा में शिक्षा प्राप्त करने से उनका सीखना अधिक आसान होता है. स्थानीय भाषा बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि बढ़ाता है. जिससे बच्चे किसी विषय को अधिक गहराई तक समझते हैं. स्थानीय भाषा की शिक्षा धरातल पर परिणामों में सुधार करता है जिससे बच्चों का प्रदर्शन बेहतर होता हैं और वह लगभग हर क्षेत्र में खुद को अधिक सफल पाते हैं.
हेमन्त शासन में ‘‘संताली भाषा कोचिंग’’ पूरे प्रमंडल के विकास का आधार
सीएम हेमन्त के प्रयासों से झारखण्ड में 27 दिसम्बर 2023 से निःशुल्क (गैर आवासीय) ‘‘संताली भाषा कोचिंग’’ का शुभारंभ हुआ है. सरकार का यह प्रयास डॉ. रामदयाल मुण्डा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के माध्यम से झारखण्ड के अनुसूचित जनजाति समुदाय के बच्चों को संघ लोक सेवा आयोग एवं समकक्ष प्रतियोगी परीक्षा की निःशुल्क तैयारी कराएगा. इसमें अब तक तीस (30) छात्र-छात्राओं ने नामांकन भी ले लिया है.
इसका उद्देश्य अनुसूचित जनजाति संवर्ग के छात्रों को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित ‘संताली’ भाषा में संघ लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता दिलवाना है. 8वीं अनुसूची में सम्मिलित संताली भाषा की खासियत यह है कि मुंडारी भाषा परिवार की भाषाएँ बोलने वाले मुंडारी, हो, खड़िया, आसुरी, बिरहोरी, बिरजिया, स्वासी आदि समुदायों को उनकी मातृभाषा संताली से मिलती-जुलती होने के कारण तैयारी करने में कोई कठिनाई नहीं होगी.
ज्ञात हो, संस्थान द्वारा दो और कोचिंग कार्यक्रम जनवरी के द्वितीय सप्ताह से प्रारंभ होगा. अनुसूचित जनजाति के युवक-युवतियों के लिए राज्य लोक सेवा आयोग की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी हेतु ‘‘निःशुल्क गैर आवासीय कार्यक्रम’’ एवं अति कमजोर जनजातीय समुदाय के युवाओं को राज्य की विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ‘‘निःशुल्क आवासीय कोचिंग’’ शामिल है. इच्छुक छात्र-छात्राएं संस्थान की वेबसाईट से या दूरभाष से जानकारी ले सकते हैं.